महान संकट की ओर बढ़ रहे थे बुल्लेशाह के कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग- 7)
बुल्लेशाह अपने गमो मे डूबा रहता बुल्लेशाह ने विरह मे अलग अलग मौसमों का जायका भी चखा। चखकर जो भी हाल हुआ उसमें अपने बारह माह नामक लोक काव्य मे दर्ज किया बारह महीनों की अलग अलग विरह गाथा के तौर पर बड़ी ही सुन्दर काफिया है।सतशिष्यों को तो हमने रोते बिलखते बहुत देख लिया …