अपनी समझ बढ़ाओ – पूज्य बापू जी

अपनी समझ बढ़ाओ – पूज्य बापू जी


यह अलौकिक अर्थात् अति अदभुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है परंतु जो पुरुष केवल मुझको ही निरंतर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् इस संसार से तर जाते हैं।’

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।

मामेव ये प्रपद्यन्ते मामायमेतां तरन्ति ते।। (गीताः 7.14)

हे अर्जुन ! मुझ अंतर्यामी आत्मदेव की माया दुस्तर है, पर जो मेरे को प्रपन्न (शरणागत) होते हैं उनके लिए मेरी माया गोपद जैसी है, गाय के पग के खुर जैसी है। जिनको जगत सच्चा लगता है उनके लिए मेरी माया दुस्तर है।

जय-विजय ने सनकादि ऋषियों का अपमान किया। उन सेवकों को सनकादि ऋषियों का श्राप मिला। वे रावण और कुम्भकर्ण हुए। भगवान अंतर्यामी हैं तो भी क्या हो गया ! सेवकों के अपने कर्म, अपनी इच्छा, अपने प्रारब्ध हैं। कोई कहे, भगवान अंतर्यामी हैं तो यह क्यों होने दिया ? अरे, तेरी बुद्धि में खबर नहीं पड़ती भाई ! अंतर्यामी-अंतर्यामी मतलब क्या ? मतलब जगत के व्यवहार को जगत की रीति से नहीं चलने देगा, इसका नाम अंतर्यामी है ? गुरु अंतर्यामी हैं तो ऐसा क्यों ? भगवान अंतर्यामी  हैं तो ऐसा क्यों ?…. ऐसे कुतर्क से पुण्याई और शांति सब खो जाती है।

कबीरा निंद न मिलो पापी मिलो हजार।

एक  निंदक के माथ पर लाख पापिन को भार।।

निंदक अपने दिमाग में कुतर्क भर के रखता है इसलिए उसकी शांति चली जाती है, उसका कर्मयोग भाग जाता है, भक्तियोग भाग जाता है और फिर खदबदाता रहता है।

भगवान अंतर्यामी हैं तो ऐसा क्यों हुआ ? भगवान सर्वसमर्थ हैं और जिनके घर आने वाले हैं ऐसे वसुदेव-देवकी को जेल भोगना पड़े, ऐसा क्यों ? पैर में जंजीरें, हाथ में जंजीरें ऐसा क्यों ? राम जी अंतर्यामी हैं तो मंथरा के भड़काने को तो जानते थे, मंथरा को पहले  ही निकाल देते नौकरी से…. कैकेयी को मंथरा के प्रभाव से बाहर कर देते…. ! विधि की लीलाओं को समझने के लिए गहरी नज़र चाहिए। तर्क-कुतर्क करना है तो कदम-कदम पर होगा लेकिन श्रद्धा की नज़र से देखो तो यह भगवान की माया है। जो भगवान की शरण जाता है उसके लिए यह गोपद की नाईं नन्हीं हो जाती है और जो अश्रद्धा  और कुतर्क की शरण जाता है उसके लिए माया विशाल, गम्भीर संसार-सागर हो जाती है। कई डूब जाते हैं उसमें।

गुरु अंतर्यामी हैं तो हमारे से कभी-कभी ऐसा गुरुजी पूछते थे कि लगे हमारे गुरु अंतर्यामी हैं, कैसे ? लेकिन हमारे मन में ऐसा कभी नहीं आया। अंतर्यामी माने क्या ? जिन्होंने अंतरात्मा में विश्राम पाया है। जब मौज आयी तो अंतर्यामीपने की लीला कर देते हैं, नहीं आयी तो साधारण मनुष्य की नाईं जीने में उनको क्या घाटा है ! भगवान अंतर्यामी हैं फिर भी नारदजी से पूछते  हैं। भगवान अंतर्यामी हैं फिर भी सीता जी के लिए दर-दर पूछते हैं तो उनकी ऐसी लीला है ! उनके अंतर्यामीपने की व्याख्या तुमको क्या पता चले ! पूरे ब्रह्माण्ड में चाहे उथल-पुथल हो जाय लेकिन व्यक्ति का मन न हिले ऐसी श्रद्धा हो, फिर साधक को कुछ नहीं करना पड़ता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2011, पृष्ठ संख्या 4 अंक 224

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *