207 ऋषि प्रसादः मार्च 2010

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

धर्मात्मा की ही कसौटियाँ क्यों ?


(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से) प्रायः भक्तों के जीवन में यह फरियाद बनी रहती है कि ‘हम तो भगवान की इतनी भक्ति करते हैं, रोज सत्संग करते हैं, निःस्वार्थ भाव से गरीबों की सेवा करते हैं, धर्म का यथोचित अनुष्ठान करते हैं फिर भी हम भक्तों की इतनी कसौटियाँ क्यों होती हैं ?’ …

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भारतीय संस्कृति की पूर्णता का प्रतीक – होली


शास्त्र कहते हैं- उत्सव (उत्+सव) अर्थात् उत्कृष्ट यज्ञ। जीवन को यज्ञमय बनाकर चैतन्यस्वरूप परमात्मा का आनंद-उल्लास प्रकटाने का सुअवसर प्रदान करते हैं सनातन संस्कृति के उत्सव। ऋतुराज वसंत की प्रारम्भिक वेला में मनाया जाने वाला ‘होलिकोत्सव’ वसंतोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस समय प्रकृति नवचैतन्य से युक्त होती है। प्राचीनकाल से मनाया जाने …

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आत्मबल ही जीवन है


(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से) रोग प्रतिकारक शक्ति कमजोर होती है तभी रोग पकड़ते हैं, विकार-प्रतिकारक शक्ति कमजोर होती है तभी विकार हावी होते हैं, चिंता को कुचलने के शक्ति कमजोर होती है तभी चिंता हावी हो जाती है। जैसे दुर्बल शरीर को बीमारियाँ घेर लेती हैं, ऐसे ही दुर्बल विचारशक्तिवाले को तरह-तरह …

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