335 ऋषि प्रसादः नवम्बर 2020

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

यात्रा की कुशलता व दुःस्वप्न-नाश का वैदिक उपाय


जातवेदसे सुनवाम सोमरातीयतो न दहाति वेदः । स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिंधुं दुरितात्यग्निः ।। ‘जिस उत्पन्न हुए चराचर जगत को जानने वाले और उत्पन्न हुए सर्व पदार्थों में विद्यमान जगदीश्वर के लिए हम लोग समस्त ऐश्वर्ययुक्त सांसारिक पदार्थों का निचोड़ करते हैं अर्थात् यथायोग्य सबको बरतते हैं और जो अधर्मियों के समान बर्ताव …

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जपमाला में 108 दाने क्यों ?


पूज्य बापू जी के सत्संग-वचनामृत में आता हैः “शास्त्र में मिल जाता है कि माला में 108 दाने ही क्यों ? 109 नहीं, 112 नहीं… 108 ही क्यों ? कुछ लोग 27 दाने की माला घुमाते हैं, कोई 54 दाने की माला घुमाते हैं और कोई 108 दाने की घुमाते हैं । इसका अपना-अपना हिसाब …

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सत्संग की ऐसी समझ से होता निश्चिंत व निर्दुःख जीवन – पूज्य बापू जी


ठाकुर मेघसिंह बड़े जागीरदार थे । साथ ही वे बड़े सत्संगी भी थे । सत्संग के प्रभाव से वे जानते थे कि ‘जो कुछ होता है, मंगलमय विधान से होता है, हमारे विकास के लिए होता है ।’ वे कोई वायदा करते तो जल्दबाजी में नहीं करते, विचार करके ‘हाँ’ बोलते और बोली हुई ‘हाँ’ …

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