श्रीमद् आद्य शंकराचार्य जी द्वारा विरचित गुर्वष्टकम् का हिन्दी पद्य भावानुवाद
गुरुपद विमुख हो तो सब नाशकारी स्वयं हो मनोहर, सुरूपिणी नारी, अमित द्रव्य सब ओर हो कीर्ति भारी । लगा ना यदि चित्त गुरु के चरण में, तो निःसार ही है ये उपलब्धि सारी ।।1।। सहित वित्त पुत्रादि पौत्र व नारी, स्वजन संग रहने को ऊँची अटारी । हो प्रारब्ध से सब सुलभ इस जगत …