हे साधक ! तुरीयावस्था में जाग
(संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग प्रवचन से) देव-असुरों, शैव-शाक्तों, सौर्य और वैष्णवों द्वारा पूजित, विद्या के आरंभ में, विवाह में, शुभ कार्यों में, जप-तप-ध्यानादि में सर्वप्रथम जिनकी पूजा होती है, जो गणों के अधिपति है, इन्द्रियों के स्वामी है, सवके कारण है उन गणपतिजी का पर्व है ‘गणेश चतुर्थी’| जाग्रतावस्था आयी और गयी, स्वप्नावस्था …