ऋषियों की वाणी है ‘ऋषि प्रसाद’
कर्म किये बिना कर्ता रह नहीं सकता और कर्म में पराधीनता है। बिना पराश्रय के कर्म होता ही नहीं, पर का आश्रय लेना ही पड़ता है और किये बिना रहा नहीं जाता है। ….. तो पर का आश्रय लेने वाला कर्म अगर कर्म को परोपकार में बदल दे तो कर्ता ‘स्व’ के सुख में, स्व …