All posts by admin

आरती में कपूर का उपयोग क्यों ?


सनातन संस्कृति में पुरातन काल से आरती में कपूर जलाने की परम्परा है । आरती के बाद आरती के ऊपर हाथ घुमाकर अपनी आँखों पर लगाते हैं, जिससे दृष्टि-इन्द्रिय सक्रिय हो जाती है । पूज्य बापू जी के सत्संग वचनामृत में आता हैः ″आरती करते हैं तो कपूर जलाते हैं । कपूर वातावरण को शुद्ध करता है, पवित्र वातावरण की आभा पैदा करता है । घर में देव दोष है, पितृ दोष है, वास्तु दोष है, भूत-पिशाच का दोष है या किसी को बुरे सपने आते हैं तो कपूर की ऊर्जा उन दोषों को नष्ट कर देती है ।

बोलते हैं कि संध्या होती है तो दैत्य राक्षस हमला करते हैं इसलिए शंख, घंट बजाना चाहिए, कपूर जलाना चाहिए, आरती पूजा करनी चाहिए अर्थात् संध्या के समय और सुबह के समय वातावरण में विशिष्ट एवं विभिन्न प्रकार के जीवाणु होते हैं जो श्वासोच्छवास के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करके हमारी जीवनरक्षक कोशिकाओं से लड़ते हैं । तो देव – असुर संग्राम होता है, देव माने सात्त्विक कण और असुर माने तामसी कण । कपूर की सुगंधि से हानिकारक जीवाणु एवं विषाणु रूपी राक्षस भाग जाते हैं ।

वातावरण में जो अशुद्ध आभा है उससे तामसी अथवा निगुरे लोग जरा-जरा बात में खिन्न होते हैं पीड़ित होते हैं लेकिन कपूर और आरती का उपयोग करने वालों के घरों में ऐसे कीटाणुओं का, ऐसी हलकी आभा का प्रभाव टिक नहीं सकता है ।

अतः घर में कभी-कभी कपूर जलाना चाहिए, गूगल का धूप करना चाहिए । कभी-कभी कपूर की 1-2 छोटी गोली मसल के घर में छिटक देनी चाहिए । उसकी हवा से ऋणायन बनते हैं जो कि हितकारी हैं । वर्तमान के माहौल में घर में दिया जलाना अथवा कपूर की कभी-कभी आरती कर लेना अच्छा है ।

अकाल मृत्यु से रक्षा हेतु

भगवान नारायण देवउठी (प्रबोधिनी) एकादशी को योगनिद्रा से उठते हैं । उस दिन कपूर से आरती करने वाले को अकाल मृत्यु से सुरक्षित होने का अवसर मिलता है ।″

कपूर का वैज्ञानिक महत्त्व

कई शोधों के बाद विज्ञान ने कपूर की महत्ता को स्वीकारा है । कपूर अपने आसपास की हवा को शुद्ध करता है, साथ ही साथ शरीर को हानि पहुँचाने वाले संक्रामक जीवाणुओं को दूर रखने में मददगार होता है । इसकी भाप या सुगंध सर्दी-खाँसी से राहत देती है तथा मिर्गी, दिमागी झटके एवं स्थायी चिंता या घबराहट को कम करती है । कपूर की भाप या इसके तेल की उग्र सुगंध से नासिका के द्वार खुल जाते हैं । यह सुगंध श्वसन-मार्ग, स्वर तंत्र, ग्रसनी, नासिका-मार्ग तथा फुफ्फुस-मार्ग हेतु तुरंत अवरोध-निवारक का काम करती है । इसीलिए कपूर का उपयोग सर्दी-खाँसी की कई दवाओं (बाम आदि) में किया जाता है । कपूर भाप की सुगंध बलगमयुक्त गले की सफाई करके श्वसन संस्थान के मार्ग खुले करने में मदद करती है । कपूर मसलकर शरीर पर लगाने से यह रक्त प्रवाह बढ़ाता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2021, पृष्ठ संख्या 22, अंक 343

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

….इसी का नाम मोक्ष है ।


हिमालय की तराई में एक ब्रह्मनिष्ठ संत रहते थे । वहाँ का पहाड़ी राजा जो धर्मात्मा. नीतिवान और मुमुक्षु था, उनका शिष्य हो गया और संत का पास आकर उनसे वेदांत-श्रवण किया करता था  । एक बार उसके मन में शंका उत्पन्न हुई । उसने संत से कहाः ″गुरुदेव ! माया अनादि है तो उसका नाश होना किस प्रकार सम्भावित है ? और माया का नाश न होगा तो जीव को मोक्ष कैसे प्राप्त होगा ?″

संत ने कहाः ″तेरा प्रश्न गम्भीर है ।″ राजा अपने प्रश्न का उत्तर पाने को उत्सुक था ।

वहाँ के पहाड़ में एक बहुत पुरानी, कुदरती बड़ी गुफा थी । उसके समीप एक मन्दिर था । पहाड़ी लोग उस मन्दिर में पूजा और मनौती आदि किया करते थे । पत्थर की चट्टानों से स्वाभाविक ही बने होने से वह स्थान विकट और अंधकारमय था एवं अत्यंत भयंकर मालूम पड़ता था ।

संत ने मजदूर लगवाकर उस गुफा को सुरंग लगवा के खुदवाना आरम्भ किया । जब चट्टानों का आवरण हट गया तब सूर्य का प्रकाश स्वाभाविक रीति से उस स्थान में पहुँचने लगा ।

संत ने राजा को कहाः ″बता, यह गुफा कब की थी ?″

राजाः ”गुरुदेव ! बहुत प्राचीन थी, लोग इसको ‘अनादि गुफा कहते थे ।″

″तू इसको अनादि मानता था या नहीं ?″

″हाँ, अनादि थी ।″

″अब रही या नहीं रही ?″

″अब नहीं रही ।″

″क्यों ?″

″जिन चट्टानों से यह घिरी थी उन चट्टानों के टूट जाने से गुफा न रही ।″

″गुफा का अन्धकार भी तो अनादि था, वह क्यों न रहा ?″

राजाः ″आड़ निकल जाने के कारण सूर्य का प्रकाश जाने लगा और इससे अन्धकार भी न रहा ।″

संतः ″तब तेरे प्रश्न का ठीक उत्तर मिल गया । माया अनादि है, अन्धकारस्वरूप है किन्तु जिस आवरण से अँधेरे वाली है उस आवरण के टूट जाने से वह नहीं रहती ।

जिस प्रकार अनादि कल्पित अँधेरा कुदरती गुफा में था उसी प्रकार कल्पित अज्ञान जीव में है । जीवभाव  अनादि होते हुए भी अज्ञान से है । अज्ञान आवरण रूप में है इसलिए अलुप्त परमात्मा का प्रकाश होते हुए भी उसमें नहीं पहुँचता है ।″

जब राजा गुरु-उपदेश द्वारा उस अज्ञानरूपी आवरण को हटाने को तैयार हुआ और उसने अपने माने हुए भ्रांतिरूप बंधन को खो के वैराग्य धारण कर अज्ञान को मूलसहित नष्ट कर दिया, तब ज्ञानस्वरूप का प्रकाश यथार्थ रीति से होने लगा, यही गुफारूपी जीवभाव का मोक्ष हुआ ।

माया अनादि होने पर भी कल्पित है इसलिए कल्पित भ्रांति का बाध (मिथ्यापन का निश्चय) होने से अज्ञान नहीं रह सकता और जब अज्ञान नहीं रहता तब अनादि अज्ञान में फँसे हुए जीवभाव का मोक्ष हो जाता है । अनादि कल्पित अज्ञान का छूट जाना और अपने वास्तविक स्वरूप-आत्मस्वरूप में स्थित होना इसी का नाम मोक्ष है । चेतन, चिदाभास और अविद्या इन तीनों के मिश्रण का नाम जीव है । तीनों में चिदाभास और अविद्या कल्पित, मिथ्या हैं, इन दोनों (चिदाभास और अविद्या) का बाध होकर मुख्य अद्वितीय निर्विशेष शुद्ध चेतन मात्र रहना मोक्ष है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2021, पृष्ठ संख्या 24, 25 अंक 343

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अभागे आलू से सावधान !


″आलू रद्दी से रद्दी कन्द है । इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए हितकारी नहीं है । तले हुए आलू का सेवन तो बिल्कुल ही न करें । आलू का तेल व नमक के साथ संयोग विशेष हानिकारक है । जब अकाल पड़े, आपातकाल हो और खाने को कुछ न मिले तो आलू को आग में भून कर केवल प्राण बचाने के लिए खायें ।″ – पूज्य बापू जी ।

आचार्य चरक ने सभी कंदों में आलू को सबसे अधिक अहितकर बताया है । आलू को तेल में तलने से वह विषतुल्य काम करता है । आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार उच्च तापमान पर या अधिक समय तक आलू को तेल में तलने से स्वाभाविक ही एक्रिलामाइड का स्तर बढ़ता है, जो कैंसर-उत्पादक तत्त्व सिद्ध हुआ है । कुछ शोधकर्ताओं ने तले हुए आलू के अधिक सेवन से मृत्यु दर में वृद्धि होती पायी । इसका सेवन मोटापा व मधुमेह का भी कारण बन सकता है ।

हाल में सूरत आश्रम के हमारे गुरुभाई रूपाभाई का देहावसान हुआ तब पूज्यश्री ने उनके लिए कहा कि ″वह कर्मयोगी, बहादुर एवं आखिरी साँस तक निभाने वाला था, उसने ऊँचे लोक की प्राप्ति की ।″ ऐसे हमारे समाज हितैषी गुरुभाई रूपाभाई तथा राजूभाई दिलखुश, राजूभाई गोगड़, अशोक जी जाट एवं और भी कई भक्तों को अभागे आलू की वानगियों ने हमारे बीच से छीन लिया ।

आलू का भूल कर भी सेवन न करें । पहले के खाये हुए आलू का शरीर पर कुप्रभाव पड़ा हो तो उसे निकालने के लिए रात को 3-4 ग्राम त्रिफला चूर्ण या 3-4 त्रिफला टेबलेट पानी से लेना हितकारी होगा ।

पूज्य बापू जी को पहले फालसीपेरम मलेरिया हुआ था जो एलोपैथिक दवाओं से मिटा लेकिन उन दवाओं से 5 साइड इफेक्ट्स हुए तब पूज्यश्री  ने भी त्रिफला रसायन बनवा के 40-40 दिन का प्रयोग किया था । इससे 5 में से 4 साइड इफेक्ट्स – आँखों का तिरछापन, कानों का बहरापन, यकृत (लिवर) व गुर्द (किडनी) की समस्या ये ठीक हुए । 20-22 साल पुराना ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया, जिसे ‘सुसाइड डिसीज़’ भी कहते हैं (इसकी भयंकर पीड़ा का विवरण इंटरनेट पर भी देख सकते हैं ), वह भी त्रिफला रसायन से नियंत्रण में है । पूज्यश्री अब भी कभी-कभी त्रिफला लेते रहते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2021, पृष्ठ संख्या 32, अंक 343

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ