193 ऋषि प्रसाद जनवरी 2009

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

विश्वगुरु भारत – पाश्चात्य विद्वान मैक्समूलर


मैं आप सबको विश्वास दिलाता हूँ कि भारत जैसा कर्मक्षेत्र न तो यूनान ही है न ही इटली ही, न तो मिश्र के पिरामिड ही इतने ज्ञानदायक हैं और न बेबीलोन के राजप्रासाद ही । यदि हम सच्चे सत्यान्वेषी हैं, यदि हममें ज्ञानप्राप्ति की भावना है और यदि हम ज्ञान का सच्चा मूल्यांकन करना जानते …

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बंधन और मुक्ति कर्म से


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) गुरुकृपा हि केवलं शिष्यस्य परं मंगलम् । गुरु की कृपा ही शिष्य का परम मंगल कर सकती है, दूसरा कोई नहीं कर सकता है यह प्रमाण वचन है । प्रमाण वचन को जो पकड़ता है वह तरता है । जो मन के अनुसार, वासना के अनुसार ही गुरु को …

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‘यह कौनसा मेथड है ?’


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) विदेश के मनीषियों ने, बड़े-बड़े विद्वानों ने, अच्छे-खासे ‘इंटेलिजेंट (बुद्धिमान) कहलाने वाले लोगों ने यह स्वीकार किया कि भारत का तत्त्वज्ञान, फिलासफी, भारतीय दर्शन समझ में तो आ जाता है कि एक ही सत्ता है, अनेक अंतःकरणों में और अनेक वस्तु-व्यक्तियों में वह एक ही परमात्मा है । उसके …

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