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Bhakton Ke Anubhav

सपने में मंत्र, जाग्रत में लाभ


6 अगस्त 2009 को मुझे पेट में बहुत तेज दर्द हुआ। डॉक्टर को दिखाया, सोनोग्राफी करायी तो पता चला कि पथरी है। मैंने करीब चार महीने एलोपैथिक, होमियोपैथिक एवं आयुर्वैदिक दवाइयाँ खायीं परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। आखिर सब ओर से थक-हारकर 24 नवम्बर की शाम को मैं पूज्य बापू जी के श्रीविग्रह के सामने बैठकर बहुत रोया और प्रार्थना कीः ‘हे प्रभु ! इस बीमारी को ठीक कर दो, नहीं तो शरीर को ही ले लो।’

रात को बापूजी न सपने में एक मंत्र दिया और बोलेः ‘इसका जप करना, बिना ऑपरेशन के ही पथरी निकल जायेगी।’ मैंने खूब श्रद्धा व विश्वास से मंत्र जपना शुरु किया। लोगों के आग्रह पर 3 दिसम्बर को पुनः एक डॉक्टर को दिखाया तो उसने 7 दिन की दवा दी और कहाः “ब्लैडर में 16 एम.एम. की पथरी है, ऑपरेशन करना ही पड़ेगा।” वह दवा भी असफल हुई। आखिर सब लोग बोले ऑपरेशन करा लो, पर मुझे पक्का विश्वास था कि बापूजी बोले हैं तो बिना ऑपरेशन के ही पथरी निकल जायेगी। मैंने निश्चय किया कि मैं नहीं कराऊँगा ऑपरेशन ! मैंने डॉक्टर से कहा कि “आप पन्द्रह दिन की दवाई और दे दें।” डाक्टर बोलेः “दवा से पथरी नहीं निकलेगी।” मैंने कहाः “जहाँ 4 माह इंतजार किया वहाँ 15 दिन और सही।”

दवा लेकर आ गया। 14 दिसम्बर को सुबह 5 बजे पेशाब को द्वारा वह 16 एम.एम. की पथरी निकल गयी। आज भी वह पत्थर मेरे पास रखा है। जब सपने की दीक्षा शरीर का रोग मिटा सकती है तो जागृत की दीक्षा भव रोग से मुक्त कर दे इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। ऐसे समर्थ सदगुरुदेव के श्रीचरणों में मेरे करोड़ों बार प्रणाम जो हजारों किलोमीटर दूर भी अपने शिष्य की प्रार्थना पर स्वप्न में भी रक्षा कर सकते हैं।

जी दण्डपाणी

मिलिंदनगर, कुर्ला (प.) मुंबई-70

(वर्तमान में अहमदाबाद आश्रम में समर्पित)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2010, पृष्ठ संख्य 27, अंक 208

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एक आम से दो काम


एक बार मेरी पत्नी अचानक बीमार हो गयी। उसे ऐसा सर्वाइकल पेन (गर्दन के मनकों का दर्द) हुआ कि तुरंत अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। डॉक्टर ने कहाः “इनको कम-से-कम सात दिन अस्पताल में रहना पड़ेगा।”

उसके हाथ, पैर और गर्दन पर वजन लटकाकर लिटा दिया। 3-4 दिन बाद पूज्य बापू जी का सत्संग हरिद्वार में होने वाला था। हम लोगों ने वहाँ जाने का विचार पहले से ही बना लिया था पर ऐसी हालत में किस प्रकार हरिद्वार जायें ! जाना आवश्यक था। मैंने अपनी पत्नी से बात की तो वह बोलीः “मुझे तो सत्संग में जाना ही जाना है।” डॉक्टर से बात की तो वे बोलेः “जाने में मरीज को बहुत खतरा है बल्कि आप इनको घर भी नहीं ले जा सकते।”

मैंने डॉक्टर से कहाः “एक दो दिन की छुट्टी दे दीजिए ताकि हम अपना पूजा-पाठ कर लें। फिर दुबारा हम इसे दाखिल करा देंगे।”

डॉक्टर ने ‘हाँ’ की तो हम लोग उसे हरिद्वार ले गये। पत्नी महिलाओं की लाइन में बैठ गयी। इतने में बापू जी पधारे। बापू जी भक्तों के बीच दर्शन देते हुए, कृपा बरसाते हुए घूम रहे थे। बापू जी के हाथों में एक आम था। उसको एक हाथ से दूसरे हाथ में लेकर वे उछाल ले रहे थे। बापू जी ने वह आम मेरी पत्नी को प्रसाद के रूप में ऐसा फेंककर मारा कि जहाँ पर उसे दर्द था। वहीं आकर लगा और उसकी झोली में आ गिरा।

इस घटना को 5 साल हो गये, अस्पताल में जाने की बात तो दूर रही आज तक न तो कोई दवा खायी और न दर्द हुआ। यह सब तो पूज्य गुरुदेव की असीम कृपा का फल है।

अनूप शर्मा, दिल्ली।

मो. 09213416373

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2010, पृष्ठ संख्या 30, अंक 207

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स्वप्न में मंत्रदीक्षा


मुझे आज से 5-7 वर्ष पूर्व पंचेड़ (रतलाम) आश्रम पर पूज्य श्री द्वारा मंत्रदीक्षा मिली थी परन्तु उस समय मुझे इस अति अनमोल धरोहर के महत्त्व का पता नहीं होने से मैं पता नहीं कैसे, अपना गुरुमंत्र भूल गयी। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ ? गुरुमंत्र गुप्त होता है इसलिए मुझे बताने वाला भी कोई नहीं था। मुझमें इतनी हिम्मत भी नहीं कि मैं अपनी इस भारी भूल को पूज्यश्री के समक्ष दोहरा सकूँ। ऐसा लगा कि मैंने अपने जीवन का सर्वस्व खो दिया है। मेरे पास सिवाय पश्चात्ताप के कोई शेष मार्ग नहीं था। फिर भी मुझे पूज्यश्री की निशदिन हम बच्चों पर बरसती कृपा पर अटूट विश्वास था।

मैंने मन-ही-मन प्रतिदिन पूज्यश्री से प्रार्थना करना आरम्भ किया। मुझे पूरा यकीन था कि जब करूणासिंधु गुरुवर सभी की संसारी इच्छाएँ पूर्ण करने में कोई कमी नहीं रखते, किसी को निराश नहीं करते तो मैं जो उनसे माँग रही हूँ वह तो परम दुर्लभ प्रसाद है। बस…. दिन-रात प्रार्थना, पश्चात्ताप में खोयी रहती। आखिरकार पूज्यश्री ने मेरी बिनती स्वीकार कर ली। मेरे निराश, दुःखी मन-मंदिर में गुरुकृपा से आनंद और प्रभुभक्ति के दीप जगमगाये। एक रात्रि को पूज्यश्री ने मुझे स्वप्न में दर्शन दिये और प्रेम से आँख दिखाते हुए उसी सहज मनोहारी शैली में मुझसे पूछाः “तेरा गुरुमंत्र क्या है?”

मैं कुछ कहने का साहस नहीं कर पायी। तब पूज्यश्री ने मुझे अपना वही गुरुमंत्र स्मरण कराते हुए कहाः “यही है न तेरा मंत्र ?”

इतना सुनते ही मुझे अपना वही गुरुमंत्र पुनः स्मरण आ गया और मेरी खुशी का कोई ठौर नहीं रहा। पूज्यश्री मुस्कराये और बोलेः “बेटा ! अब मत भूलना।”

मेरे हृदय में उस समय इतनी अत्यधिक खुशी हुई कि बरबस मेरी नींद खुल गयी और मेरी आँखें भर आयीं। सचमुच, पूज्यश्री कितने कृपालु हैं ! हम भक्तों पर कैसे-कैसे, किस रूप में कब और कहाँ-कहाँ अपनी कृपा करते हैं इसको आँक पाना अत्यन्त दुष्कर है। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा फिर से एक नया जन्म हुआ। अब मैं प्रतिदिन उसी उत्साह, तत्परता और नियमपूर्वक अपनी साधना करती हूँ।

पूज्यश्री के श्रीचरणों में मेरा कोटिशः नमन……

श्रीमती मनुबहन सोनी, दौलतगंज, रतलाम (म.प्र.)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 1997, पृष्ठ संख्या 29, अंक 52

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