105 ऋषि प्रसादः सितम्बर 2001

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

जिज्ञासा तीव्र होनी चाहिए


संत श्री आशाराम जी बापू के सत्संग प्रवचन से जिसको कुछ जानना है, वह भी दुःखी है, जिसको कुछ पाना है वह भी दुःखी है, जिसको कुछ छोड़ना है वह भी दुःखी है। कुछ पाना है और वह दूर है तो वहाँ जाना पड़ता है अथवा उसे बुलाना पड़ता है। कुछ छोड़ना है तब भी …

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चित्त को वश कैसे करें ?


संत श्री आशाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से श्री योगवाशिष्ठ महारामायण में आता है किः “चित्तरूपी पिशाच भोगों की तृष्णारूपी विष से पूर्ण है और उसने फुत्कार के साथ बड़े-बड़े लोक जला दिये हैं। शम-दम आदि धैर्यरूपी कमल जल गये हैं। इस दुष्ट को और कोई नहीं मार सकता…. हे राम जी ! यह चित्त …

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भोजन पात्र


भोजन शुद्ध, पौष्टिक, हितकर व सात्त्विक बनाने के लिए हम आहार व्यंजनों पर जितना ध्यान देते हैं उतना ही ध्यान हमें भोजन के बर्तनों पर भी देना आवश्यक है। भोजन बनाते समय हम हितकर आहार द्रव्य उचित मात्रा में लेकर, यथायोग्य पदार्थों को एक साथ मिलाकर उन पर जब अग्निसंस्कार करते हैं तब वे जिस …

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