Gurubhaktiyog

महापुरुषों की आज्ञा पालन के महत्व को स्पष्ट करने वाले प्रेरक दो प्रसंग..


गुरु के कार्य का एक साधन बनो, गुरु जब आपकी गलतियां बताएं तब केवल उनका कहा मानों।आपका कार्य उचित है, ऐसा बचाव मत करो। जिसकी निद्रा तथा आहार आवश्यकता से अधिक है, वह गुरु के रुचि के मुताबिक उनकी सेवा नहीं कर सकता।अगर अलौकिक भाव से अपने गुरु की सेवा करना चाहते हो, तो स्त्रियों …

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उस योगी ने हँसते हुये दिलीपराय को वह बता दिया जो उसके सिवा कोई नहीं जानता था


“हे महान! परम सन्माननीय गुरुदेव ! मैं आदरपूर्वक आपको नमस्कार करता हूँ। मैं आपके चरण कमलों के प्रति अटूट भक्तिभाव कैसे प्राप्त कर सकूँ और आपके दयालु चरणों में मेरा मन हमेशा भक्तिभावपूर्वक कैसे सराबोर रहे? यह कृपा करके मुझे कहें।” इस प्रकार कहकर खूब नम्रतापूर्वक एवं आत्मसमर्पण की भावना से शिष्य को चाहिए कि …

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भक्त गुमानी की भक्ति अदभुत थी अदभुत है उनका जीवन प्रसंग…


जिसने गुरु प्राप्त किये हैं ऐसे शिष्य के लिए ही अमरत्व के द्वार खुलते हैं। साधको को इतना ध्यान में रखना चाहिए कि केवल पुस्तकों का अभ्यास करने से या वाक्य रटने से अमरत्व नहीं मिलता। उससे तो वे अभिमानी बन जाते हैं।जिसके द्वारा जीवन का कूट प्रश्न हल हो सके ऐसा सच्चा ज्ञान तो …

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