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ऐसा करोगे तो भगवान तुम पर बहुत खुश हो जायेंगे – पूज्य बापू जी


ध्यान में आप अपनी मेहनत से कुछ करोगे तो बहुत वर्ष लग जायेंगे । शीघ्र काम बन जाय इसके लिए मैं आपको एक तरकीब बताता हूँ । जैसे बच्चा पिता की उँगली पकड़ के चले तो बच्चे की जिम्मेदारी होती है पर पिता अगर बच्चे का हाथ पकड़ ले, उँगली पकड़ ले तो बच्चे का काम पिता के द्वारा ही हो जाता है । तो पिताओं के पिता हैं अंतर्यामी परमात्मा ! आप उनसे बातें करने की रीत सीख लो फिर देखो वे कैसे आपका हाथ पकड़ लेते हैं ! ऐसा हो आपका शयन-जागरण आप रात को सोते तो हो…. सोने से आपकी आँखें आदि इन्द्रियाँ मन में लीन होती हैं, मन बुद्धि में लीन होता है, बुद्धि जीवात्मा में लीन होती है और जीवात्मा भगवान में लीन होता ह, तभी सुबह ताजे हो के उठते हो । तो रात को सोते समय भगवान से कहो कि ‘भगवान ! मैं तो आपको नहीं जानता हूँ… रात में मेरा मन-बुद्धि और मैं आप में लीन होते हैं, यह मेरे को पता नहीं है लेकिन आपको पता है ।’ भले जैसे माँ-बाप को बोलते हो ऐसे ही हँस के कहो, रो के कहो, नम्रता से कहो या किसी भी भाव से कहो ‘हम आपको नहीं जानते किंतु आप हमको जानते हो, हम जैसे तैसे हैं आपके हैं । प्रभु ! हमको सद्बुद्धि दो । हमारी ध्यान में प्रगति करो । हम कौन हैं यह हमको पता चल जाय । मैं कौन हूँ प्रभु जी ? लड़का-लड़की तो मेरा शरीर है । दुःख होता है मन को भय होता है मन को, उसको जानने वाला मैं कौन हूँ प्रभु जी ?’ भगवान खुश हो जायेंगे कि ‘ये बच्चे कितना ऊँचा प्रश्न पूछ रहे हैं !’ माता-पिता भी खुश हो जायेंगे बच्चों की होशियारी देख के । रोज रात को सोते समय भगवान से कहो कि ‘प्रभु जी ! मैं कौन हूँ ? मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर मेरा, मैं हाथ नहीं हूँ, हाथ मेरा… ऐसे ही पैर मेरा, सिर मेरा, मन मेरा, बुद्धि मेरी, अहं मेरा – इन सबको जानने वाला मैं कौन हूँ ?’ बता दो न ! हे प्रभु जी ! हे प्यारे जी ! हे मेरे जी !…’ ऐसा करते-करते कभी तो लाचारी-मोहताजी से गिड़गिड़ाओ, कभी रो लो, कभी हँस लो । इससे आप पर भगवान प्रसन्न होंगे । उद्यमी बच्चा माँ-बाप को भी अच्छा लगता है । आलसी और भोंदू बच्चों रसे तो माँ-बाप भी परेशान रहते हैं कि ‘यह बोलता नहीं, खाता नहीं… यह ऐसा है…’ लेकिन उद्यमी बच्चे के लिए बोलेंगे कि ‘यह तो बड़ा होशियार है… !’ आप तो सचमुच में जन्म-जन्म से भगवान के बच्चे हो । शरीर के माँ-बाप भी बदल जाते हैं, बच्चे भी बदल जाते हैं किंतु जीवात्मा-परमात्मा का तो सदियों से यही रिश्ता है । रोज सोने से पहले भगवान से नाता जोड़ो । फिर सो के उठो तो नींद भले खुल जाय पर आँख नहीं खुले, खुले तो फिर बंद कर लो । शरीर को खींचो – हाथों पैरों को, दूसरे अंगों को खींचो – खींचो… फिर ढीला छोड़ दो, फिर खींचो फिर ढीला छोड़ो । तुमने देखा होगा कि बिल्ली और कुत्ते जल्दी बीमार नहीं पड़ते और बड़े सक्रिय रहते हैं, बड़े सावधान रहते हैं । क्यों ? कि जब नींद में से उठते हैं तो अपने शरीर को अच्छी तरह से खींचते हैं । खींचने से ऊर्जा ज्यादा आती है, भगवान की शक्ति, शांति और ज्यादा मिलती है, जिससे अपनी कर्म करने की कुशलता और उपयोगी, उद्योगी, सहयोगी बनने की योग्यता बढ़ती है । फिर पलथी मान के बैठ जाओ कि ‘हे प्रभु ! मैंने सुना है आप सत् हो, सत् माने जो सदा रहे । शरीर सदा नहीं रहता, आप सदा रहते हो और मरने के बाद भी हम रहते हैं तो हम भी सत् हैं । भगवान ! यह सुना है, अनुभव नहीं किया । और जो सत् होता है वह चेतन होता है यह भी सत्संग में सत्पुरुषों से सुना है, शास्त्र वचन है । आप सत् हैं, चेतन हैं तो मैं भी सत् हूँ, चेतन हूँ क्योंकि जीवात्मा-परमात्मा का शाश्वत संबंध है । हे परमात्मा ! जीवात्मा मेरी संतान है यह आप ही बोलते होः ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । (गीताः 15.7) ये जो जीव हैं, मनुष्य हैं, ये मेरे अंश हैं । और आप आनंदस्वरूप हो तो हम भी आनंदस्वरूप हैं यह सुना है, कभी-कभी आनंद भी आता है । तो हमें भी आपके स्वरूप का अनुभव हो जाय ऐसी कृपा करना मेरे प्रभु जी ! मेरे प्यारे जी !’ इस तरह भगवान से बातें करो तो भगवान तुम पर बहुत खुश हो जायेंगे और तुम्हारे मन में, बुद्धि में ऐसी-ऐसी दिव्य प्रेरणाएँ देंगे जैसी मेरे मन-बुद्धि में देते हैं । स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 16,17 अंक 360 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनमोल है सत्संग !


‘मानव सेवा संघ’ के संस्थापक स्वामी शरणानंद जी से किसी ने पूछाः “आप सत्संग समारोह तो करते हैं परंतु उस पर इतना खर्चा !” शरणानंद जी ने कहाः “मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इतने खर्चे के बाद अगर एक भी भाई के जीवन में, एक भी बहन के जीवन में जीवन की वास्तविक माँग जागृत हो जाय तो उस पर सारे विश्व की सम्पत्ति न्योछावर कर देना भी कम है । आपने सत्संग का महत्त्व नहीं समझा है । सत्संग के लिए हँसते-हँसते प्राण भी दिये जा सकते हैं । सत्संग के लिए क्या नहीं दिया जा सकता ? आप यह सोचें कि सत्संग जीवन की कितनी आवश्यक वस्तु है । अगर आपके जीवन में सफलता होगी तो वह सत्संग से ही होगी । अगर जीवन में असफलता है तो वह असत् के संग से है ।” उक्त प्रश्न वे ही कर सकते हैं जिनको सत्संग के मूल्य का पता नहीं है, जिनकी मति-गति भोगों में भटकी हुई है । अगर दुनिया की सब सम्पत्ति खर्च करके भी ब्रह्मवेत्ता महापुरुष का सत्संग मिलता है तो भी सौदा सस्ता है । सत्संग में जो सुधार होता है वह कुसंग से थोड़े ही होगा ! सत्संग से जो सन्मति मिल्ती है वह भोग-संग्रह से थोड़े ही मिलेगी ! लाखों रुपये खर्च किये, व्यक्ति को पढ़ा दिया, डॉक्टर, बैरिस्टर बना दिया लेकिन सत्संग नहीं मिला तो बचा सकेगा अपने को कुसंग से ? नहीं । सत्संग व्यक्ति को भोग-संग्रह से बचाकर आंतरिक सुख का एहसास कराता है । स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 23 अंक 360 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

उद्गम-स्थान में बुद्धि को विश्रांति दिलाकर पुष्ट बनायें – पूज्य बापू जी


बुद्धि का उद्गम स्थान क्या है ? लोग बोलते हैं ‘पाश्चात्य जगत के विद्वानों का यह मानना है कि संसार का अनुभव करने से बुद्धि बढ़ती है, बनती है ।’ किंतु अपनी वैदिक संस्कृति व प्राचीन ऋषियों का कहना है कि ‘बुद्धि का अधिष्ठान, उद्गम-स्थान संसार नहीं है, आत्मा है और उस आत्मा-परमात्मा में से ही बुद्धि का निश्चय स्फुरित होता है ।’ बाहर से सीख-सीख के बुद्धि किसी विषय में पारंगत होती है लेकिन बुद्धि का मूल आत्मा है । भगवान को हम अपना मान के जप करेंगे तो भगवान में ज्यों-ज्यों बुद्धि विश्रांति पायेगी त्यों-त्यों पुष्ट होती जायेगी । मीराबाई के पद सुनकर जो शांति मिलती है, संत कबीर जी की साखियों से जो ज्ञान और शांति मिलती है, संत तुकाराम जी के अभंगों से और अन्य आत्मारामी संतों के वचनों से जो ज्ञान और आनंद आता है, शांति मिलती है ऐसे अभंग, पद, साखियाँ कोई विद्वान बना ले या ऐसे वचन बोल दे तो भी उनसे उतनी शांति, ज्ञान, पुण्य नहीं हो सकता है । लोग बोलते हैं तो भाषण हो जाता है, लेक्चर (व्याख्यान) हो जाता है पर संत बोलते हैं तो सत्संग हो जाता है क्योंकि वे अपनी बुद्धि को भगवान में विश्रांति दिलाकर फिर परहित की भावना से बोलते हैं । तो भगवान को अपना मानना, अपने को भगवान का मानना, ऐसे करके भगवान से प्रीति करना । इससे क्या होगा कि बुद्धि में भगवान का योग आयेगा (ज्ञाननिष्ठा आयेगी) । इससे खूब अंतःप्रेरणा मिलेगी, अंतरात्मा का आराम मिलेगा, अंतरात्मा का ज्ञान प्रकाशित होगा । स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 30 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ