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वीर्य की रक्षा, जीवन की रक्षा – पूज्य बापू जी



अपनी वृत्ति ज्ञान-संवित (अनुभवस्वरूप आत्मा-परमात्मा) की तरफ
रखो । बुद्धि नाश मत करो । ज्ञानस्वरूप चैतन्य की तरफ चलो । जो
भी काम करो, खूब अक्ल से, सोच विचारकर योजनाबद्ध तरीके से और
सूक्ष्मता से करो तो वृत्ति ज्ञान-संवित की तरफ जायेगी ।
नेपोलियन युद्ध में बड़ा कुशल था, बड़ा हिम्मतवाला था । उसका
सेनापति ग्राउची सेना ले के आने वाला था लेकिन उस लापरवाह ने आने
में देर कर दी । तो जिस समय पर वार करना था उस समय नेपोलियन
तो पहुँच गया किंतु सेना देर से पहुँची । नेपोलियन पकड़ा गया शत्रुओं
के हाथ । वाटरलू युद्ध में हारने के कारण नेपोलियन को सेंट हेलेना
जेल की हवा खानी पड़ी । आखिरी जिंदगी बेचारे की बहुत खऱाब हुई ।
साथी लापरवाह रहा तो इतना बहादुर नेपोलियन परास्त हो गया ।
लापरवाही बुद्धिहीनता की निशानी है और बुद्धिहीन होती है शरीर
की साररूप शुक्र धातु क्षीण होने से । इसलिए युवाधन सुरक्षा पर अपना
ज्यादा ध्यान देते हैं । जितनी यह धातु सुरक्षित उतना व्यक्ति
बुद्धिमान बनेगा ।
हम अगर बचपन में, किशोर अवस्था में गलती करते तो
ईश्वरप्राप्ति तो नहीं हो सकती थी, बुद्धि भी नहीं होती इतनी । संयमी
रहे तो ‘बापू जी’ बने के बैठ गये, नहीं तो ‘बेटा जी’ बनने में भी मुसीबत
होती । न जाने कितने-कितने लोगों की आज्ञा में रहना पड़ता ।
धातुक्षय करने वाला कइयों की आज्ञा में रहेगा, पूँछ हिलाता रहेगा ।
इसलिए वीर्य की रक्षा जीवन की रक्षा है । ऐसे वैसे चलचित्र,
धारावाहिक, वेबसाईट आदि न देखें और अपनी संवित (वृत्ति) अपने

ज्ञानस्वरूप की तरफ रखें । परिणाम का विचार करें कि ‘यह करने से
आखिर क्या मिल जायेगा ?’
भगवान कहते हैं- बुद्धियोगमुपाश्रित्य… अपनी बुद्धि को सूक्ष्म
करो, संयमी करो । वीर्यनाश से बचो, समय नाश से बचो, लापरवाही से
बचो, परनिंदा से बचो तो बस, यूँ ईश्वरप्राप्ति ! फिर भय भी नहीं रहेगा

वीर्यनाश से नाड़ी दुर्बल होती है न, तो कितना भी व्यक्ति निर्भयता
का सत्संग सुने फिर भी वह दब्बू… दब्बू… दब्बू होता है । कितनी भी
डाँट सह लेगा लेकिन फिर भी वीर्यनाश के कारण लापरवाही करेगा ।
चाहे सौ-सौ जूता खायें, तमाशा घुस के देखेंगे… लापरवाही हो ही जाती
है । यह बुद्धिनाश की निशानी है । वीर्यनाश अर्थात् बुद्धिनाश ! काम
विकार से बुद्धि दब्बू हो जाती है । इसलिए दिव्य प्रेरणा प्रकाश
(युवाधन सुरक्षा) पुस्तक का जितना हो सके प्रचार करो, करवाओ । यह
मानवता की बड़ी सेवा है ।
वीर्य ही मनुष्यत्व है – स्वामी प्रणवानंद जी
वीर्य की रक्षा करके चलना है । यही जीवन है, यही प्राण है, यही
मनुष्य का यथासर्वस्व है । वीर्य ही मनुष्य का मनुष्यत्व है । इस वीर्य
की रक्षा करने से ही मनुष्य देवता बन सकता है और इसे नष्ट करने
वाला मनुष्य पशु के रूप में गिना जाता है ।
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 361
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यह घोर अन्याय इतिहास में लिखा जायेगा| डॉक्टर ए.पी. सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्चतम अदालत, राष्ट्रीय महासचिव, बी.एस.के. लॉयर्स फेडरेशन


क्या है षड्यंत्र का कारण ?
जब इस देश में ईसाई मिशनरियाँ तेजी से फैल रही थीं,
गरीबों का बहुत तेजी से धर्मांतरण हो रहा था, उस समय सनातन
धर्म की रक्षा के लिए आवाज उठाने वाले एकमात्र संत थे पूज्य
संत श्री आशाराम जी बापू, जिन्होंने इस लड़ाई को लड़ा । बापू जी
ने वेलेन्टाइन डे आद को हटा के मातृ-पितृ पूजन दिवस, तुलसी
पूजन दिवस मनवाना शुरु किया । ब्रह्मचर्य, सदाचार आदि को
बढ़ावा दिया, हमारी प्राचीन संस्कृति पर हो रहे प्रहार को रोकने हेतु
संघर्ष किया, संस्कृति का प्रचार-प्रसान किया, गरीबों, दलितों,
शोषितों, पीड़ितों, मजदूरों के उत्थान में, धर्म-रक्षा में अपना जीवन
लगा दिया ।
पूज्य बापू जी के खिलाफ मुहिम चलायी गयी, जिसमें अऩेक
लोग शामिल हुए और एक आपराधिक व राजनीतिक षड्यंत्र के
तहत उन पर झूठा, घृणित केस लगाया गया । जिन्होंने जन-जन
के, असंख्य लोगों के चरित्र को, ब्रह्मचर्य को पराकाष्ठा तक ऊपर
उठाया, उन्हीं पर उसी बात का उलटा केस लगा दिया गया यह
कितनी बड़ी विडम्बना है !
बापू जी के लिए कानून अलग क्यों ?
जिन पर केसों की लाइनें थीं, क्रिमिनल रिकॉर्डस थे, कोरोना
काल में उन्हें भी रिहा किया गया और इतने वयोवृद्ध व्यक्ति, जो

विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनका कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं
है, उन्हें छोड़ा नहीं गया जबकि यह उनका हक था ।
अदालत रिहा करते समय आधार माँगती है । पैरोल, जमानत
का यह आधार होता है कि वे स्थायी निवासी हैं ? हाँ हैं, यह बात
करोड़ों लोग कह रहे हैं । क्या कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड है ? नहीं है ।
कहीं विदेश तो नहीं चले जायेंगे ? क्यों जायेंगे ? उनके लिए 432
आश्रम इन्तजार कर रहे हैं, करोड़ों घरों में लोग दीपक जलाने के
लिए इंतजार कर रहे हैं ! चाहे कोरोना काल की रिहाई हो, चाहे
इलाज की या मूल अधिकारों की रक्षा की बात हो, चाहे करोड़ों
लोगों की भावनाओं की बात हो, चाहे एक लोक हितैषी,
राष्ट्रहितकारी संतत्व हो… रिहाई के लिए कितने आधार हैं फिर भी
उन्हें जमानत, अंतरिम जमानत या पैरोल-कुछ भी राहत नहीं दी
गयी ।
अहमदाबाद केस की कहानी गढ़ी गयी
अहमदाबाद केस में 12 साल पुरानी एक झूठी कहानी बतायी
गयी । क्या 12 साल के दौरान अहमदाबाद में पुलिस नहीं थी ?
टेलिफोन नहीं थे ? कहीं कोई चैनल नहीं था ? उस समय की
कोई शिकायत कहीं रिकॉर्ड में है ? नहीं है । एक षड्यंत्र के तहत
कानून बनाया गया । उसके बाद ऐसी कहानी की रचना की गयी ।
जो कानून महिलाओं-बच्चियों की रक्षा के लिए बनाया गया
था उसका घोर दुरुपयोग हो रहा है । बापू जी पर क्रिमिनल केस
लग रहे हैं ! अरे, बापू जी का जहाँ सत्संग हो जाता था, उनकी
ब्रह्मवाणी का लोग श्रवण कर लेते थे वहाँ के अपराधी भी अपराधों
को छोड़ के चरित्रवान सज्जन बन जाते थे ।

इतिहास में लिखा जायेगा कि बापू जी को निहायत झूठे केस
में जेल में रखा गया था, जिन्होंने समाज व देश के निर्माण के
लिए अपना पूरा जीवन लगाया था ।
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 33 अंक 361
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पूज्य बापू जी के साथ आध्यात्मिक प्रश्नोत्तरी



साधिका बहन का प्रश्नः गुरुदेव मैंने ॐकार मंत्र का अनुष्ठान चालू
किया तो उसमें इतना रस आने लगा कि गुरुमंत्र का अनुष्ठान ही नहीं
होता । इससे गुरुमंत्र का प्रभाव कम तो नहीं होगा न ?
पूज्य बापू जीः देखो, अगर संसारी स्वार्थ है तो अकेला ॐकार मंत्र
स्त्रियों को ज्यादा नहीं जपना चाहिए, ऐसा भी है ।
किसी का स्त्री शरीर है पर यदि वह अपने को स्त्री नहीं मानती है,
अपने को ईश्वर मानती है, ईश्वरप्राप्ति का महत्त्व है तो उसके लिए
ॐकार मंत्र गुरुमंत्र ही है । जिसकी शादी-वादी की इच्छा है और ॐकार
मंत्र करती है तो फिर नहीं जमेगा ।
अन्य साधिकाः बापू जी ! हमको आप ही चाहिए । मैं क्या करूँ ?
पूज्य बापू जीः हाँ, हम तो हैं ही न, हमको तू हटा सके ऐसी तेरे
बाप में ताकत नहीं है ! हमको केवल पहचान ले बस और क्या है !
‘आप ही चाहिए…’ हम कोई दूर हैं तेरे से, दुर्लभ हैं ?
…तो मैं कहाँ बैठकर बोल रहा हूँ ? जिसको यह चाहती है, मैं वहीं
बैठ के बोल रहा हूँ, यह दाढ़ीवाला, मूँछों वाला पुरुष होकर नहीं बोल रहा
हूँ, मैं तो परम पुरुष (परमात्मस्वरूप) हो के बोलता हूँ कि ‘मैं तुम्हारे से
दूर नहीं हूँ, दुर्लभ नहीं हूँ, परे नहीं हूँ, पराया नहीं हूँ ।’ तुम ऐसा मानोगे
तो मैं मिला मिलाया हूँ ।
प्रश्नः बापू जी ! जब हम आश्रम में रहते हैं आपके आभामंडल में
रहते हैं तो ब्रह्मविचार मजबूत होता है किंतु जैसे ही बाहर जाते हैं काम
के लिए, ऑफिस आदि में जाते हैं तो वह घटने लगता है तो वह स्थिति
कैसे बनाये रखें ? जो यहाँ से प्रसाद लेके जाते हैं उसे लक्ष्यप्राप्ति तक
कैसे बनाये रखें हम ?

पूज्य् बापू जीः जिसको तुम महत्त्व दोगे वह बन जायेगा । बाहर
का काम करो अपने ढंग से, मना नहीं है लेकिन जैसे ऊँची चीज का
ऊँचा (ज्यादा) ध्यान रखा जाता है, छोटी चीज का छोटा (कम) ध्यान
रखा जाता है, ऐसे ही हाड़-मांस के शरीर के लिए जो कुछ व्यवसाय
करते हो उसका अपना नपा तुला ही महत्त्न होना चाहिए और ब्रह्मनिष्ठा
का, ईश्वरप्राप्ति का महत्त्व ज्यादा होना चाहिए । जितना जिस वस्तु का
महत्त्व बढ़ाओगे उतना वह आसान हो जायेगी, जिधर का महत्त्व होगा
उधर सफलता प्राप्त होगी ।
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 34 अंक 361
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