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साधन अनेक, अंतिम स्वरूप एक



साधन दो प्रकार के होते हैं । एक वह जिसके द्वारा हम अपने
लक्ष्य को पहचानते या प्राप्त होता है या लक्षित होता है अर्थात् लक्ष्य
का शोधन । अंतःकरण परमात्मा की प्राप्ति का साधन है । अतः उसको
शुद्ध करने के लिए जो कुछ किया जाता है उसको बहिरंग साधन कहते
हैं । जैसे बंदूक से लक्ष्य पर गोली चलाना हो तो बंदूक की सफाई यह
करण की शुद्धि है और लक्ष्य को ठीक-ठीक देख लेना यह लक्ष्य की
शुद्धि है । करण की शुद्धि बहिरंग है और लक्ष्य की शुद्धि अंतरंग है
। परमात्मप्राप्ति के लिए क्रमशः विवेक-वैराग्य तथा श्रवण-मनन आदि
बहिरंग-अंतरंग होते हैं ।
अब विवेक कीजिये ! आपको अपने ही ज्ञान से जो अपना स्वरूप
न मालूम पड़े उसकी ओर से मन को हटा लीजिये । आपकी दृष्टि से
जो अनित्य है, जड़ है, दुःखरूप है उसमें मन लगाने की प्रवृत्ति को
रोकिये । आप स्वयं तो रहेंगे ही । बस, शांति है !
इस आत्मा और अनात्मा के विवेक से अर्थात् पृथक्ककरण से
आत्मा के प्रति उपरामता का उदय होगा । विवेक से स्वरूप-स्थिति भी
शांति है और वैराग्य यानि राग-द्वेष की निवृत्ति भी शांति ही है । अतः
विवेक और वैराग्य के फल में किसी प्रकार का अंतर नहीं है । हाँ, यह
अवश्य है कि पहले विवेक होगा, पीछे वैराग्य । दोनों साथ-साथ भी हो
सकते हैं । परंतु ये दोनों दो नहीं हैं, फलस्वरूप से शांति ही है ।
आप यह मत सोचिये कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए अथवा सत्य
के साक्षात्कार के लिए बहुत से साधन करने पड़ते हैं अथवा बड़े कठिन-
कठिन साधन करने पड़ते हैं । गम्भीरता से अनुभव कीजिये – मन में
काम-क्रोध का न आना शम है, वह शांति ही है, इन्द्रियों का चंचल न

होना दम है, वह भी तो शांति ही है, कर्म-विक्षेप की निवृत्ति उपरति है,
वह भी शांति ही है, दुःख-विक्षेप की शांति तितिक्षा है । अभिमान-विक्षेप
की शांति श्रद्धा है । अपने संकल्पों या विचारों को समेट लेने का नाम
समाधान है । इनके नाम अलग-अलग हैं परंतु इनका स्वरूप शांति ही है
। इसलिए साधक बहुत-से नाम सुनकर घबराना नहीं चाहिए । निराश
मत हो, उदास मत हो, यह तो सब एक ही निःसंकल्प जाग्रत के नाम हैं
। इनमें एक ही वस्तु है, केवल शांति, शांति, शांति ! यह शांति की दशा
जब निरंतर नहीं रहती और यह निश्चय हो जाता है कि ‘चित्त सदा एक
स्थिति में नहीं रह पाता, नहीं रह सकता’, तब चित्त से ही मुक्त होने
की तीव्र आकांक्षा जागृत होती है – आने जाने वाले विनश्वर पदार्थों से
मुक्त होकर अपने परमानंद, अद्वितीय स्वरूप के अनुभव की इच्छा
अर्थात् मुमुक्षा ।
साधनों का अंतिम स्वरूप
हाँ, तो अब यह विचार कीजिये कि जब सब साधनों का अंतिम
स्वरूप शांति ही है तो उनके नाम अनेक क्यों हैं ? अनेक इसलिए हैं कि
शांति एक होने पर भी उसके कार्य पृथक-पृथक हैं । काम-क्रोध को
मिटाने वाली शांति इत्यादि । अतः बहिरंग साधन इतना सुगम, इतना
सरल है कि थोड़ी-सी सावधानता आपको इससे सम्पन्न बना देगी और
आप सद्गुण के पास पहुँचकर अंतरंग साधन श्रवण-मनन आदि के
योग्य हो जायेंगे ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2022, पृष्ठ संख्या 22,25 अंक 356
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…वे देर-सवेर परमात्म-साक्षात्कार तक पहुँच जाते हैं – पूज्य बापूजी



ध्यान लगाना अच्छा है लेकिन विकारों से बचना उससे भी अच्छा
है और विक्षेपरहित स्थिति में टिके रहना… ओहो ! यह तो सर्वोपरि है ।
आकर्षण के समय आकर्षणरहित होना उसका एक ही उपाय है कि
जो आकर्षणरहित सत्तास्वरूप परमात्मा है उससे प्रीति, उसमें स्थिति हो
जाय ।
आकर्षण के समय आकर्षण रहित होना, इसका एक ही उपाय है
कि जो आकर्षणरहित सत्तास्वरूप परमात्मा है उससे प्रीति, उसमें स्थिति
हो जाय ।
लाख उपाय कर ले प्यारे ! कदे (कभी) न मिलसी यार ।
बेखुद हो जा देख तमाशा, आपे खुद दिलदार ।।
अपने इस देह के अहं को छोड़कर परमात्म-अहं में शांत होता
जायेगा तो फिर दिलदार की शांति, मस्ती और मति की ऊँचाई आ
जायेगी । मति दुर्बल होती है तो मन उसे खींच लेता है और मन को
इन्द्रियाँ खींच लेती हैं और इन्द्रियाँ विषय-विकारों में गिरा देती हैं । मति
बार-बार परमात्म-स्मरण और ध्यान में रहती है तो मति पुष्ट रहती है,
मन सात्त्विक बनता है, इन्द्रियों के धोखे में नहीं आता । फिर भी कभी
गिरता है, उठता है, फिर गिरता है, फिर उठता है, जैसे बच्चा चलते-
चलते कई बार गिरता है फिर दौड़ भी लगा लेता है और दौड़ में,
प्रतियोगिता में इनाम भी पा लेता है । जो अभी प्रतियोगिता में दौड़ के
इनाम पा रहे हैं, वे बचपन में चलते समय कई बार गिरे होंगे । ऐसे ही
ईश्वर का रास्ता है – चलते हैं, फिसलते हैं, चलते हैं, फिसलते हैं । ऐसा
कोई माई का लाल नहीं रहा होगा कि चल पड़ा हो और फिसला न हो ।

फिसलाहट तो आती है परंतु फिसलकर जो निराश हो जाते हैं वे अपना
गला घोंटते हैं, जो फिसलकर फिसलते ही रहते हैं व अपनी तबाही करते
हैं परंतु जो फिसलने पर प्रभु का आश्रय लेते हैं, सत्संग का, नियम और
व्रत का आश्रय लेते हैं वे धनभागी देर-सवेर परमात्म-साक्षात्कार तक
पहुँच जाते हैं ।
जो फरियाद करते रहते हैं वे बेचारे उलझ जाते हैं ।
चलती चक्की देख के दिया कबिरा रोय ।
दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय ।।
तो राग-द्वेष, सुख-दुःख, जड़-चेतन के दो पाटों में सारे जीव पिसे
जा रहे है । कोई विरले हैं जो अपने चेतन में टिक जाते हैं ।
चक्की चले तो चालन दे, तू काहे को रोय ।
लगा रहे जो कील से तो बाल न बाँका होय ।।
तू अपनी परमात्म-सत्ता से लगा रह भैया ! बहन ! तू लगी रह बेटी
परमात्म-सत्ता से । फिसले तो फिर लग, फिसले तो फिर लग… फिर
लग…। जैसे बच्चा चलता है, गिरता है, फिर चलता है, गिरता है, चलने
की गाड़ी ले के चलता है त भी गिरता है, फिर भी चलना नहीं छोड़ता है
त वह कालांतर में दौड़ता है । आप भी ऐसा ही करके आये हो ।… तो
अभी हिम्मत क्यों हारना ?
हे परमात्मा के सपूतो ! तुम हिम्मत मत हारना, निराश मत होना
। अगर कभी असफल भी हुए तो हताश मत होना । वरन् पुनः प्रयास
करना, ऋषियों द्वारा वर्णित प्राणाय़ाम, ध्यान आदि की विधि को
सीखकर अपना मनोबल, प्राणबल बढ़ाना । फिर तुम जो चाहोगे वह कर
सकने में समर्थ हो जाओगे । तुम्हारे लिए असम्भव कुछ भी नहीं होगा
। ॐ…ॐ…ॐ…

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2022, पृष्ठ संख्या 20 अंक 356
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उच्च व निम्न रक्तचाप हो तो… – पूज्य बापू जी



जिनको उच्च रक्तचाप (हाईपरटेंशन) है उनको डरने की जरूरत
नहीं है । यह कोई बीमारी है क्या ? कटोरी में पानी लेकर सामने रखो
और उसमें देखते हुए ‘हरि ॐ शांति, हरि ॐ शांति, हरि ॐ शांति…’
जप करो फिर उसे पी लो । दूसरा उच्च रक्तचाप मिटाने का एक सुन्दर
नुस्खा है – किशमिश एक साथ 3-4 बार धोकर सुखा दे (रोज-रोज न
धोये) । उसका एक दाना गुलाब जल में रात को भिगो दें । सुबह
भगवान का नाम लेकर – ‘नारायण… नारायण…नारायण… नारायण…’
जप करके चबा के खा ले । दूसरे दिन 2 दाने, तीसरे दिन 3 दाने, चौथे
दिन 4…. इस प्रकार 21 वें दिन 21 दाने ले । फिर 1-1 किशमिश
प्रतिदिन कम करते हुए 20, 19,18, इस तरह 1 किशमिश तक आयें ।
बस पूरा हो गया । उच्च रक्तचाप गया । फिर भी कहीँ अंश न रह
जाय इसलिए 10-15 दिन का अंतर देकर 1-2 बार फिर यह प्रयोग कर
लो । उच्च रक्तचाप सदा के लिए भाग जायेगा । कई लोगों को लाभ
हुआ है । सरल उपाय है, दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) नहीं है और कोई
खास खर्चा नहीं है ।
और निम्न रक्तचाप (लो बी.पी) हुआ तो ? निम्न रक्तचाप हुआ
तो हीनता के विचार हटाकर ‘ॐ…ॐ…ॐ… सर्वेश्वर परमेश्वर हमारे साथ
हैं ।’ ऐसे विधेयात्मक विचार करो । गहरा श्वास लेकर रोको और ‘हरि
ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ… हा… हा… हा… ‘ (देव-मानव हास्य प्रयोग) करो
। निम्न रक्तचाप अपने-आप ठीक हो जाता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2022, पृष्ठ संख्या 32 अंक 356
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