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धन्य हैं ऐसे सर्वसमर्थ सद्गुरुदेव तथा अद्भुत हैं उनकी लीलाएँ


पूज्य श्री का आत्मिक दिव्य प्रेम, सरल, मधुर वाणी और योग-सामर्थ्य ऐसे मोहक हैं कि वे जहाँ-जहाँ जाते हैं वहाँ परायों को अपना बना लेते हैं और अपनों को उत्साहित करके परमात्मा के पथ पर अग्रसर कर देते हैं । डालते हैं कुछ घटनाओं पर एक नज़रः

भयंकर बाढ़ थामी

सन् 1973 में साबरमती नदी में भयंकर बाढ़ आयी थी । नदी खतरे के स्तर को भी लाँघकर निरंकुश बह रही थी । नदी से 30 फीट ऊपर आश्रम के प्रांगण में बाढ़ का पानी पहुँचने की तैयारी में था । चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दे रहा था । आश्रम एक द्वीप जैसा बन गया था ।

भक्तों ने बापू जी को सारी स्थिति बतायी ।

पूज्य श्री आये और बोलेः ″इसमें क्या बड़ी बात है ! लाओ, दही लाओ । चलो, एक-दो चम्मच मेरे अँगूठे पर डालो ।″

बापू जी ने दही लगे अँगूठे से पानी को स्पर्श किया, अपना चरण डाला और मानो उस पावन स्पर्श के लिए ही नदी ऊपर उठी हो ऐसे वह धीरे-धीरे शांत हो गयी । बाढ़ का पानी नीचे उतर गया ।

रेडियो पर 30 फीट पानी बढ़ने की सम्भावना प्रसारित हो रही थी परंतु पानी 22.5 फीट से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा ।

9 मिनट भी नहीं बैठने वाला 9 घंटे ध्यान में बैठा !

बात उस समय की है जब पूज्य बापू जी आबू की गुफा में रहते थे । एक दिन मनोहर नामक एक तारबाबू, जो माउंट आबू पोस्ट ऑफिस में काम करते थे, पूज्य श्री के पास आये और बोलेः ″स्वामी जी ! आज सोचा कि आपके दर्शन करके ही नौकरी पर जाऊँ । मुझे 10 बजे जाना है ।″

पूज्य श्रीः ″अच्छा, अभी तो न ही बजे हैं । थोड़ी देर ध्यान में बैठ जा, फिर जाना ।″

वे पास वाली गुफा में जाकर ध्यान में बैठ गये। जब ध्यान से जागे तो शाम के 6 बज चुके थे ।

उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा ‘अरे ! 6 बज गये । अभी-अभी तो स्वामी जी की आज्ञा से मैं ध्यान में बैठा था और शाम हो गयी ! आज नौकरी पर नहीं जा पाया । खैर, बाहर की नौकरी पर नहीं जा पाया लेकिन मेरी भीतरी चिंताएँ, शंकाएँ और मुसीबतें दूर हो गयीं । 9 मिनट भी नहीं बैठने वाला मैं आज 9 घंटे ध्यान में बैठा ! बापू जी ! आपको हजार-हजार वंदन !’

एक ही समय दो जगह लिये दो रूप

लगभग चार दशक पहले की बात है । मोटेरा (अहमदाबाद) आश्रम में शाम के समय पूज्य बापू जी का सत्संग चल रहा था । सबसे आगे बैठे सरदार नगर, अहमदाबाद के मंघनमल जी को अपनी मृतक साली का तीसरा मनाने जाना था किंतु उन्होंने सत्संग के बीच में उठने का पाप नहीं किया । उनके अंतर्मन में चल रहा था, ‘बापू जी ! क्या करूँ ?’ मन में बड़ी उधेड़ बुन चलने के बाद भी वे भगवान और गुरुदेव को प्रार्थना करके शाम के 7 बजे तक सत्संग सुनते ही रहे ।

उधर उनकी मृतक साली के घर पूज्य बापू जी मंघनमल का शरीर धारण कर तीसरा मनाने पहुँच गये और लोगों को सांत्वना दी । मंघनमल जब सत्संग के बाद साली के घर जाकर माफी माँगने लगे, तब उन्हें हकीकत का पता लगा और उनकी आँखों से प्रेम के आँसू बह चले ।

पूज्य बापू जी के सत्संग में आता हैः ″हमारी प्रीति ईश्वर में हो जाय, बाकी का सब ठीक हो जाता है । यह कैसी ईश्वर की सत्ता है कि जब आप ईश्वर में रहते हैं तो आपके लिए ईश्वर नाई बनते हैं (जैसे सेन नाई के लिए नाई बने थे), दाल और चावल देने वाले बालकुमार बन सकते हैं (जैसे श्रीधर स्वामी के घर बालकुमार बन के गये थे), पेय का कमंडल और केला लाने वाले ग्रामीण बन सकते हैं (जैसे पूज्य बापू जी के जीवन में देखा गया), नरसिंह मेहता का रूप धारण करके काम कर लेते हैं तो मंघनमल बने तो क्या आश्चर्य है !

ईश्वर में आप खो जाते हैं तो फिर दयालु ईश्वर सम्भाल लेते हैं ।

संतन के कारज सगल सवारे ।। (गुरुवाणी)

ये तो एक दो दृष्टान्त सामने आये लेकिन आप ईश्वर में लग जाओ तो आप सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसा कैसे हो गया ! हम प्रयत्न करते तो भी इतना बढ़िया काम नहीं हो सकता था ।″

मिला अक्षयपात्र

कतारगाम, सूरत (गुजरात) के भक्तों को बापू जी ने गरीबों में भंडारा करने हेतु थोड़ा सा सामान दिया और कहा कि इसे दस दिन तक बाँटना । सामान सिर्फ दो दिन तक बँट सके उतना ही था लेकिन चमत्कार ! सामान खुले हाथों 10 दिन तक बँटता रहा पर खत्म होने का नाम नहीं ! इस आश्चर्य को देख सामान की गणना की तो जितना सामान बापू जी ने दिया था, उससे भी अधिक बचा था जो करीब 100 लोगों में और बँट सकता था । किंतु आश्चर्य ! उसे भक्त 5 गाँवों में बाँटते रहे परंतु खत्म नहीं हो रहा था ! बापू जी से प्रार्थना करने पर वह खत्म हुआ । बापू जी के इस अक्षयपात्र की लीला को सभी ने प्रणाम किया ।

पूज्य श्री के योग सामर्थ्य की ऐसी घटनाएँ अनेक भक्तों ने अपने जीवन में प्रत्यक्ष देखी हैं । धन्य हैं से सर्वसमर्थ सद्गुरुदेव तथा अद्भुत हैं उनकी लीलाएँ, जो समय-समय पर अभिव्यक्त होकर मानवमात्र को सत्यपथ पर चलने की पावन प्रेरणा देती रहती हैं । जिनको ऐसे समर्थ संत-सद्गुरु प्राप्त होते हैं, ऐसे संत-महापुरुषों का पावन सान्निध्य मिलता है वे साधक धन्य-धन्य हैं !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 9,10 अंक 355

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दृष्टि पड़ने मात्र से मिली जीवन को सही दिशा


पहले मैं दारू पीना, मांसाहार करना आदि दुर्व्यसनों में बुरी तरह लिप्त था । किसको कैसे मारना, कैसे झगड़ा करना, ऐसे ही विचार दिमाग में घूमते थे । ऑफिस में, घर पर सभी लोग मुझसे बहुत परेशान रहते थे । एक घटना में मुझ पर हाफ मर्डर का केस भी बन गया था ।

बापू जी का नागपुर में सत्संग था । लोग दर्शन के लिए रास्ते पर खड़े थे । कुतूहलवश मैं भी वहाँ पहुँच गया । मन में चल रहा था कि ‘ऐसे संत तो बहुत देखे हैं…’ इतने में पूज्य बापू जी की गाड़ी आ गयी और उनकी दृष्टि मेरे ऊपर पड़ी । दृष्टि में न जाने कैसा तेज था कि मैं देखता ही रह गया । मेरे मन के खूँखार विचार अवरुद्ध हो गये और मुझे बापू ही बापू दिखने लगे । बापू जी से अगले ही महीने मैंने दीक्षा ले ली । मेरे दुर्गुण अपने-आप छूटते गये और पूरा जीवन ही बदल गया । 22 साल से मेरे ऊपर चल रहा केस भी खत्म हो गया । पहले मेरे पास रहने के लिए स्वयं का घर तक नहीं था । गुरुकृपा से मेरा घर बन गया और मैंने 17 एकड़ जमीन भी खरीद ली । मुझे ध्यान, जप व सेवा में इतना रस आने लगा कि 1 लाख के ऊपर सैलरी वाली नौकरी को भी मैंने रिटायरमेंट के 6 साल पहले ही छोड़ दिया । आज गुरुकृपा से मेरे हृदय में जो शांति और आनंद है, उसके आगे उतनी सैलरी भी कोई मायने नहीं रखती ।

पूज्य बापू जी की कृपा से जनवरी 2021 में मेरे बेटे का विवाह ऐसे विलक्षण ढंग से हुआ कि निगुरे लोग भी बोल उठे कि ‘ऐसी शादी हमने आज तक नहीं देखी !’ हमने शादी के एक दिन पहले गाँव में मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम’ करवाया । शादी के दिन गाड़ी पर पूज्य बापू जी का बड़ा बैनर लगा के भजन-कीर्तन चलाते हुए पूरे गाँव में कीर्तन यात्रा निकाली । कैलेंडर व ऋषि प्रसाद बाँटी । 439 मेहमानों को ऋषि प्रसाद का सदस्य बनाया । विवाह स्थल पर दो-ढाई हजार लोगों की उपस्थिति में पूज्य बापू जी की आरती बड़े ही धूमधाम से करवायी । इस तरह से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया था । मेरा जीवन तो नाली के कीड़े की तरह नीचा था लेकिन पूज्य बापू जी की कृपा से रसमय और साधनामय हो गया ।

  • महादेव एकड़े, दूरभाषः 7620155056

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 25 अंक 355

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थी मौत की तैयारी, जान बची, बना सेवाधारी


सन् 1992 से 1998 तक मैं गम्भीर रूप से बीमार रहा, जिससे मेरा वजन 25 किलो रह गया । कई जगह इलाज कराया, 8 लाख रुपये खर्च हो गये । अंत में डॉक्टरों ने जवाब दे दिया । मैं 6 साल तक एक ही जगह पड़ा रहा । हर तरफ से निराश हो गया था । सौभाग्य से मुझे पूज्य बापू जी का सत्साहित्य पढ़ने को मिल गया । पढ़ते-पढ़ते एक दिन मेरी आँखों में आँसू आ गये । मैंने बापू जी से आर्तभाव से प्रार्थना कीः ‘हे गुरुदेव ! अब बस एक आपका ही सहारा है, मुझे बचा लीजिये ।’ उसी रात परम दयालु बापू जी सपने में आये । मैंने दंडवत् प्रणाम किया तो आशीर्वाद देते हुए बोलेः ″क्यों घबराता है ! चल उठ, खड़ा हो जा !″

सुबह उठा तो शरीर को ताजगी तथा मन को उत्साह व प्रसन्नता से भरपूर पाया ।

चार दिन बाद मैं भोपाल आश्रम गया । बड़दादा की परिक्रमा करके बड़दादा की मिट्टी ली और 15 दिन तक रोज प्रसाद रूप में उसे ग्रहण करता रहा । परिणामस्वरूप धीरे-धीरे स्वास्थ्य में सुधार आने लगा । नौ माह बाद मेरा वजन 60 किलो हो गया । मैंने पूज्य श्री से मंत्रदीक्षा ले ली और 200 लोगों को दीक्षा दिलवायी । वर्तमान में मैं ‘ऋषि प्रसाद’ के सदस्य बनाता हूँ तथा विद्यालयों में इसका निःशुल्क वितरण करता हूँ । मैं संकल्प करता हूँ कि जब तक मैं जीवित रहूँगा तब तक ऋषि प्रसाद की सेवा करता ही रहूँगा । बापू जी से गुरुमंत्र की दीक्षा व कर्मयोग की शिक्षा पाकर मैं मृत्यु से अमरता की ओर चल पड़ा हूँ । नवजीवन-दाता सद्गरुदेव के श्रीचरणों में खूब-खूब नमन !

मथुरालाल नागर, राजगढ़ (म.प्र.) सचल दूरभाषः 9669342990

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