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पूज्य बापू जी के साथ आध्यात्मिक प्रश्नोत्तरी



साधिका बहन का प्रश्नः गुरुदेव मैंने ॐकार मंत्र का अनुष्ठान चालू
किया तो उसमें इतना रस आने लगा कि गुरुमंत्र का अनुष्ठान ही नहीं
होता । इससे गुरुमंत्र का प्रभाव कम तो नहीं होगा न ?
पूज्य बापू जीः देखो, अगर संसारी स्वार्थ है तो अकेला ॐकार मंत्र
स्त्रियों को ज्यादा नहीं जपना चाहिए, ऐसा भी है ।
किसी का स्त्री शरीर है पर यदि वह अपने को स्त्री नहीं मानती है,
अपने को ईश्वर मानती है, ईश्वरप्राप्ति का महत्त्व है तो उसके लिए
ॐकार मंत्र गुरुमंत्र ही है । जिसकी शादी-वादी की इच्छा है और ॐकार
मंत्र करती है तो फिर नहीं जमेगा ।
अन्य साधिकाः बापू जी ! हमको आप ही चाहिए । मैं क्या करूँ ?
पूज्य बापू जीः हाँ, हम तो हैं ही न, हमको तू हटा सके ऐसी तेरे
बाप में ताकत नहीं है ! हमको केवल पहचान ले बस और क्या है !
‘आप ही चाहिए…’ हम कोई दूर हैं तेरे से, दुर्लभ हैं ?
…तो मैं कहाँ बैठकर बोल रहा हूँ ? जिसको यह चाहती है, मैं वहीं
बैठ के बोल रहा हूँ, यह दाढ़ीवाला, मूँछों वाला पुरुष होकर नहीं बोल रहा
हूँ, मैं तो परम पुरुष (परमात्मस्वरूप) हो के बोलता हूँ कि ‘मैं तुम्हारे से
दूर नहीं हूँ, दुर्लभ नहीं हूँ, परे नहीं हूँ, पराया नहीं हूँ ।’ तुम ऐसा मानोगे
तो मैं मिला मिलाया हूँ ।
प्रश्नः बापू जी ! जब हम आश्रम में रहते हैं आपके आभामंडल में
रहते हैं तो ब्रह्मविचार मजबूत होता है किंतु जैसे ही बाहर जाते हैं काम
के लिए, ऑफिस आदि में जाते हैं तो वह घटने लगता है तो वह स्थिति
कैसे बनाये रखें ? जो यहाँ से प्रसाद लेके जाते हैं उसे लक्ष्यप्राप्ति तक
कैसे बनाये रखें हम ?

पूज्य् बापू जीः जिसको तुम महत्त्व दोगे वह बन जायेगा । बाहर
का काम करो अपने ढंग से, मना नहीं है लेकिन जैसे ऊँची चीज का
ऊँचा (ज्यादा) ध्यान रखा जाता है, छोटी चीज का छोटा (कम) ध्यान
रखा जाता है, ऐसे ही हाड़-मांस के शरीर के लिए जो कुछ व्यवसाय
करते हो उसका अपना नपा तुला ही महत्त्न होना चाहिए और ब्रह्मनिष्ठा
का, ईश्वरप्राप्ति का महत्त्व ज्यादा होना चाहिए । जितना जिस वस्तु का
महत्त्व बढ़ाओगे उतना वह आसान हो जायेगी, जिधर का महत्त्व होगा
उधर सफलता प्राप्त होगी ।
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 34 अंक 361
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उच्चतम अदालत का गम्भीर इशारा
देश के लिए खतरा है जबरन धर्मांतरण



धर्मांतरण आज देश के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है । हाल ही में
उच्चतम अदालत ने इस बात को गम्भीरता से लेते हुए कहा कि ‘जबरन
धर्मांतरण न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है बल्कि
देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा हो सकता है । इसे नहीं रोका गया तो
बहुत मुश्किल परिस्थितियाँ खड़ी हो जायेंगी । केन्द्र सरकार इसे रोकने
के लिए कदम उठाये और इस दिशा में गम्भीर प्रयास करे ।’
केन्द्र सरकार की तरफ से अदालत में यह बात रखी गयी कि ‘ऐसे
कई उदाहरण हैं जहाँ चावल, गेहूँ आदि देकर धर्म-परिवर्तन कराये जा रहे
हैं ।’
अदालत आज इस मुद्दे को उठा रही है पर दूरद्रष्टा ब्रह्मवेत्ता संत
पूज्य बापू जी ने तो धर्मांतरण की कूटनीति को आज से कई दशक पूर्व
ही भाँप लिया था । जब भारत में धर्मांतरण-कार्य करने वाली मिशनरियाँ
अपने पाँव जमा रही थीं उस समय से ही पूज्य बापू जी ने उसको रोकने
के लिए भगीरथ प्रयास किये । संतश्री ने दूर-दराज के पिछड़े, गरीब
आदिवासी क्षेत्र, जहाँ लोगों को रोटी का लालच दिखाकर, उनकी मजबूरी
का फायदा उठा के धर्मांतरित किया जाता है, उऩ क्षेत्रों में सत्संग,
कीर्तन, सत्साहित्य-वितरण आदि के माध्यम से लोगों में धर्मनिष्ठा,
स्वधर्मपालन जैसे संस्कारों का सिंचन किया, उन्हें व्यसनों, कुरीतियों से
बचने हेतु प्रेरित किया, उन्हें व्यसनों, कुरीतियों से बचने हेतु प्रेरित
किया, सनातन धर्म कि महिमा बताकर व आत्मोन्नतिकारक कुंजियाँ दे
के उनको धर्मांतरण का शिकार होने से बचाया और उन्नत जीवन की
ओर अग्रसर किया । गरीबों, आदिवासियों के दुःख-दर्द को समझा, उऩ्हें

आत्मिक प्रेम दिया, उऩको येन-केन प्रकारेण मददरूप हुए… फिर चाहे
उऩकी रोज़ी-रोटी की व्यवस्था के लिए ‘भजन करो, भोजन करो, पैसा
पाओ’ योजना चलाना हो, अनाज आदि जीवनोपयोगी सामग्री बँटवाना व
आर्थिक सहायता करना हो, निराश्रितों के लिए मकान बनवाना हो, दूर
दराज के क्षेत्रों में चल-चिकित्सालय चलवाना हो, शिक्षा, सुसंस्कार-सिंचन
व विद्यार्थी-उपयोगी सामग्री का वितरण हो… । और ये कार्य किसी क्षेत्र
विशेष में ही नहीं चले बल्कि देशभर में फैले पूज्य बापू जी के साधकों
ने अपने-अपने क्षेत्रों में सुचारू रूप से इन कार्यों का संचालन किया ।
हर दीपावली पर तथा अन्य कई अवसरों पर पूज्य बापू जी स्वयं
आदिवासी क्षेत्रों में जाते और भंडारे करवाते तथा स्वयं अपने हाथों से
जरूरतमंदों को मिठाइयाँ, वस्त्र आदि बाँटते ।
पूज्य बापू जी द्वारा धर्मांतरण को रोकने के लिए जो आधारभूत
कार्य किये गये उनके धर्मांतरणकारियों की योजनाएँ विफल होने लगीं ।
इस क्षेत्र में बापू जी के योगदान को सर्वेक्षणकर्ताओं ने अभूतपूर्व बताया

प्रसिद्ध न्यायविद् डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी ने कई बार यह तथ्य
समाज के सामने रखा कि “धर्मांतरण कार्यों का प्रतिरोध करने में संत
आशाराम जी बापू सबसे आगे हैं ।”
विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्री रमेश मोदी जी के
शब्दों में – “हिन्दू संस्कृति की रक्षा में जो योगदान संत आशाराम जी
बापू का है उसके तुल्य कोई मिसाल तो कहीं पर भी आपको देखने को
नहीं मिलेगी, सर्वश्रेष्ठ मिसाल आपको मिलेगी बापू जी के यहाँ । किसी
भी देश की संस्कृति यदि खत्म हो जाती है तो वह देश बचता नहीं है ।”

धर्मांतरण का जाल केवल गरीब-आदिवासी क्षेत्रों में फैलाया गया है
ऐसी बात नहीं है, धर्मांतरण वाले अलग-अलग मुखौटे पहन के धर्मांतरण
का कार्य बड़ी तेजी से करते जा रहे हैं । यह बात धर्मरक्षक दूरद्रष्टा
पूज्य बापू जी से भला कैसे छिप सकती है थी ! अतः बापू जी ने इसके
निवारण के लिए भी अनेक प्रकल्प शुरु किये ।
मैकाले शिक्षा पद्धति और कॉन्वेंट स्कूलों के द्वारा हमारे बच्चे-
बच्चियों को विदेशी कुसंस्कारों का गुलाम बना के उनमें भारतीय
संस्कृति के प्रति नफरत पैदा की जा रही है । पूज्य बापू जी ने इसके
प्रति समाज में जागरूकता लायी, सुसंस्कार-सिंचन हेतु देशभर में हजारों
बाल संस्कार केन्द्र खुलवाये, गुरुकुलों की स्थापना की, विद्यालयों में
योग व उच्च संस्कार शिक्षा कार्यक्रम चलवाया । युवक-युवतियों को सही
मार्ग दिखाया । भारत के कोने-कोने में जाकर अपने सत्संगों द्वारा
देशवासियो के रक्त में शौर्य, निर्भयता और स्वधर्मनिष्ठा के संस्कारों को
भरने का क्रांतिकारी कार्य किया ।
इस प्रकार धर्मांतरणरूपी विषवृक्ष की जड़े जहाँ-जहाँ जमनी चालू
हुईँ वहाँ-वहाँ से उनको उखाड़ने का कार्य पूज्य श्री द्वारा हुआ ।
अपनी मुरादें विफल होती देख धर्मांतरणकारियों ने पूज्य बापू जी
को अपनी राह से हटाने के लिए तरह-तरह के प्रयास शुरु कर दिये ।
उन्हीं प्रयासों के तहत एक झूठा आरोप लगवाकर बापू जी को जेल
भिजवाया गया ।
राष्ट्र को इसका क्या खामियाजा भुगतना पड़ा यह हम लोगों के
अनुभूत शब्दों से जानेंगे, जिन्होंने अपनी आँखों से सच्चाई को देखा है ।
वि.हि.प. के धर्म-प्रसार विभाग के अखिल भारतीय सहमंत्री, श्री
धर्मेन्द्र भावानी जी, जो वर्षों से भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार व

धर्मांतरण रोकने के कार्यों में जमीनी स्तर पर लगे हुए हैं, उऩ्होंने
उच्चतम अदालत द्वारा धर्मांतरण के संदर्भ में कही गयी बात पर चर्चा
के दौरान कहा कि “परम पूज्य पाद आशाराम जी बापू के कारावास जाने
के बाद इस्लाम और ईसाइयत की गतिविधियों में बढावा देशभर में हुआ
है । ईसाई मिशनरियों को टक्कर देने वाली कोई प्रबल हिन्दू शक्ति
कार्यरत थी तो वह थी संत आशाराम जी बापू । यह एकदम सच्चाई है

आप गुजरात के डांग की झुग्गी-झोंपड़ियों में जाइये, दाहोद में
जाइये, कच्छ के, डीसा के, बनासकांठा के बॉर्डर पर जाइये, ओड़िशा में,
महाराष्ट्र में, छत्तीसगढ़ में, मध्यप्रदेश में, राजस्थान में, उत्तर प्रदेश में
जाइये, झारखंड में, बंगाल में, तमिलनाडू में जाइये… वहाँ के झुग्गी-
झोंपड़यों, गिरि-कंदराओं में रहने वाले, प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने
जीवन का गुजारा करने वाले बंधुओं के पास पूज्यपाद आशाराम जी बापू
के शिष्य गये हैं इस बात के अऩेक प्रमाण मिलेंगे ।
जहाँ-जहाँ बापू जी के भण्डारे होते थे वहाँ सभी जगह पर धर्मांतरण
पर एकदम रोक लग गयी थी और बंधु पुनः स्वधर्म में आकर अपने
पुरखों की जड़ों के साथ जुड़ रहे थे । बापू जी के अंदर होने से वास्तव
में विधर्मियों की ताकत बढ़ी है ।
जिन्होंने धर्मांतरण को रोका, जिन्होंने सैंकड़ों बंधु-बांधवों के हृदय
के अंदर धार्मिक ज्योति (धर्मनिष्ठा) प्रकट की, जिनके खिलाफ कोई
ठोस सबूत नहीं है, ऐसे राष्ट्रहितैषी महान संत पूज्यपाद आशाराम जी
बापू जेल की सलाखों के पीछे नहीं अपितु इस देश के 100 करोड़
हिन्दुओं के बीच में रहने चाहिए इसलिए मैं आग्रहपूर्वक निवेदन करता हूँ
कि बापू जी को तुरन्त रिहा किया जाय ।

इस देश में बड़े-बड़े अपराधी, आतंकवादी छूट सकते हैं लेकिन
सनातनी परम्परा को टिकाने वाले संत प्रताड़ित हो रहे हैं । (उनको
शारीरिक अस्वस्थता में भी जमानत नहीं मिल सकती), उऩ्हें 10-10
वर्षों से कारावास में रखा गया है ।
मैं केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को कहना चाहता हूँ कि बापू
जी को शीघ्र रिहा किया जाय और धर्मांतरण के खिलाफ राष्ट्रव्यापी कड़ा
कानून बने ।
इस देश के साधु-संतों से निवेदन करता हूँ, सभी संगठनों को भी
कहना चाहता हूँ कि यही समय हिन्दू धर्म की रक्षा करने का है ।
धर्मांतरण जैसे शत्रु को परास्त करने के लिए बापू को छुड़ा के धर्मांतरण
रोकने वाली गतिविधियों को फिर से देशव्यापी स्तर पर शुरु करके
समाज को बचाने के यज्ञ में हम सब सहभागी हों ।”
स्पष्ट् है कि देश और संस्कृति पर हो रहे इस कुठाराघात से बचने
के लिए लोक संत पूज्य बापू जी की, उनके मार्गदर्शन की, उनकी दिव्य
और दूरगामी दृष्टि की समाज को बहुत आवश्यकता है । उनके खिलाफ
हो रहे इन षड्यन्त्रों की सच्चाई जन-जन तक पहुँचायी जाय व उन्हें
ससम्मान रिहा किया जाय, जिससे समाज में लुप्त हो रही हिन्दू धर्म के
प्रति आस्था को पुनर्जीवित किया जा सके व राष्ट्र को दिग्भ्रमित होने से
बचाया जा सके, इस संकटमय स्थिति से उबारा जा सके ।
संकलकः रू. भा. ठाकुर
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 8-10 अंक 361
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आप अपनी समझ का विकास करो – पूज्य बापू जी



जितनी आपकी दृढ़ता होगी उतना आपका मन, तन अऩुकूल हो
जायेगा, जितनी आपकी दृढ़ता होगी उतना वातावरण आपके अनुकूल हो
जायेगा और प्रतिकूलता भी आती है तो आपकी सुषुप्त शक्तियाँ जगाने
के लिए । जो लोग प्रतिकूलताओं से, विघ्न-बाधाओं से डरते हैं, समझो
वे उन्नति से दूर भागते हैं । प्रतिकूलता और विघ्न-बाधाएँ तो आपकी
सुषुप्त शक्तियों को जगाती हैं । खूँटा गाड़ा जाता है न, गाय-भैंस बाँधने
के लिए तो उसे ठोकते हैं फिर हिलाते हैं अथवा बिजली का खम्भा
हिलाते-हिलाते गाड़ा जाता है । क्यों हिलाते हैं ? उसकी मजबूती के लिए
हिलाया जाता है । ऐसे ही प्रकृति से, समाज से, वातावरण से निंदा,
अफवाह, यह-वह… मखौल उड़ाने वाले लोग मिल जायें तो चिंता की बात
नहीं है । आप अपनी बुद्धि का, अपनी समझ का विकास करो ।
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 17 अंक 361
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