Gurubhaktiyog

इस व्यापारी की कथा के पीछे छुपा था महत्वबुद्धि का गहरा मर्म…


गुरुभक्तियोग की नींव गुरु के प्रति अखंड श्रद्धा में निहित है। शिष्य को समझ में आता है कि हिमालय की एकांत गुफा में समाधि लगाने की अपेक्षा गुरु की सेवा करने से वह उनके ज्यादा संयोग में आ सकता है। गुरु के साथ अधिक एकता स्थापित कर सकता है। गुरु को संपूर्ण बिनशर्ती आत्मसमर्पण करने …

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गुरू ने कहा संन्यासी उसे मत पालना, क्या था वह और अवज्ञा पर कैसी हुई हानि… पढि़ये…


गुरु में श्रद्धा गुरुभक्तियोग की सीढ़ी का प्रथम सोपान है। गुरु में श्रद्धा दैवी कृपा प्राप्त करने के लिए शिष्य को आशा एवं प्रेरणा देती है। गुरु में संपूर्ण विश्वास रखो। तमाम भय और जंजाल का त्याग कर दो, बिल्कुल चिंतामुक्त रहो। गुरु के उपदेशों में गहरी श्रद्धा रखो। सद्गुरु के स्वभाव और महिमा को …

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आखिर क्या था उस जापानी संत बोकोजो के पास ऐसा जो उन्हें रात भर सोने नहीं देता था…


गुरुकृपा से ही मनुष्य को जीवन का सही उद्देश्य समझ में आता है और आत्मसाक्षात्कार करने की प्रबल आकांक्षा उत्पन्न होती है। यदि कोई मनुष्य गुरु के साथ अखण्ड और अविछिन्न संबंध बांध लें तो जितनी सरलता से एक घट में से दूसरे घट में पानी बहता है उतनी ही सरलता से गुरुकृपा बहने लगती …

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