यात्रा की कुशलता व दुःस्वप्न-नाश का वैदिक उपाय
जातवेदसे सुनवाम सोमरातीयतो न दहाति वेदः । स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिंधुं दुरितात्यग्निः ।। ‘जिस उत्पन्न हुए चराचर जगत को जानने वाले और उत्पन्न हुए सर्व पदार्थों में विद्यमान जगदीश्वर के लिए हम लोग समस्त ऐश्वर्ययुक्त सांसारिक पदार्थों का निचोड़ करते हैं अर्थात् यथायोग्य सबको बरतते हैं और जो अधर्मियों के समान बर्ताव …