Satsang

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कर्मों से मुक्ति


  https://hariomaudio.standard.us-east-1.oortstorage.com/hariomaudio_satsang/Title/album/Gyan-Jyoti-Pragtao/Karmon-Se-Mukti/Karmon-Se-Mukti-1.mp3     https://hariomaudio.standard.us-east-1.oortstorage.com/hariomaudio_satsang/Title/album/Gyan-Jyoti-Pragtao/Karmon-Se-Mukti/Karmon-Se-Mukti-2.mp3   यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः। तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचरः।।   यज्ञ के निमित्त किये जानेवाले कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्म में लगा हुआ यही प्राणी, ये मनुष्य समुदाय कर्मों से बँधता है। इसलिए हे अर्जुन तू आसक्ति से रहित होकर यज्ञ के निमित्त ही भलीभांति कर्तव्य कर्म कर.. भगवदगीता तीसरे …

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रामायण तात्विक अर्थ


Audio : https://hariomaudio.standard.us-east-1.oortstorage.com/hariomaudio_satsang/Ramayan-Tatvik-Arth.mp3     पाप का फल ही दुख नहीं है । पुण्यमिश्रित फल भी विघ्न है । ऐसा कौन सा इंसान है जिसको  संसार में विघ्न नहीं है।  तो भगवान महा पापी होंगे इसलिए उनको दुख आया होगा,  14 साल वन में गए।  यदि पाप का फल ही दुख होता तो राज्यगद्दी की तैयारिया …

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वृत्ति मीमांसा


  वृत्ति मीमांसा संसार में जो भी दुःख सुख है वे सब वृत्ति का विलास मात्र है.. वृत्ति माना क्या?उसको कोई लोग सुरता भी कहते है ,कोई फुरना भी कहते है…आप तो समझ गए होंगे ..पास में कौन है जबतक तुम्हारी वृत्ति नही गयीं तबतक तुम्हें पता नही चलता इसका नाम वृत्ति है।तो,संसार का व्यवहार …

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