Monthly Archives: July 2022

नाग पंचमी पर्व का रहस्य – पूज्य बापू जी


भारतीय संस्कृति के पुजारियों ने, ऋषि-मुनियों ने, मनीषियों ने बुद्धिमत्ता का, बड़ी दूरदर्शिता का परिचय दिया है । जिसका नाम सुनते ही भय और क्रोध पैदा हो जाय उसी का पूजन करके निर्भयता और प्रेम जगाने की व्यवस्था का नाम है – नाग पंचमी उत्सव । ऋषियों ने कितनी सुन्दर मति का परिचय दिया कि सावन के महीने में नाग पंचमी का उत्सव रखा । बरसात के दिनों में बिल में रहने वाले साँप बिल में पानी भर जाने से असहाय, निराश्रित हो जाते हैं, जिससे और दिनों में साँप दिखे न दिखे परन्तु बारिश में तो गाँवों में, खेत के आसपास दिखने लगते हैं । साँप को देखकर द्वेष और भय न हो अपितु उसके प्रति प्रेम और ज्ञानदृष्टि जगे ऐसी हितकारी, मंगलकारी व्यवस्था ऋषियों ने की ।

साँप को सुगंध बहुत प्रिय है, चंदन के वृक्ष को लिपट के रहता है, केवड़े आदि से भी बड़ा प्रेम करता है ऐसे सर्प को भगवान शिवजी ने अपने श्रृंगार की जगह पर रख दिया है अर्थात् जिसके जीवन में सद्गुणों की सुवास का आदर है, प्रीति है उन्हें अपने पास रखेंगे तो आपके जीवन की भी शोभा बढ़ेगी ।

शिवजी के गले में साँप, भुजाओं में साँप… विषधर को अपने गले और भुजाओं में धारण करना यह भारतीय संस्कृति के मूर्धन्य प्रचारक भगवान शिवजी का बाह्य श्रृंगार भी पद-पद पर प्रेरणा देता है । भले विषधर है परंतु उसके गुण भी देखो । विषधर ऐसे ही किसी को नहीं काट लेता है, उसको कोई सताता है, परेशान करता है अथवा उसके प्राण खतरे में हैं ऐसी नौबत जब वह महसूस करता है तब वह अपना बनाया हुआ विष प्राण सुरक्षा के लिए खर्च करता है । ऐसे ही मनुष्य को चाहिए कि सेवा, सुमिरन, तप से उसे जो ऊर्जा मिली है उसको वह जरा-जरा बात में खर्च न करे, उसको यत्न करके सँभाल के रखे, क्रुद्ध होकर अपना तप नाश न करे ।

कुछ दैविक साँपों के फन पर मणि होती है । विषधर में भी प्रकाशमय मणि इस बात की ओर संकेत करती है कि समाज में कितना भी जटिल, दुष्ट, तुच्छ दिखने वाला व्यक्ति हो पर उसमें भी ज्ञान-प्रकाशरूपी आत्म-मणि है, उस मणि का आदर करें । पाप से नफरत करो, पापी से नहीं क्योंकि पापी की गहराई में भी वही आत्मारूपी मणि छुपी है, परमात्मारूपी प्रकाश छुपा है । द्वेष से द्वेष बढ़ता है किंतु क्षमा से, उदारता से द्वेष प्रेम में बदलता है । द्वेषावतार साँप… उसके प्रति भी नाग पंचमी के दिवस को निमित्त बनाकर प्रेम और सहानुभूति रखते हुए उसकी पूजा करने से उसके चित्त का द्वेष शांत होता है । चूहे और इतर जीव-जंतुओं को सफा करके खेत-खलिहान की रक्षा करने में सहयोगी सिद्ध होता है, तो उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भी नाग पंचमी का उत्सव ठीक ही है । द्वेष और भय से बचने के लिए भी नाग पंचमी का उत्सव चाहिए ।

तुझमें राम मुझमें राम सब में राम समाया है ।

कर लो सभी से प्यार जगत में कोई नहीं पराया है ।।

कैसी है सनातन धर्म की सुन्दर व्यवस्था !

अमृतबिन्दु – पूज्य बापू जी

ऐसा चिंतन न करो जिससे दुःख पैदा हो, आसक्ति और लोभ पैदा हो, ऐसा चिंतन करो कि चिंतन जहाँ से होता है उसका चिंतन हो जाय ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 11 अंक 355

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

धन्य हैं ऐसे सर्वसमर्थ सद्गुरुदेव तथा अद्भुत हैं उनकी लीलाएँ


पूज्य श्री का आत्मिक दिव्य प्रेम, सरल, मधुर वाणी और योग-सामर्थ्य ऐसे मोहक हैं कि वे जहाँ-जहाँ जाते हैं वहाँ परायों को अपना बना लेते हैं और अपनों को उत्साहित करके परमात्मा के पथ पर अग्रसर कर देते हैं । डालते हैं कुछ घटनाओं पर एक नज़रः

भयंकर बाढ़ थामी

सन् 1973 में साबरमती नदी में भयंकर बाढ़ आयी थी । नदी खतरे के स्तर को भी लाँघकर निरंकुश बह रही थी । नदी से 30 फीट ऊपर आश्रम के प्रांगण में बाढ़ का पानी पहुँचने की तैयारी में था । चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दे रहा था । आश्रम एक द्वीप जैसा बन गया था ।

भक्तों ने बापू जी को सारी स्थिति बतायी ।

पूज्य श्री आये और बोलेः ″इसमें क्या बड़ी बात है ! लाओ, दही लाओ । चलो, एक-दो चम्मच मेरे अँगूठे पर डालो ।″

बापू जी ने दही लगे अँगूठे से पानी को स्पर्श किया, अपना चरण डाला और मानो उस पावन स्पर्श के लिए ही नदी ऊपर उठी हो ऐसे वह धीरे-धीरे शांत हो गयी । बाढ़ का पानी नीचे उतर गया ।

रेडियो पर 30 फीट पानी बढ़ने की सम्भावना प्रसारित हो रही थी परंतु पानी 22.5 फीट से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा ।

9 मिनट भी नहीं बैठने वाला 9 घंटे ध्यान में बैठा !

बात उस समय की है जब पूज्य बापू जी आबू की गुफा में रहते थे । एक दिन मनोहर नामक एक तारबाबू, जो माउंट आबू पोस्ट ऑफिस में काम करते थे, पूज्य श्री के पास आये और बोलेः ″स्वामी जी ! आज सोचा कि आपके दर्शन करके ही नौकरी पर जाऊँ । मुझे 10 बजे जाना है ।″

पूज्य श्रीः ″अच्छा, अभी तो न ही बजे हैं । थोड़ी देर ध्यान में बैठ जा, फिर जाना ।″

वे पास वाली गुफा में जाकर ध्यान में बैठ गये। जब ध्यान से जागे तो शाम के 6 बज चुके थे ।

उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा ‘अरे ! 6 बज गये । अभी-अभी तो स्वामी जी की आज्ञा से मैं ध्यान में बैठा था और शाम हो गयी ! आज नौकरी पर नहीं जा पाया । खैर, बाहर की नौकरी पर नहीं जा पाया लेकिन मेरी भीतरी चिंताएँ, शंकाएँ और मुसीबतें दूर हो गयीं । 9 मिनट भी नहीं बैठने वाला मैं आज 9 घंटे ध्यान में बैठा ! बापू जी ! आपको हजार-हजार वंदन !’

एक ही समय दो जगह लिये दो रूप

लगभग चार दशक पहले की बात है । मोटेरा (अहमदाबाद) आश्रम में शाम के समय पूज्य बापू जी का सत्संग चल रहा था । सबसे आगे बैठे सरदार नगर, अहमदाबाद के मंघनमल जी को अपनी मृतक साली का तीसरा मनाने जाना था किंतु उन्होंने सत्संग के बीच में उठने का पाप नहीं किया । उनके अंतर्मन में चल रहा था, ‘बापू जी ! क्या करूँ ?’ मन में बड़ी उधेड़ बुन चलने के बाद भी वे भगवान और गुरुदेव को प्रार्थना करके शाम के 7 बजे तक सत्संग सुनते ही रहे ।

उधर उनकी मृतक साली के घर पूज्य बापू जी मंघनमल का शरीर धारण कर तीसरा मनाने पहुँच गये और लोगों को सांत्वना दी । मंघनमल जब सत्संग के बाद साली के घर जाकर माफी माँगने लगे, तब उन्हें हकीकत का पता लगा और उनकी आँखों से प्रेम के आँसू बह चले ।

पूज्य बापू जी के सत्संग में आता हैः ″हमारी प्रीति ईश्वर में हो जाय, बाकी का सब ठीक हो जाता है । यह कैसी ईश्वर की सत्ता है कि जब आप ईश्वर में रहते हैं तो आपके लिए ईश्वर नाई बनते हैं (जैसे सेन नाई के लिए नाई बने थे), दाल और चावल देने वाले बालकुमार बन सकते हैं (जैसे श्रीधर स्वामी के घर बालकुमार बन के गये थे), पेय का कमंडल और केला लाने वाले ग्रामीण बन सकते हैं (जैसे पूज्य बापू जी के जीवन में देखा गया), नरसिंह मेहता का रूप धारण करके काम कर लेते हैं तो मंघनमल बने तो क्या आश्चर्य है !

ईश्वर में आप खो जाते हैं तो फिर दयालु ईश्वर सम्भाल लेते हैं ।

संतन के कारज सगल सवारे ।। (गुरुवाणी)

ये तो एक दो दृष्टान्त सामने आये लेकिन आप ईश्वर में लग जाओ तो आप सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसा कैसे हो गया ! हम प्रयत्न करते तो भी इतना बढ़िया काम नहीं हो सकता था ।″

मिला अक्षयपात्र

कतारगाम, सूरत (गुजरात) के भक्तों को बापू जी ने गरीबों में भंडारा करने हेतु थोड़ा सा सामान दिया और कहा कि इसे दस दिन तक बाँटना । सामान सिर्फ दो दिन तक बँट सके उतना ही था लेकिन चमत्कार ! सामान खुले हाथों 10 दिन तक बँटता रहा पर खत्म होने का नाम नहीं ! इस आश्चर्य को देख सामान की गणना की तो जितना सामान बापू जी ने दिया था, उससे भी अधिक बचा था जो करीब 100 लोगों में और बँट सकता था । किंतु आश्चर्य ! उसे भक्त 5 गाँवों में बाँटते रहे परंतु खत्म नहीं हो रहा था ! बापू जी से प्रार्थना करने पर वह खत्म हुआ । बापू जी के इस अक्षयपात्र की लीला को सभी ने प्रणाम किया ।

पूज्य श्री के योग सामर्थ्य की ऐसी घटनाएँ अनेक भक्तों ने अपने जीवन में प्रत्यक्ष देखी हैं । धन्य हैं से सर्वसमर्थ सद्गुरुदेव तथा अद्भुत हैं उनकी लीलाएँ, जो समय-समय पर अभिव्यक्त होकर मानवमात्र को सत्यपथ पर चलने की पावन प्रेरणा देती रहती हैं । जिनको ऐसे समर्थ संत-सद्गुरु प्राप्त होते हैं, ऐसे संत-महापुरुषों का पावन सान्निध्य मिलता है वे साधक धन्य-धन्य हैं !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 9,10 अंक 355

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

दृष्टि पड़ने मात्र से मिली जीवन को सही दिशा


पहले मैं दारू पीना, मांसाहार करना आदि दुर्व्यसनों में बुरी तरह लिप्त था । किसको कैसे मारना, कैसे झगड़ा करना, ऐसे ही विचार दिमाग में घूमते थे । ऑफिस में, घर पर सभी लोग मुझसे बहुत परेशान रहते थे । एक घटना में मुझ पर हाफ मर्डर का केस भी बन गया था ।

बापू जी का नागपुर में सत्संग था । लोग दर्शन के लिए रास्ते पर खड़े थे । कुतूहलवश मैं भी वहाँ पहुँच गया । मन में चल रहा था कि ‘ऐसे संत तो बहुत देखे हैं…’ इतने में पूज्य बापू जी की गाड़ी आ गयी और उनकी दृष्टि मेरे ऊपर पड़ी । दृष्टि में न जाने कैसा तेज था कि मैं देखता ही रह गया । मेरे मन के खूँखार विचार अवरुद्ध हो गये और मुझे बापू ही बापू दिखने लगे । बापू जी से अगले ही महीने मैंने दीक्षा ले ली । मेरे दुर्गुण अपने-आप छूटते गये और पूरा जीवन ही बदल गया । 22 साल से मेरे ऊपर चल रहा केस भी खत्म हो गया । पहले मेरे पास रहने के लिए स्वयं का घर तक नहीं था । गुरुकृपा से मेरा घर बन गया और मैंने 17 एकड़ जमीन भी खरीद ली । मुझे ध्यान, जप व सेवा में इतना रस आने लगा कि 1 लाख के ऊपर सैलरी वाली नौकरी को भी मैंने रिटायरमेंट के 6 साल पहले ही छोड़ दिया । आज गुरुकृपा से मेरे हृदय में जो शांति और आनंद है, उसके आगे उतनी सैलरी भी कोई मायने नहीं रखती ।

पूज्य बापू जी की कृपा से जनवरी 2021 में मेरे बेटे का विवाह ऐसे विलक्षण ढंग से हुआ कि निगुरे लोग भी बोल उठे कि ‘ऐसी शादी हमने आज तक नहीं देखी !’ हमने शादी के एक दिन पहले गाँव में मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम’ करवाया । शादी के दिन गाड़ी पर पूज्य बापू जी का बड़ा बैनर लगा के भजन-कीर्तन चलाते हुए पूरे गाँव में कीर्तन यात्रा निकाली । कैलेंडर व ऋषि प्रसाद बाँटी । 439 मेहमानों को ऋषि प्रसाद का सदस्य बनाया । विवाह स्थल पर दो-ढाई हजार लोगों की उपस्थिति में पूज्य बापू जी की आरती बड़े ही धूमधाम से करवायी । इस तरह से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया था । मेरा जीवन तो नाली के कीड़े की तरह नीचा था लेकिन पूज्य बापू जी की कृपा से रसमय और साधनामय हो गया ।

  • महादेव एकड़े, दूरभाषः 7620155056

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 25 अंक 355

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ