मेरी उम्र 45 साल है और मैं बिल्कुल पढ़ी-लिखी नहीं हूँ । मेरे घर ऋषि प्रसाद आती थी पर मैं पढ़-लिख नहीं पाती थी, जिससे बहुत दुःख होता था । मैं प्रार्थना करतीः ″बापू जी मुझे पढ़ना सिखा दो ताकि मैं आपके अमृतवचन पढ़ सकूँ ।
मैं गुरुपूनम पर पूज्य श्री के दर्शन हेतु जोधपुर गयी । गाड़ी में से बापू जी ने आशीर्वाद दिया । मैं अपलक नेत्रों से गुरुदेव की मधुमय छवि को निहार रही थी । मुझे लगा जैसे गुरुदेव मुझ पर अपनी कृपा बरसा रहे हों ।
बापू जी ने सत्संग में एक विशेष ग्रह-नक्षत्र योग पर जपने हेतु विद्यालाभ का मंत्र, बीजमंत्र एवं विधि बतायी है । कुछ दिन बाद वह योग आया और मैं उस दिन आश्रम गयी । कुछ बहने मंत्र जप रही थीं, मैंने अपनी इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने मंत्रजप में मेरी मदद की । एक बहन मंत्र पढ़ती गयीं और मैं दोहराती गयी । ऐसे एक माला जप हो गया और उसके बाद विधि-अनुसार मेरी जीभ पर बीजमंत्र लिख दिया गया ।
सुबह 3 बजे मैंने सपना देखा कि सरस्वती माता मेरे भ्रूमध्य पर प्रकट हुई हैं और पूज्य बापू जी बगल में खड़े होकर आशीर्वाद दे रहे हैं । उसके बाद नींद खुल गयी । सुबह जब पूजा करने बैठी तो प्रेरणा हुई कि श्री आशारामायण का पाठ कर । जैसे ही पाठ करना आरम्भ किया तो मैं दंग रह गयी ! मुझे पढ़ना आ गया । आज मैं भगवद्गीता, गुरुगीता आदि का श्लोकसहित पाठ करती हूँ और बड़े ही आनंद के साथ ऋषि प्रसाद को पढ़कर अपना जीवन धन्य अनुभव करती हूँ !
निर्मला बड़गूजर, मकरपुरा गाँव, वडोदरा (गुजरात)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 28 अंक 355
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