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Bhakton Ke Anubhav

भवसिन्धु में डूब रहा था, किनारे पर खींच लाये गुरुदेव


पंचेड़ आश्रम में सेवारत श्री प्रफुल्ल भाई भट्ट, जिन्हें सन् 1980 से पूज्य बापू जी का दर्शन, सत्संग-सान्निध्य लाभ प्राप्त होता आ रहा है, उनके द्वारा बताये गये पूज्य श्री के मधुर संस्मरणः

मुझ भटकते राही को मंजिल मिल गयी

मैं भारत से बी. फार्मेसी की पढ़ाई पूरी करके सन् 1976 से न्यूयॉर्क-न्यूजर्सी (अमेरिका) में रहने लगा था । 1980 में कुछ दिनों की छुट्टियाँ निकालकर मेरा भारत आना हुआ । मुझे आध्यात्मिकता में बहुत रुचि थी । मैं एक ऐसे गुरु की तलाश में था जो मेरा आध्यात्मिक पथ पर मार्गदर्शन कर सके । मैं कई आध्यात्मिक संस्थाओं में, कई गुरुओं के पास गया किंतु मेरा कहीं हृदय ठहरा नहीं ।

एक बार मैं कॉलेज के समय से परिचित अपने एक मित्र से मिलने उसकी दुकान पर गया । उसकी दुकान में एक बाबा जी का फोटो लगा था । उसे देखने के लिए मेरा मन बार-बार आकर्षित होने लगा । मैंने मित्र से पूछाः ″कौन है ये बाबा जी ?″

उसने बतायाः ″ये आशाराम जी महाराज हैं । बहुत बड़े संत हैं ।″ उन फोटोवाले बाबा जी के बारे में उसने और भी कई बातें बतायीं जो मुझे बहुत अच्छी लगीं । तब मुझे पहली बार पता चला कि ये संत श्री आशाराम जी बापू हैं और मोटेरा, अहमदाबाद में रहते हैं ।

एक बार वह अहमदाबाद आश्रम जा रहा था तो मुझे भी साथ लेकर गया । हम आश्रम पहुँचे तो बापू जी तो आश्रम में नहीं थे लेकिन वहाँ की हर चीज मेरे हृदय को छू रही थी । वहाँ लोग बड़ बादशाह के फेरे लगा रहे थे तो मैंने भी परिक्रमा की और थोड़ी देर तक शांति से बड़ बादशाह के सामने ही बैठा रहा । वहाँ पर एक साधक भाई ‘श्री आशारामायण जी’ का पाठ करवा रहे थे । मैं भी उनके पीछे-पीछे पाठ को दोहराने लगा ।

मैं घर लौटकर आया तो मुझे अपने-आप में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिला । विदेश में रहते हुए मुझे जो कॉफी, सिगरेट आदि व्यसनों की लत लग गयी थी वह उसी दिन से अपने-आप छूट गयी । मुझे मन में हुआ कि ‘जिनके शक्तिपात किये बड़ बादशाह की परिक्रमा करने और जिनका जीवन-चरित्र – ‘श्री आशारामायण जी’ गुनगुनाने से ही अगर जीवन में इतना परिवर्तन हो सकता है तो वे स्वयं कितने महान होंगे !’

बापू जी के दर्शन के लिए मैं लालायित रहने लगा । जब पता चला कि बापू जी आश्रम आ गये हैं तो उनके दर्शन करने के लिए मैं दुबारा आश्रम जा पहुँचा । उनके पहले दर्शन ने ही मुझ पर जादू सा काम किया, ऐसा लग रहा था मानो मैंने सब कुछ पा लिया हो । आध्यात्मिक गुरु के लिए वर्षों से दर-दर भटक रहे मुझ राही को अपनी मंजिल मिल चुकी थी । संसार-सागर में डूबने जा रही मेरी जीवन-नैया को किनारा मिल चुका था ।

मैंने पूज्य श्री से दीक्षा हेतु प्रार्थना की तो पूज्य बापू जी ने कुछ क्षण आँखें बंद की और कहाः ″नहीं, अभी नहीं, रुकना पड़ेगा, शिविर भरना पड़ेगा ।″ मेरे मन में हुआ कि शायद अभी मैं दीक्षा ग्रहण करने योग्य नहीं हूँ ।’

अहमदाबाद आश्रम में उत्तरायण पर्व के निमित्त ध्यान योग शिविर होने वाला था तो उसमें भाग लेने हेतु मैंने तीन महीनों के लिए छुट्टियाँ और बढ़ा दीं । उसी दौरान मेरा हरिद्वार जाना हुआ तो वहाँ मुझे बापू जी के मित्रसंत घाटवाले बाबा, मस्तराम बाबा जैसे ब्रह्मज्ञानी संतों के दर्शन-सान्निध्य का लाभ मिला ।

एक बार घाटवाले बाबा जी ने मुझसे मेरा परिचय पूछा तो मैंने बताया कि अमेरिका से आया हूँ एवं मुझे संत श्री आशाराम जी बापू से दीक्षा लेने के लिए उत्तरायण शिविर तक रुकना है ।

यह सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुए और बोलेः ″यह रास्ता जो तुमने पकड़ा है वह बिल्कुल सही है ।″

उनके श्रीमुख से ये वचन सुनकर मेरा चित्त गद्गद हो गया और पूज्य बापू जी के प्रति मेरी श्रद्धा और भी बढ़ गयी । जनवरी 1981 में मुझे अहमदाबाद आश्रम में पूज्य बापू जी से मंत्रदीक्षा लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

कल्पनातीत अनुभव होने लगे

मैं मंत्रदीक्षा लेकर न्यूयॉर्क वापस लौटा तो वहाँ पर भी पूज्य बापू जी द्वारा बताये अनुसार नियमित साधना करने लगा । पूज्य बापू जी के सत्संग-श्रवण आदि से मेरा विवेक, वैराग्य जगने लगा और साधना में ऐसा रस आने लगा कि मेरा अधिकतर समय ध्यान-भजन में ही बीतने लगा ।

शरीर से तो मैं अहमदाबाद आश्रम से बहुत दूर रहता था लेकिन मानसिक रूप से मैं आश्रम के आध्यात्मिक वातावरण का पूरा लाभ लेता था । घड़ी देख के भारत के समय के अनुसार विचार करता कि ‘अभी इतना समय हुआ है तो गुरुदेव व्यासपीठ पर विराजमान होंगे… अभी इतने बजे हैं तो आश्रम में ध्यान कीर्तन हो रहा होगा… आदि-आदि ।’ छुट्टी के दिन नदी के किनारे एकांत में बैठकर मैं पूज्य बापू जी के सान्निध्य में बिताये पवित्र क्षणों को याद करते-करते उन्हीं के चिंतन में खो जाता था । गुरुकृपा से अच्छे-अच्छे अनुभव होने लगे । अपने आप ऐसे-ऐसे आसन होते थे कि जिनकी कभी मैंने कल्पना भी नहीं की थी, जो मैंने कहीं देखे या सीखे नहीं थे ।

आध्यात्मिकता के साथ-साथ भौतिक जगत में भी मेरी कल्पनातीत उन्नति होने लगी । दीक्षा से पहले तो मैं न्यूयॉर्क में एक केमिस्ट की दुकान पर नौकरी करता था । दीक्षा के 10-11 महीने बाद ही न्यूजर्सी में मेरा खुद का फार्मेसी का बिजनेस शुरु हो गया और थोड़े ही दिनों में वह खूब फलने-फूलने लगा ।

पग-पग पर दिया सहारा, पूरी की मन की मुराद

सन् 1984 की बात है । एक बार ऐसा सुनने में आया कि ‘पूज्य बापू जी कभी भी एकांतवास में जा सकते हैं ।’ कीमती मनुष्य जन्म मिलना, फिर उसमें भी पूज्य बापू जी जैसे ब्रह्मवेत्ता महापुरुष सद्गुरुरूप में मिलना बहुत ही दुर्लभ है । मुझे हुआ कि ‘कहीं ऐसा न हो जाय कि ऐसे महापुरुष के सत्संग-सान्निध्य से मैं वंचित रह जाऊँ !’ मुझे गुरुदेव के दर्शन की तीव्र तड़प होने लगी । तब स्थिति ऐसी थी कि बिजनेस जिसके भरोसे छोड़ सकूँ ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था लेकिन मैंने ठान लिया कि ‘चाहे कुछ भी हो जाय, मुझे तो कैसे भी करके गुरुदेव के पास जाना है ।’ मैंने सब कुछ गुरुदेव पर छोड़ दिया ।

अनायास ही मेरे पास एक परिचित मित्र आया और बोला कि ″मुझे फार्मेसी का थोड़ा एक्सपीरियंस लेना है ।″ मेरी जो आवश्यकता थी वह बोले बिना ही पूरी हो गयी, यह क्या है ! मैंने मन ही मन गुरुदेव को धन्यवाद दिया और मित्र को कहाः ″वेल्कम ! थोड़ा नहीं आप फुल एक्सपीरियंस लीजिये, अब यह सब आप ही सँभालिये ।″

अब भारत जाने के लिए एयरपोर्ट पहुँचना था परन्तु उस दिन न्यूयॉर्क में तूफान आया था और सतत् बर्फ पड़ रही थी । मैं सोच में पड़ा था कि ‘अब कैसे पहुँचूँगा ?’ लेकिन ईश्वरीय व्यवस्था का, गुरुकृपा का क्या वर्णन किया जाय ! मेरा मित्र बोला कि ″मैं कैसे भी करके आपको पहुँचा दूँगा ।″ हम एयरपोर्ट के लिये निकले तो धीरे-धीरे तूफान शांत होता गया और हम आराम से एयरपोर्ट तक पहुँच गये, तुरन्त टिकट की व्यवस्था हो गयी । मन में हुआ कि ‘परमात्मस्वरूप गुरुदेव ही तो अनेक रूपों में सर्वत्र व्याप्त हैं । गुरुदेव अपने शिष्यों की मुरादें पूर्ण करने के लिए कैसे-कैसे सहारा देते हैं !’

दूसरे दिन अहमदाबाद आश्रम में पहुँचा । आश्रम में चेटीचंड का शिविर चल रहा था । 1-2 दिन हो गये थे, मुझे होता था कि मैं इतनी दूर से आया हूँ और अभी तक मेरे ऊपर गुरुदेव की दृष्टि तक नहीं पड़ी । एक दिन थोड़ी देर के लिए निकट से बापू जी के दर्शन का अवसर मिला तो पूज्य श्री ने परिचय आदि पूछा लेकिन मेरे मन में होता था कि ‘मैं बापू जी से जी भर के बातचीत करूँ ।’

उन दिनों मोक्ष कुटीर पर नजदीक से बापू जी के दर्शन करने का अवसर मिल जाता था । शिविर में आखिरी दिन की बात है । रात के 8-9 बजे थे । मोक्ष कुटीर के बाहर 8-9 लोग दर्शन के लिए कतार में लगे हुए थे । मुझे भी दर्शन करने थे पर अधिक प्रवास और भारत व विदेश के समय, जलवायु में भिन्नता आदि के कारण इतनी थकान थी कि मैं कतार में नहीं लग पाया और नदी के खुले मैदान में सोने के लिए चला गया । परन्तु महापुरुष तो महापुरुष होते हैं और उसमें भी पूज्य बापू जी जैसे करुणा-वरुणालय अवतार का तो कहना ही क्या ! मैं बिस्तर लगा ही रहा था, इतने में पूर्व दिशा की ओर से मुझे प्रकाश-प्रकाश दिखने लगा । मेरी आँखें चुंधिया गयीं । प्रकाश में से पूज्य बापू जी साकार रूप में प्रकट हो गये और मुझसे पूछाः ″कौन हो तुम ?″

मुझे एकदम शॉक लगा । मैंने आश्चर्यचकित होकर प्रणाम करते हुए कहाः ″जी, मैं वही अमेरिका वाला साधक ।″

″अमेरिका में क्या करते हो ?″

मैंने बिजनेस आदि के बारे में बताया तो करुणामूर्ति गुरुदेव ने कहाः ″अच्छा है, दूसरे के यहाँ नौकरी करके गुलामी करने से तो अपना धंधा करना ठीक है । लेकिन राजे-महाराजे भी राजपाट छोड़कर भिक्षा माँग के संतों के चरणों में रहते थे…।″ इस प्रकार 15-20 मिनट तक गुरुदेव अपनी कृपा बरसाते रहे ।

फिर कहाः ″अच्छा, अब तुम आराम करो ।″ और गुरुदेव अंतर्ध्यान हो गये ।

मैं चारों तरफ देखने लगा कि ‘बापू जी कहाँ गये ! किस तरफ गये होंगे !!’ बहुत खोजा पर बापू जी कहीं दिखे नहीं । ब्रह्मस्वरूप पूज्य बापू जी की यह दिव्य शक्ति देखकर मैं दंग रह गया ! बापू जी आकाश की तरफ से प्रकट हुए थे । काली-काली दाढ़ी थी… तेजोमय चेहरा था… और श्वेत वस्त्र धारण किये हुए थे ।

मैं ब्रह्मस्वरूप गुरुदेव को एक शरीर तक ही सीमित मानने की गलती कर बैठा था । मैं मान रहा था कि गुरुदेव ने मेरे ऊपर दृष्टि तक नहीं डाली परंतु बाद में सत्संग से पता चला कि गुरुदेव तो अनंत-अनंत ब्रह्माण्डों में व्याप रहे साक्षात् ब्रह्म हैं । वे कण-कण में व्याप्त हैं । सदा उनकी दृष्टि हमारे ऊपर है । वे अपने से दूर हैं ही नहीं, अपने-आपे के रूप में सदैव अपने साथ ही हैं ।

दूसरे दिन पूज्य श्री व्यासपीठ पर विराजमान थे । मैंने अमेरिका में सत्संग देने हेतु श्रीचरणों में प्रार्थना रखी तो आपश्री ने कहाः ″तुम जाओ, मैं थोड़े ही दिनों में आता हूँ वहाँ । अभी एक सप्ताह मौन मंदिर का लाभ लो ।″

गुरुदेव की आज्ञानुसार मैंने मौन मंदिर की साधना की । गुरुकृपा से वहाँ भी मुझे बहुत अच्छे अनुभव हुए । एक महीने के बाद सन् 1984 में गुरुदेव का अमेरिका में आना हुआ । (क्रमशः)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 13-16 अंक 355

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धन्य हैं ऐसे सर्वसमर्थ सद्गुरुदेव तथा अद्भुत हैं उनकी लीलाएँ


पूज्य श्री का आत्मिक दिव्य प्रेम, सरल, मधुर वाणी और योग-सामर्थ्य ऐसे मोहक हैं कि वे जहाँ-जहाँ जाते हैं वहाँ परायों को अपना बना लेते हैं और अपनों को उत्साहित करके परमात्मा के पथ पर अग्रसर कर देते हैं । डालते हैं कुछ घटनाओं पर एक नज़रः

भयंकर बाढ़ थामी

सन् 1973 में साबरमती नदी में भयंकर बाढ़ आयी थी । नदी खतरे के स्तर को भी लाँघकर निरंकुश बह रही थी । नदी से 30 फीट ऊपर आश्रम के प्रांगण में बाढ़ का पानी पहुँचने की तैयारी में था । चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दे रहा था । आश्रम एक द्वीप जैसा बन गया था ।

भक्तों ने बापू जी को सारी स्थिति बतायी ।

पूज्य श्री आये और बोलेः ″इसमें क्या बड़ी बात है ! लाओ, दही लाओ । चलो, एक-दो चम्मच मेरे अँगूठे पर डालो ।″

बापू जी ने दही लगे अँगूठे से पानी को स्पर्श किया, अपना चरण डाला और मानो उस पावन स्पर्श के लिए ही नदी ऊपर उठी हो ऐसे वह धीरे-धीरे शांत हो गयी । बाढ़ का पानी नीचे उतर गया ।

रेडियो पर 30 फीट पानी बढ़ने की सम्भावना प्रसारित हो रही थी परंतु पानी 22.5 फीट से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा ।

9 मिनट भी नहीं बैठने वाला 9 घंटे ध्यान में बैठा !

बात उस समय की है जब पूज्य बापू जी आबू की गुफा में रहते थे । एक दिन मनोहर नामक एक तारबाबू, जो माउंट आबू पोस्ट ऑफिस में काम करते थे, पूज्य श्री के पास आये और बोलेः ″स्वामी जी ! आज सोचा कि आपके दर्शन करके ही नौकरी पर जाऊँ । मुझे 10 बजे जाना है ।″

पूज्य श्रीः ″अच्छा, अभी तो न ही बजे हैं । थोड़ी देर ध्यान में बैठ जा, फिर जाना ।″

वे पास वाली गुफा में जाकर ध्यान में बैठ गये। जब ध्यान से जागे तो शाम के 6 बज चुके थे ।

उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा ‘अरे ! 6 बज गये । अभी-अभी तो स्वामी जी की आज्ञा से मैं ध्यान में बैठा था और शाम हो गयी ! आज नौकरी पर नहीं जा पाया । खैर, बाहर की नौकरी पर नहीं जा पाया लेकिन मेरी भीतरी चिंताएँ, शंकाएँ और मुसीबतें दूर हो गयीं । 9 मिनट भी नहीं बैठने वाला मैं आज 9 घंटे ध्यान में बैठा ! बापू जी ! आपको हजार-हजार वंदन !’

एक ही समय दो जगह लिये दो रूप

लगभग चार दशक पहले की बात है । मोटेरा (अहमदाबाद) आश्रम में शाम के समय पूज्य बापू जी का सत्संग चल रहा था । सबसे आगे बैठे सरदार नगर, अहमदाबाद के मंघनमल जी को अपनी मृतक साली का तीसरा मनाने जाना था किंतु उन्होंने सत्संग के बीच में उठने का पाप नहीं किया । उनके अंतर्मन में चल रहा था, ‘बापू जी ! क्या करूँ ?’ मन में बड़ी उधेड़ बुन चलने के बाद भी वे भगवान और गुरुदेव को प्रार्थना करके शाम के 7 बजे तक सत्संग सुनते ही रहे ।

उधर उनकी मृतक साली के घर पूज्य बापू जी मंघनमल का शरीर धारण कर तीसरा मनाने पहुँच गये और लोगों को सांत्वना दी । मंघनमल जब सत्संग के बाद साली के घर जाकर माफी माँगने लगे, तब उन्हें हकीकत का पता लगा और उनकी आँखों से प्रेम के आँसू बह चले ।

पूज्य बापू जी के सत्संग में आता हैः ″हमारी प्रीति ईश्वर में हो जाय, बाकी का सब ठीक हो जाता है । यह कैसी ईश्वर की सत्ता है कि जब आप ईश्वर में रहते हैं तो आपके लिए ईश्वर नाई बनते हैं (जैसे सेन नाई के लिए नाई बने थे), दाल और चावल देने वाले बालकुमार बन सकते हैं (जैसे श्रीधर स्वामी के घर बालकुमार बन के गये थे), पेय का कमंडल और केला लाने वाले ग्रामीण बन सकते हैं (जैसे पूज्य बापू जी के जीवन में देखा गया), नरसिंह मेहता का रूप धारण करके काम कर लेते हैं तो मंघनमल बने तो क्या आश्चर्य है !

ईश्वर में आप खो जाते हैं तो फिर दयालु ईश्वर सम्भाल लेते हैं ।

संतन के कारज सगल सवारे ।। (गुरुवाणी)

ये तो एक दो दृष्टान्त सामने आये लेकिन आप ईश्वर में लग जाओ तो आप सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसा कैसे हो गया ! हम प्रयत्न करते तो भी इतना बढ़िया काम नहीं हो सकता था ।″

मिला अक्षयपात्र

कतारगाम, सूरत (गुजरात) के भक्तों को बापू जी ने गरीबों में भंडारा करने हेतु थोड़ा सा सामान दिया और कहा कि इसे दस दिन तक बाँटना । सामान सिर्फ दो दिन तक बँट सके उतना ही था लेकिन चमत्कार ! सामान खुले हाथों 10 दिन तक बँटता रहा पर खत्म होने का नाम नहीं ! इस आश्चर्य को देख सामान की गणना की तो जितना सामान बापू जी ने दिया था, उससे भी अधिक बचा था जो करीब 100 लोगों में और बँट सकता था । किंतु आश्चर्य ! उसे भक्त 5 गाँवों में बाँटते रहे परंतु खत्म नहीं हो रहा था ! बापू जी से प्रार्थना करने पर वह खत्म हुआ । बापू जी के इस अक्षयपात्र की लीला को सभी ने प्रणाम किया ।

पूज्य श्री के योग सामर्थ्य की ऐसी घटनाएँ अनेक भक्तों ने अपने जीवन में प्रत्यक्ष देखी हैं । धन्य हैं से सर्वसमर्थ सद्गुरुदेव तथा अद्भुत हैं उनकी लीलाएँ, जो समय-समय पर अभिव्यक्त होकर मानवमात्र को सत्यपथ पर चलने की पावन प्रेरणा देती रहती हैं । जिनको ऐसे समर्थ संत-सद्गुरु प्राप्त होते हैं, ऐसे संत-महापुरुषों का पावन सान्निध्य मिलता है वे साधक धन्य-धन्य हैं !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 9,10 अंक 355

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दृष्टि पड़ने मात्र से मिली जीवन को सही दिशा


पहले मैं दारू पीना, मांसाहार करना आदि दुर्व्यसनों में बुरी तरह लिप्त था । किसको कैसे मारना, कैसे झगड़ा करना, ऐसे ही विचार दिमाग में घूमते थे । ऑफिस में, घर पर सभी लोग मुझसे बहुत परेशान रहते थे । एक घटना में मुझ पर हाफ मर्डर का केस भी बन गया था ।

बापू जी का नागपुर में सत्संग था । लोग दर्शन के लिए रास्ते पर खड़े थे । कुतूहलवश मैं भी वहाँ पहुँच गया । मन में चल रहा था कि ‘ऐसे संत तो बहुत देखे हैं…’ इतने में पूज्य बापू जी की गाड़ी आ गयी और उनकी दृष्टि मेरे ऊपर पड़ी । दृष्टि में न जाने कैसा तेज था कि मैं देखता ही रह गया । मेरे मन के खूँखार विचार अवरुद्ध हो गये और मुझे बापू ही बापू दिखने लगे । बापू जी से अगले ही महीने मैंने दीक्षा ले ली । मेरे दुर्गुण अपने-आप छूटते गये और पूरा जीवन ही बदल गया । 22 साल से मेरे ऊपर चल रहा केस भी खत्म हो गया । पहले मेरे पास रहने के लिए स्वयं का घर तक नहीं था । गुरुकृपा से मेरा घर बन गया और मैंने 17 एकड़ जमीन भी खरीद ली । मुझे ध्यान, जप व सेवा में इतना रस आने लगा कि 1 लाख के ऊपर सैलरी वाली नौकरी को भी मैंने रिटायरमेंट के 6 साल पहले ही छोड़ दिया । आज गुरुकृपा से मेरे हृदय में जो शांति और आनंद है, उसके आगे उतनी सैलरी भी कोई मायने नहीं रखती ।

पूज्य बापू जी की कृपा से जनवरी 2021 में मेरे बेटे का विवाह ऐसे विलक्षण ढंग से हुआ कि निगुरे लोग भी बोल उठे कि ‘ऐसी शादी हमने आज तक नहीं देखी !’ हमने शादी के एक दिन पहले गाँव में मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम’ करवाया । शादी के दिन गाड़ी पर पूज्य बापू जी का बड़ा बैनर लगा के भजन-कीर्तन चलाते हुए पूरे गाँव में कीर्तन यात्रा निकाली । कैलेंडर व ऋषि प्रसाद बाँटी । 439 मेहमानों को ऋषि प्रसाद का सदस्य बनाया । विवाह स्थल पर दो-ढाई हजार लोगों की उपस्थिति में पूज्य बापू जी की आरती बड़े ही धूमधाम से करवायी । इस तरह से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया था । मेरा जीवन तो नाली के कीड़े की तरह नीचा था लेकिन पूज्य बापू जी की कृपा से रसमय और साधनामय हो गया ।

  • महादेव एकड़े, दूरभाषः 7620155056

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 25 अंक 355

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