Monthly Archives: January 2024

आत्मसुख पाने का यह महाव्रत ले लो – पूज्य बापू जी



आपको महान आत्मा का सुख पाना है तो एक महाव्रत ले लो ।
सुबह नींद से उठो, ‘जिसमें रातभर शांति पायी उस सच्चिदानंद प्रभु को
प्रणाम !…’ बस, चुप हो जाओ । गुरुमंत्र मिला है तो गुरुमंत्र जप लो,
नहीं तो चुप हो जाओ । सुबह का जाग्रत में 2 मिनट चुप होना बहुता
मायना रखता है ।
कोई कामकाज करो तो पहले थोड़ी देर गुरुमंत्र का जप करके चुप
हो जाओ, कामकाज में छक्के लगेंगे छ्क्के ! और फायदा होगा तो घमंड
नहीं होगा । फायदा हो और घमंड हुआ तो नुकसान हो गया आपका ।
बाहर से तो फायदा हुआ पर अँदर से नुकसान हो गया, आप अपने
सच्चिदानंद स्वभाव से गिर गये । बाहर नुकसान हो जाय और दुःख न
हो तो आपको नुकसान नहीं हुआ । लोग तो नुकसान हो चाहे न हो
दुःखी-सुखी होते रहते हैं । मैच में कोई जीता तो खुश हो जाते हैं, कोई
हारा तो दुःखी हो जाते हैं मुफ्त में । तुम्हारा सुख-दुःख पराश्रित न हो,
तुम्हारा सुख-दुःख शरीर के आश्रित न हो, मन और बुद्धि के आश्रित न
हो, तुम्हारे जीवन में सुख-दुःख रूपी द्वन्द्व न हो । ध्यान देना, बहुत
ऊँची बात है ब्रह्मज्ञान की ।
स्नातं तेन सर्वं तीर्थं दातं तेन सर्व दानम् ।
कृतं तेन सर्व यज्ञं येन क्षणं मनः ब्रह्मविचारे स्थिरं कृतम्।।
सारे तीर्थों में उसने स्नान कर लिया, सारा दान उसने दे दिया,
सारे यज्ञ उसने कर लिये, जिसने ब्रह्म परमात्मा के विचार में मन को
टिकाया ।
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 2, अंक 361

मौन का मजा – साईँ श्री लीलाशाह जी महाराज



ऐ गुरुमुखो ! तुमने कभी मौन का मजा लेकर देखा है ? यदि नहीं
तो लेकर देखो तो तुम्हें पता चले कि कितना आनंद आता है ! जिह्वा
को छोटी न समझो, यह जिह्वा धूप में बिठाये, यही छाया में, यही
जिह्वा मित्र को शत्रु बनाये तो यही शत्रु को मित्र बनाये ।
महात्मा गाँधी प्रत्येक सोमवार को मौन धारण करते थे । मौन-व्रत
करने से ही उन्हें ऐसी शक्ति प्राप्त होती थी जिससे दुनिया की कठिन
समस्याएँ भी वे मिनटों में हल कर देते थे । बोलने में तुम्हें बराबर
मजा आता है लेकिन कभी मौन का मजा लेकर तो देखो !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 19 अंक 363
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स्वस्तिक का महत्त्व क्यों ?



स्वस्तिक अत्यंत प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल प्रतीक
माना जाता रहा है । इसीलिए प्रत्येक शुभ और कल्याणकारी कार्य में
सर्वप्रथम स्वस्तिक का चिह्न अंकित करने का आदिकाल से ही नियम
है । स्वस्तिक शब्द मूलभूत सू और अस धातु से बना है । सु का अर्थ
है अच्छा, कल्याणकारी, मंगलमय । अस का अर्थ है – अस्तित्व, सत्ता ।
तो स्वस्तिक माने कल्याण की सत्ता, मांगल्य का अस्तित्व ।
स्वस्तिक शांति, समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक है । सनातन
संस्कृति की परम्परा के अनुसार पूजन के अवसरों पर, दीपावली पर्व पर,
बहीखाता पूजन में तथा विवाह, नवजात शिशु की छठी तथा अन्य शुभ
प्रसंगों में व घर तथा मंदिरों के प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक का चिह्न
कुमकुम से बनाया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि ‘हे प्रभु ! हमारा
कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अऩ्न, वस्त्र, वैभव आदि
आयें वे पवित्र हों ।’
किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में यह स्वस्ति मंत्र बोला जाता
हैः
स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्षर्योऽरिष्टनेमिः स्वस्ति नौ बृहस्पतिर्दधातु ।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।
महान कीर्ति वाले इन्द्रदेव ! हमारा कल्याण कीजिये, विश्व के
ज्ञानस्वरूप पूषादेव (सूर्यदेव) हमारा कल्याण कीजिए, जिनका हथियार
अटूट है ऐसे गरुड़देव ! हमारा मंगल कीजिये, बृहस्पति देव जी हमारे
घर में कल्याण की प्रतिष्ठा कीजिये ।’ (यजुर्वेदः 25.19)
स्वस्तिक का आकृति विज्ञान

स्वस्तिक हिन्दुओं का प्राचीन धर्म-प्रतीक है । यह आकृति ऋषि-
मुनियों ने अति प्राचीनकाल में निर्मित की थी । एकमेव अद्वितीय ब्रह्म
ही विश्वरूप में फैला है यह बात स्वस्तिक की खड़ी और आड़ी रेखाएँ
समझाती हैं । स्वस्तिक की खड़ी रेखा ज्योतिर्लिंग का सूचन करती है
और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है । स्वस्तिक की चार भुजाएँ
यानी भगवान श्रीविष्णु के चार हाथ । भगवान विष्णु अपने चार हाथों से
दिशाओँ का पालन करते हैं । देवताओं की शक्ति और मनुष्य की
मंगलमय कामनाएँ – इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक यानी
‘स्वस्तिक’ !
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार भी स्वस्तिक एक मांगलिक चिह्न है ।
भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के चरणों में भी स्वस्तिक चिह्न अंकित था

ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापू जी अपने सत्संगों में बताते हैं कि
”स्वस्तिक समृद्धि व अच्छे भावी का सूचक है । इसके दर्शन से
जीवनशक्ति बढ़ती है । स्वस्तिक के चित्र को पलकें गिराये बिना
एकटक निहारते हुए त्राटक का अभ्यास करके जीवनशक्ति का विकास
किया जा सकता है । आपके घर की दीवारों पर स्वस्तिक का चिह्न
अथवा ॐ का चित्र लगा दीजिए । उसको देखने से भी आपकी
आध्यात्मिक आभा बढ़ेगी और घर में सात्त्विकता बनी रहेगी ।”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 22 अंक 363
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