शांति के लिए लोग भजन, तप, उपवास, देश-परदेश की यात्राएँ आदि सब करते हैं । मेरा अमेरिका में व्हाइट हाउस के नजदीक कहीं जाना हुआ था । तो एक व्यक्ति आकर मिला, मेरे को बोलाः ″स्वामी जी ! You are an Indian? ( क्या आप भारतीय हैं ? )″
मैंने कहाः ″हाँ, आप भी तो भारतीय लगते हैं ।″ मैंने जानबूझकर उससे अपनी राष्ट्रभाषा में बात की ।
बोलाः ″हाँ ! I am also Indian. ( मैं भी भारतीय हूँ । )″
मैंने कहाः ″अच्छा, तो भारत में कहाँ रहते थे आप ?″
″I was Income Tax commissioner in Ahmedabad. ( मैं अहमदाबाद में आयकर आयुक्त था । )″
″अच्छा, बढ़िया । इधर कैसे आना हुआ ?″
″मैं वर्ल्ड टूर करने को निकला हूँ ।″
″तुम्हारा वर्ल्ड टूर का हेतु क्या है ?″
″I want peace, only peace. मैं बस शांति चाहता हूँ इसलिए वर्ल्ड टूर करने को निकला हूँ । अभी-अभी मेरा रिटायरमेंट हुआ है ।″
अब मैं उसको कैसे कहूँ कि तुम्हारा दुर्भाग्य है ! मैंने कहाः ″मेरे बड़े दुर्भाग्य रहे कि तुम इनकम टैक्स कमिश्नर रहे, हमारे आश्रम और तुम्हारे ऑफिस के बीच बस 8-9 कि.मी. का अंतर है और आपको आत्मशांति के लिए इतनी दूर वर्ल्ड टूर करना पड़ता है, यह बड़ा आश्चर्य है !″ शांति के लिए वर्ल्ड टूर ! नारायण… नारायण… ! शांति के लिए वर्ल्ड टूर की जरूरत नहीं, केवल हृदय के टूर की जरूरत है और हृदय का टूर कराने वाला कोई मिल जाय तो फिर देर कितनी होती है !
अक्ल नकल नहीं चाहिए हमको पागलपन दरकार ।
छोड़ पुवाड़े ( बखेड़े ) झगड़े सारे, गोता वहदत ( एक अद्वैत तत्त्व में ) अंदर मार ।।
लाख उपाय कर ले प्यारे ! कदे ( कभी भी ) न मिलसी यार ।
बेखुद ( अहंकाररहित ) हो जा देख तमाशा, आपे खुद दिलदार ( प्रेमास्पद ) ।।
लाख उपाय वर्ल्ड टूर के कर लें, संग्रह कर लें, पद-प्रतिष्ठा के कर लें लेकिन असली सुख और असली शांति नहीं मिलेगी । बेखुद हो जा, देख तमाशा… अपनी खुदी ( अहं ) को खो दे उस गुरु-तत्त्व में, आत्म-तत्त्व में, फिर तमाशा देख तो आनंद-ही-आनंद है ! मौज ही मौज है ! मंगल-ही-मंगल है ! कल्याण-ही-कल्याण है ! चाहे वर्ल्ड टूर करो, चाहे ब्रह्मांड का टूर करो । ये टूर आरम्भ में तो उत्साह देंगे – टूरवाले भागेंगे, यह देखेंगे – वह देखेंगे और अंत में थककर आयेंगे ।
शादी करके युवक-युवती आये बोले कि ″हनीमून करने जा रहे हैं ।″
पूछाः ″कहाँ जाना है ?″
बोलेः ″कश्मीर ।″
मैंने सोचा कि ‘ऐ कश्मीर ! तेरे पास कौन-सा सुख है, मैं जाँचने को आता हूँ ।’ मेरा एक इंजीनियर शिष्य हवाई जहाजों में नौकरी करता था, उसके साथ योजना बनायी और डेढ़ दिन के लिए चुपचाप चले गये कश्मीर में जाँचने कि सुख कहाँ रहता है ? डल झील में गये, इधर गये, उधर गये, सब जगह घूमे, नाव-वाव में भी बैठकर देखा । सैलानियोंवाली नाव में बैठे तो उसमें जो सैर कराने वाला व्यक्ति था वह बोलाः ″बाबा जी ! मेरा हाथ देखो न ! मेरे भाग्य में मुंबई देखना लिखा है क्या ? बस एक बार मुंबई देख लूँ ।″
मैंने कहाः ″धत् तेरे की… मुंबई वाले इधर सुख खोज रहे हैं और इधरवाला मुंबई देखना चाहता है ।″
यह बड़े-में-बड़ी गलती है कि लोग मानते हैं- ‘हम जहाँ हैं वहाँ सुख नहीं है, और कहीं जायेंगे तब सुख होगा । हम जैसे हैं वैसे में सुख नहीं है, और कुछ बनेंगे तब सुख होगा ।…’ नहीं, तुम जहाँ हो, जैसे हो, जिस समय हो उसी समय सुखसागर तुम्हारे चित्त में है । जो सच्चा प्रेमी है वह कहीं जाकर, कुछ पा के सुखी होने की भ्रांति में नहीं पड़ता है । वह तो दिले तस्वीर है यार ! जब भी गर्दन झुका ली, मुलाकात कर ली । ॐ गुरु ॐ ॐ… ॐ गुरु… ॐ आनंद… ॐ मस्ती… ॐ स्वास्थ्य… हरि ॐ ॐ ॐ… ॐ माधुर्य… ॐ ॐ आनंद…
आनंद तेरा आत्मा है, प्रसन्नता तेरा आत्मा है, गुरुकृपा तेरे साथ है और फिर तू सुख के लिए बाहर भटकेगा ! कब तक ? अपने असली घर में आ । शरीर का घर तो चारदीवारी है और तेरा घर तो दिलबर का द्वार है । हरि ॐ ॐ…
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2022, पृष्ठ संख्या 5, 6 अंक 350
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ