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सेवाभाव से घर में प्रकटाये महान संत


संत टेऊँराम जी पुण्यतिथिः 8 जून 2019, जन्यतीः 8 जुलाई

सिंध प्रदेश के हैदराबाद जिले में सिंधु नदी के तट पर बसे खंडू गाँव में भक्त चेलाराम जी रहते थे । वे इतने संतसेवी थे कि कहीं भी किन्हीं सत्पुरुष, महात्मा को देखते तो उनको अपने घर में ले जाते और प्रेमपूर्वक भोजनादि से संतुष्ट करके ही उन्हें विदा करते । उनके घर में नियमित रूप से कथा-कीर्तन होता रहता था । चेलाराम जी की पत्नी कृष्णा देवी भी भक्ति र सेवा में पति से कम नहीं थीं ।

एक बार एक संत-मंडली खंडू में आयी । भक्त जी संतों को घर लेकर आये और श्रद्धापूर्वक उनका भलीभाँति आदर-सत्कार किया । चेलाराम जी की प्रार्थना पर सत्संग का आयोजन हुआ । सत्संग-कीर्तन करते हुए वे संतपुरुष भगवत्प्रेम में, अपने स्वरूप की मस्ती में इतने तो तन्मय हो गये कि उनका दर्शन करने आये लोग भी अपने शरीर की सुध-बुध भूलकर कीर्तन में तल्लीन हो गये ।

कृष्णा देवी भी आनंदमग्न हो गयीं । वे मन-ही-मन भगवान से प्रार्थना करने लगीं की ‘हे प्रभो ! इन सत्पुरुषों जैसे योगी महात्मा मेरे घर में पुत्ररूप में अवतरित हों ।’ सत्संग पूरा हुआ । चेलाराम जी व कृष्णादेवी की सेवा से संतुष्ट हुए उन महात्माओं ने उनसे कुछ माँगने को कहा । तब कृष्णा देवी ने अपने मन की बात संतों के श्रीचरणों में निवेदित की ।

महात्माओं ने आशीर्वाद देते हुए कहाः “जो संतों की सेवा व सत्संग का श्रवण-मनन करते हैं, दूसरों तक सत्संग पहुँचाने में निमित्त बनते हैं ऐसे पुण्यात्मा भक्तों पर भगवान विशेष प्रसन्न रहते हैं और उनकी शुभेच्छा की पूर्ति भी करते हैं । आपके शुभ कर्म ही आपके घर में एक दिव्यात्मा के रूप में अवतरित होंगे ।” संतों ने कृष्णा देवी को कुछ साधना-विधि भी बतायी ।

कृष्णा देवी ने चालीस दिन का व्रत अनुष्ठान प्रारम्भ किया । वे अपना अधिकांश समय सत्शास्त्र अध्ययन, महापुरुषों के वचनों का चिंतन-मनन, परमात्म-ध्यान आदि में लगाने लगीं । अनुष्ठान की अंतिम रात्रि को ईश्वर ने कृष्णा देवी को स्वप्न में कहाः ‘हे कल्याणी ! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ । तुम्हारा संकल्प शीघ्र ही पूर्ण होगा ।’ यह खबर सुनकर कृष्णा देवी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा ।

समय पाकर उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । बालक को एक तरफ जहाँ माता-पिता से उत्तम संस्कार मिले, वहीं दूसरी तरफ सद्गुरु आसूराम जी का कृपा-प्रसाद मिला और आगे चलकर ये संत टेऊँरामजी के नाम से प्रसिद्ध हो गये । सद्गुरुकृपा से उन्हें जो मिला उसका वर्णन करते हुए वे कहते हैं-

जो कुछ दीसै1 सोई है प्रभु, उस बिन और न कोई है ।

नाम-रूप यह जगत बना जो, वासुदेव भी वोही है ।।

अस्ति2 भाति3 प्रिय4 रूप जो, सत् चित् आनंद सोई है ।

कह टेऊँ गुरु भ्रम मिटाया, जहँ देखूँ तहँ ओई5 है ।।

1 दिख रहा 2 सदा विद्यमान, शाश्वत अस्तित्व 3 ज्ञानस्वरूप 4 आनंदस्वरूप 5 वही (परमात्मा)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2019, पृष्ठ संख्या 21 अंक 317

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पर्यावरण घातक वृक्ष हटायें


आरोग्य, समृद्धि व पुण्य प्रदायक वृक्ष लगायें

विश्व पर्यावरण दिवसः 5 जून 2019

वास्तव में प्रकृति और आप एक दूसरे से जुड़े हैं । आप जो श्वास छोड़ते हैं वह वनस्पतियाँ लेती हैं और वनस्पतियाँ जो श्वास छोड़ती हैं वह आप लेते हैं । आपके भाई-बंधु हैं वनस्पतियाँ ।

हम एक दिन में लगभग 1-1.5 किलो भोजन करते हैं, 2-3 लीटर पानी पीते हैं लेकिन 21600 श्वास लेते हैं । उसमें 11 हजार लीटर हवा लेते छोड़ते हैं, जिससे हमें 10 किलो भोजन का बल मिलता है । अब यह वायु जितनी गंदी (प्रदूषित) होती है, उतना ही लोगों का (वायुरूपी) भोजन कमजोर होता है तो स्वास्थ्य भी कमजोर होता है । अब ‘गंदी वायु, गंदी वायु….’ कह के चिल्लायें इससे काम नहीं चलता । वायु को गंदा न होने दें तो वह अच्छी बात है । अतः नीम, पीपल, आँवला, तुलसी वटवृक्ष और दूसरे जो भी पेड़ हितकारी हैं वे लगाओ और हानिकारक पेड़-नीलगिरी, अंग्रेजी बबूल व गाजर-घास हटाओ ।

नीलगिरी करता जीवनी शक्ति का नाश

नीलगिरी (सफेदा) के पेड़ की बड़ी खतरनाक, हानिकारक हवा होती है । ये वायु को गंदा करते हैं, जीवनीशक्ति हरते हैं । पानी का स्तर नीचे गिराकर भूमि को बंजर बना देते हैं ।

लोगों को सलाह दी गयी कि ‘विदेशीयो को नीलगिरी का तेल चाहिए इसलिए नीलगिरी के पेड़ लगाओ, तुम्हारी आर्थिक स्थिति अच्छी हो जायेगी ।’ आर्थिक स्थिति तो अच्छी क्या हो, शारीरिक स्थिति का विनाश कर दिया नीलगिरी ने । नीलगिरी के पेड़ लगाओ नहीं और किसी के द्वारा लगवाओ नहीं ।

अंग्रेजी बबूल से होता हवामान खराब

दूसरा हानिकारक वृक्ष है अंग्रेजी बबूल । यह काँटेदार पेड़ हवामान को अशुद्ध करता है, पानी का स्तर नीचे गिरा देता है । बबूल का धुआँ भी नुकसानकारक है और इसका दर्शन भी ऐसा ही होता है । सड़कों पर जाते समय दोनों तरफ ये जंगली बबूल देखते तो मन उद्विग्न होता है जबकि पीपल को देखकर मन प्रसन्न होता है, आह्लादित होता है ।

गाजर-घास से होती भूमि बंजर

तीसरी हानिकारक वनस्पति है गाजर-घास । इसको किसान काँग्रेस भी बोलते हैं । इसे न गाय खाती है, न भैंस, न बकरी और न ही गधा खाता है । यह खेतों में ऐसे फैलती है जैसे सूखी घास में आग लग जाय । इससे हजारों एकड़ जमीन खराब हो गयी । इस घास को नष्ट करने के लिए लोगों को, अधिकारियों को, वन विभाग और सरकार को सतर्क रहना चाहिए ।

पर्यावरण की दृष्टि से बहुत उत्तम वृक्ष है, पीपल, बड़, नीम, तुलसी व आँवला । इनकी बड़ी भारी महिमा है हमारी सनातन संस्कृति में । अब विज्ञान ने भी समर्थन किया तो आधुनिक पढ़ाई से प्रभावित लोग जल्दी समझ जाते हैं, मान जाते हैं ।

पीपल से मिलती आरोग्यता, सात्त्विकता व होती बुद्धिवृद्धि

पीपल सात्त्विक वृक्ष है । पीपल देव की पूजा से लाभ होता है, उनकी सात्त्विक तरंगें मिलती हैं । हम भी बचपन में पीपल की पूजा करते थे । इसके पत्तों को छूकर आने वाली हवा चौबीसों घंटे आह्लाद और आरोग्य प्रदान करती है । बिना नहाये पीपल को स्पर्श करते हैं तो नहाने जितनी सात्त्विकता, सज्जनता चित्त में आ जाती है और नहा-धोकर अगर स्पर्श करते हैं तो दुगुनी आती है । बालकों के लिए पीपल का स्पर्श बुद्धिवर्धक है । बालकों को इसका विशेषरूप से लाभ लेना चाहिए । रविवार को पीपल का स्पर्श न करें । पीपल के वृक्ष से प्राप्त होने वाले ऋण आयन, धन ऊर्जा स्वास्थ्यप्रद हैं । अतः पीपल के पेड़ खूब लगाओ । अगर पीपल घर या सोसायटी की पश्चिम दिशा में हो तो अनेक गुना लाभकारी है । (क्रमशः)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2019, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 317

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उनका योगक्षेम सर्वेश्वर स्वयं वहन करते हैं-पूज्य बापू जी


‘भगवान की जिम्मेदारी है पर आप विश्वास नहीं करते’ गतांक से आगे

सौ अश्वमेध यज्ञों की दक्षिणा

एक दिन महात्मा गंगा-किनारे भ्रमण कर रहे थे । एक दिन उन्होंने संकल्प कियाः ‘आज किसी से भी भिक्षा नहीं माँगूँगा । जब मैं परमात्मा का हो गया, संन्यासी हो गया तो फिर अन्य किसी से क्या माँगना ? जब तक परमात्मा स्वयं आकर भोजन के लिए न पूछेगा तब तक किसी से न लूँगा ।’ यह संकल्प करके, नहा-धोकर वे गंगा-तट पर बैठ गये ।

सुबह बीती… दोपहर हुई….. एक दो बज गये…. भूख भी लगी किंतु श्रद्धा के बल से वे बैठे रहे । उन्हें सुबह से वहीं बैठा हुआ देखकर किसी सद्गृहस्थ ने पूछाः “बाबा ! भोजन करेंगे ?”

“नहीं ।”

गृहस्थ अपने घर गया लेकिन भोजन करने को मन नहीं माना । वह अपनी पत्नी से बोलाः “बाहर एक महात्मा भूखे बैठे हैं । हम कैसे खा सकते हैं ?”

यह सुनकर पत्नी ने भी नहीं खाया । इतने में विद्यालय से उनकी बेटी घर आ गयी । थोड़ी देर बाद उनका बेटा भी आ गया । दोनों को भूख लगी थी किंतु वस्तुस्थिति जान के वे भी भूखे रहे ।

सब मिल के उन संन्यासी के पास गये और बोलेः “चलिये महात्मन् ! भोजन ग्रहण कर लीजिये ।”

महात्मा ने सोचा कि ‘एक नहीं तो दूसरा व्यक्ति आकर तंग करेगा ।’ अतः वे बोलेः “मेरे भोजन के बाद मुझे जिस घर से सौ अश्वमेध यज्ञों के फल की दक्षिणा मिलेगी, उसी घर का भोजन करूँगा ।”

घर आकर नन्हीं बालिका पूजा-कक्ष में बैठी एवं परमात्मा से प्रार्थना करने लगी । शुद्ध हृदय से, आर्तभाव से की गयी प्रार्थना तो प्रभु सुनते ही हैं । अतः उसके हृदय में परमात्म-प्रेरणा हुई ।

वह पूजा-कक्ष से बाहर आयी । अपने भाई के हाथ में पानी का लोटा दिया एवं स्वयं भोजन की थाली सजाकर दूसरी थाली से उसे ढक के भाई को आगे करके चली । भाई पानी छिड़कता हुआ जा रहा था । पानी के छिड़कने से शुद्ध बने हुए मार्ग पर वह पीछे-पीछे चल रही थी । आखिर में बच्ची ने जाकर संन्यासी के चरणों में थाल रखा एवं भोजन करने की प्रार्थना कीः “महाराज ! आप भोजन कीजिये । आप दक्षिणा के रूप में सौ अश्वमेध यज्ञों का फल चाहते हैं न ? वह हम आपको दे देंगे ।”

संन्यासीः “तुमने, तुम्हारे पिता एवं दादा ने एक भी अश्वमेध यज्ञ नहीं किया होगा फिर तुम सौ अश्वमेध यज्ञों का फल कैसे दे सकती हो ?”

बच्चीः “महाराज ! आप भोजन करिये । सौ अश्वमेध यज्ञों का फल हम आपको अर्पण करते हैं । शास्त्रों में लिखा है कि ‘भगवान के सच्चे भक्त जहाँ रहते हैं, वहाँ पर एक-एक कदम चलकर जाने से एक-एक अश्वमेध यज्ञ का फल होता है ।’ महाराज ! आप जहाँ बैठे हैं, वहाँ से हमारा घर 200-300 कदम दूर है । इस प्रकार हमें इतने अश्वमेध यज्ञों का फल मिला । इनमें से सौ अश्वमेध यज्ञों का फल हम आपके चरणो में अर्पित करते हैं, बाकी हमारे भाग्य में रहेगा ।”

उस बालिका की शास्त्रसंगत एवं अंतःप्रेरित बात सुन के संन्यासी ने उस बच्ची को आशीर्वाद देते हुए भोजन स्वीकार कर लिया ।

कैसे हैं वे सबके अंतर्यामी प्रेरक परमेश्वर ! ‘भक्त अपने संकल्प के कारण कहीं भूखा न रह जाय’ यह सोचकर उन्होंने ठीक व्यवस्था कर ही दी । यदि कोई उनको पाने के लिए दृढ़तापूर्वक संकल्प करके चलता है तो उसके योगक्षेम का वहन वे सर्वेश्वर स्वयं करते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2019, पृष्ठ संख्या 8, 10 अंक 317

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