हम तो किसी का बुरा नहीं चाहते हैं । गुंडे का भी बुरा नहीं चाहते, उसका भी भला हो । संत क्यों किसी का बुरा चाहेंगे ! हाँ, किसी की गलती है तो भले हम डाँट देंगे पर डाँटेगे इसलिए कि उसका भला हो । उसकी बुराई के लिए हम नहीं डाँटते । आज से करीब 40 साल पहले की बात है । केरी पीठा अहमदाबाद में मेरा सत्संग था । ‘हरि ओऽऽऽ…म्…’ ऐसे करके सत्संग की शुरुआत होती थी । शाम को 5 बजे सत्संग शुरु हुआ, इतने में एक व्यक्ति काँच के गिलास में चाय भर के उसमें बोर्नविटा डाल के चम्मच से हिलाता हुआ आया, बोलाः “बाबा ! चाय पी लो, सत्संग फिर करना ।” मैंने कहाः “हम चाय नहीं पीते हैं ।” बोलाः “तुम्हारे लिये बनायी है और बोर्नविटा भी डाला, देखो कितनी बढ़िया है !” मैंने कहाः “हम नहीं पीते हैं, रखो ।” “लेकिन तुम्हारे लिए बनायी है न ! पी लो फिर सत्संग करना । अभी तो पब्लिक आ रही है, पी लो ।” वह खड़ा रहा । मुझे पता नहीं था कि वह डॉन है । इशारा करे तो दिनदहाड़े केरी पीठा मार्केट बंद करवा दे । सोडा की बोतलें धड़-धड़ धड़ धड़… उड़ने लग जायें ऐसा तूफान मचवा दे। उसका नाम था गुरेल रहजन । रहजन माने डॉन । वह डॉनों का भी बॉस था । उसने गिलास आगे रखा और बोलाः “अरे पी लो !” मैंने कहाः “बैठ जा !” अब उसको दम मार के बोलने वाला तो कोई मिला नहीं था । मैं बोला, ‘बैठ जा’ तो उसने यूँ (तिरछी) आँख दिखायी – अपना डॉन का रूप दिखाया । फिर सत्संग तो सुना किंतु बाजार में उसकी बेइज्जती हो गयी तो तिरछी आँख करके देखे । तो हमने भी तिरछी आँख करके कहाः “तिरछी कड़ी नज़र से क्या देखता है ? बैठ जा !” क्या पता उसकी कोई पुण्याई थी, वह चुप बैठ गया । बैठा तो ऐसा बैठा कि आखिर तक बैठा रहा और फिर डॉन का धंधा छोड़ के आश्रम में आने लगा । फिर सत्संग सुनते-सुनते उसको रंग लग गया । रसोई घर में सेवा, सत्संग में लोगों को बैठाने आदि की सेवा करने लगा । तो हम जो ठान लेते हैं फिर वह करके रहते हैं । हमने ठान लिया और उसे बैठा दिया तो वह ऐसा बैठ गया कि डॉन का धंधा छोड़ कर बैठ गया ! भगत बन गया । तो ऐसा कैसे होता है ? कि तुम्हारा अंतरात्मा ज्ञानस्वरूप है और उसमें अद्भुत योग्यताएँ अद्भुत बल छुपा है । स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 13 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
All posts by GuruNishtha
8 वर्ष की उम्र में बनाये विभिन्न विश्व कीर्तिमान
मैं और मेरी धर्मपत्नी बापू जी से दीक्षित हैं । विवाह के बाद हम गुरुदेव द्वारा बताये गये संयम-संबंधी नियमों का पालन व दिव्य शिशु संस्कार पुस्तक का पठन आदि करते थे । पूज्य बापू जी की कृपा से 2014 में हमारे घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम ‘पार्थ’ रखा । हम पार्थ को आश्रम लेकर जाते, बड़दादा की परिक्रमा करवाते, बापू जी का सत्संग श्रवण करवाते । 4 वर्ष की उम्र से ही उसकी दिनचर्या अन्य बच्चों से विलक्षण रही, जैसे ब्राह्ममुहूर्त में उठना, सूर्यदेव को अर्घ्य देना, भ्रामरी प्राणायाम, गुरुदेव की पूजा-वंदना, तुलसी-सेवन करना आदि । गुरुदेव की कृपा से उसकी स्मरणशक्ति व मेधाशक्ति इतनी सुविकसित हुई कि भूगोल व विज्ञान जैसे गहन विषयों का भी वह जो पढ़ता वह उसे एक-दो बार में ही याद हो जाता । उसकी योग्यताओं का ऐसा विकास हुआ कि भारत ही नहीं, विश्वस्तर पर उन्हें सराहा जा रहा है । अभी उसकी उम्र 8 वर्ष है और गुरुकृपा से वह कई उपलब्धियाँ हासिल कर चुका हैः इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्डस द्वारा अति प्रतिभाशाली बालक पुरस्कार दिया गया । विज्ञान श्रेणी में ‘विलक्षण बालक पुरस्कार 2022’ के लिए चयनित हुआ । इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्डसः 2 मिनट 7 सेकेंड में यू.एस.ए. के सभी राज्यों को उसके मानचि6 पर पहचाना । 4 मिनट 56 सेकेंड में विश्व के मानचित्र पर 183 देशों को पहचाना । वर्ल्ड वाइड बुक ऑफ रिकॉर्डसः एशिया के मानचित्र पर उसके सभी देशों को पहचानने वाले सबसे कम उम्र के बच्चे का कीर्तिमान । 2 मिनट 52 सेकेंड में सौरमंडल के सभी ग्रहों का वर्णन करने वाले सबसे कम उम्र के बच्चे का कीर्तिमान । इतनी कम उम्र में मेरे बेटे की ऐसी योग्यताएँ विकसित हुई इसमें मेरी या मेरे बेटे की कोई चतुराई नहीं है, यह तो पूज्य बापू जी द्वारा बताये गये नियमों के पालन का एवं उनके आशीर्वाद का परिणाम है । ऐसे परम कृपालु गुरुदेव के श्रीचरणों में साभार प्रणाम ! – डॉ. धर्मेन्द्र कटारिया सचल दूरभाषः 8982619878 स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 19 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
स्वास्थ्य कल्याण की बातें
त्रिदोष शमन के लिए वमनं कफनाशाय वातनाशाय मर्दनम् । शयनं पित्तनाशाय ज्वरनाशाय लंघनम् ।। ‘कफनाश करने के लिए वमन (उलटी), वातनाश के लिए मर्दन (मालिश), पित्तनाश हेतु शयन तथा ज्वरनाश के लिए लंघन (उपवास) करना चाहिए ।’ तो वैद्य की आवश्यकता ही क्यों ? दिनान्ते च पिबेद् दुग्धं निशान्ते च जलं पिबेत् । भोजनान्ते पिबेत् तक्रं वैद्यस्य किं प्रयोजनम् ।। ‘दिन के अंतिम भाग में अर्थात् रात्रि को शयन से 1 घंटा पूर्व दूध, प्रातःकाल उठकर जल (लगभग 250 मि.ली. गुनगुना) और भोजन के बाद तक्र (मट्ठा) पियें तो जीवन में वैद्य की आवश्यकता ही क्यों पड़े ?’ बिना औषधि के रोग दूर विनापि भेषजं व्याधिः पथ्यादेव निवर्तते । न तु पथ्यविहीनोऽयं भेषजानां शतैरपि ।। पथ्य सेवन से व्याधि बिना औषधि के भी नष्ट हो जाती हैं परंतु जो पथ्य सेवन नहीं करता, यथायोग्य आहार-विहार नहीं रखता, वह चाहे सैंकड़ों औषधियाँ ले ले फिर भी उसका रोग दूर नहीं होता । दीर्घायु के लिए… वामशायी द्विभुञ्जानो षण्मूत्री द्विपुरीषकः । स्वल्पमैथुनकारी च शतं वर्षाणि जीवति ।। ‘बायीं करवट सोने वाला, दिन में दो बार भोजन करने वाला, कम-से-कम छः बार लघुशंका व दो बार शौच जाने वाला, (वंशवृद्धि के उद्देश्य से) स्वल्प-मैथुनकारी व्यक्ति सौ वर्ष तक जीता है ।’ हरिनाम-संकीर्तन से रोग-शमन सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम् । शान्तिदं सर्वारिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम् ।। ‘हरि नाम-संकीर्तन सभी रोगों का उपशमन करने वाला, सभी उपद्रवों का नाश करने वाला और समस्त अरिष्टों की शांति करने वाला है ।’ स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2022, पृष्ठ संख्या 26 अंक 358 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ