‘मानव सेवा संघ’ के संस्थापक स्वामी शरणानंद जी से किसी ने पूछाः “आप सत्संग समारोह तो करते हैं परंतु उस पर इतना खर्चा !” शरणानंद जी ने कहाः “मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इतने खर्चे के बाद अगर एक भी भाई के जीवन में, एक भी बहन के जीवन में जीवन की वास्तविक माँग जागृत हो जाय तो उस पर सारे विश्व की सम्पत्ति न्योछावर कर देना भी कम है । आपने सत्संग का महत्त्व नहीं समझा है । सत्संग के लिए हँसते-हँसते प्राण भी दिये जा सकते हैं । सत्संग के लिए क्या नहीं दिया जा सकता ? आप यह सोचें कि सत्संग जीवन की कितनी आवश्यक वस्तु है । अगर आपके जीवन में सफलता होगी तो वह सत्संग से ही होगी । अगर जीवन में असफलता है तो वह असत् के संग से है ।” उक्त प्रश्न वे ही कर सकते हैं जिनको सत्संग के मूल्य का पता नहीं है, जिनकी मति-गति भोगों में भटकी हुई है । अगर दुनिया की सब सम्पत्ति खर्च करके भी ब्रह्मवेत्ता महापुरुष का सत्संग मिलता है तो भी सौदा सस्ता है । सत्संग में जो सुधार होता है वह कुसंग से थोड़े ही होगा ! सत्संग से जो सन्मति मिल्ती है वह भोग-संग्रह से थोड़े ही मिलेगी ! लाखों रुपये खर्च किये, व्यक्ति को पढ़ा दिया, डॉक्टर, बैरिस्टर बना दिया लेकिन सत्संग नहीं मिला तो बचा सकेगा अपने को कुसंग से ? नहीं । सत्संग व्यक्ति को भोग-संग्रह से बचाकर आंतरिक सुख का एहसास कराता है । स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 23 अंक 360 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ