विकारों से बचने हेतु

विकारों से बचने हेतु


संकल्प-साधना

(भगवत्पाद स्वामी श्री श्री लीलाशाहजी महाराज)

विषय विकार साँप से विष से भी अधिक भयानक हैं, इन्हें छोटा नहीं समझना चाहिए। सैंकड़ों लिटर दूध में विष की एक बूँद डालोगे तो परिणाम क्या मिलेगा ? पूरा सैंकड़ों लिटर दूध व्यर्थ हो जायेगा।

साँप तो काटेगा तभी विष चढ़ पायेगा किंतु विषय-विकार का केवल चिंतन ही मन को भ्रष्ट कर देता है। अशुद्ध वचन सुनने से मन मलिन हो जाता है।

अतः किसी भी विकार को कम मत समझो। विकारों से सदैव सौ कोस दूर रहो। भ्रमर में कितनी शक्ति होती है कि वह लकड़ी को भी छेद देता है, परंतु बेचारा फूल की सुगंध पर मोहित होकर पराधीन हो के अपने को नष्ट कर देता है। हाथी स्पर्श के वशीभूत होकर स्वयं को गड्ढे में डाल देता है। मछली स्वाद के कारण काँटे में फँस जाती है। पतंगा रूप से वशीभूत होकर अपने को दीये पर जला देता है। इन सबमें सिर्फ एक-एक विषय का आकर्षण होता है फिर भी ऐसी दुर्गति को प्राप्त होते हैं, जबकि मनुष्य के पास तो पाँच इन्द्रियों के दोष हैं। यदि वह सावधान नहीं रहेगा तो तुम अनुमान लगा सकते हो कि उसका क्या हाल होगा !

अली पतंग मृग मीन गज, एक एक रस आँच।

तुलसी तिनकी कौन गति जिनको ब्यापे पाँच।।

अतः भैया मेरे ! सावधान रहें। जिस-जिस इन्द्रिय का आकर्षण है उस-उस आकर्षण से बचने का संकल्प करें। गहरा श्वास लें और प्रणव (ॐकार) का जप करें। मानसिक बल बढ़ाते जायें। जितनी बार हो सके बलपूर्वक उच्चारण करें, फिर उतनी ही देर मौन रहकर जप करें। ‘आज उस विकार में फिर में नहीं फँसूँगा या एक सप्ताह तक अथवा एक माह तक नहीं फँसूँगा….’ ऐसा संकल्प करें। फिर से गहरा श्वास लें और ‘हरि ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ…’ ऐसा उच्चारण करें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2010, पृष्ठ संख्या 19, अंक 209

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