मेरे पुण्यों का उदय तब हुआ जब मुझे ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापू जी का दर्शन-सत्संग और उनसे नामदान पाने का अवसर प्राप्त हुआ । सन् 1974 के उत्तरायण शिविर में जब पहली बार मैं बापू जी के दर्शन करने आया तो सर्वांतर्यामी पूज्य बापू जी ने कहाः ″नामदान (मंत्रदीक्षा) लेना है तो मांस, दारू सब खाना-पीना छोड़ना पड़ेगा ।″
मैंने कहाः ″बापू ! खाता तो सब कुछ हूँ पर आज से मांस-दारू नहीं खाऊँगा-पिऊँगा ।″
फिर बापू जी ने उसी दिन मंत्र दीक्षा दे दी ।
एक बार 7 दिन के लिए मैं आश्रम के मौन मंदिर में साधना के लिए रहा था । 7 दिन तक एक ही पवित्र और विशाल कमरे में बंद रह के साधना करने का मेरे जीवन में यह प्रथम अवसर था ।
मंगलवार को सुबह 4.30 बजे मैं ध्यान में बैठा तब ध्यान में एक विचित्र दृश्य देखा कि एक स्त्री अर्धनग्न अवस्था में मेरे सामने आ के खड़ी हो गयी है । मैं चौंक गया । मुझे तुरंत ख्याल आया कि यह मेरी साधना में विघ्न डालने आयी है । मैंने गुरुदेव का स्मरण किया । थोड़ी ही देर में देखा तो सद्गुरुदेव भी कमरे में एक कोने में आकर खड़े हैं । मेरा भय दूर हो गया । सद्गुरुदेव को देख के वह स्त्री तुरंत ही अदृश्य हो गयी ।
उसी दिन शाम को मन हुआ कि ‘अहमदाबाद में कितने दिनों से बारिश नहीं हो रही है । हमारे सद्गुरुदेव तो समर्थ हैं, वे चाहें तो क्या बारिश नहीं कर सकते ?’
और एकाध घंटे के बाद ही जोर से हवा चलने लगी । आकाश में बादल आ गये और बारिश होने लगी । वाह मेरे सद्गुरुदेव !
इसी शाम को 7-8 बजे मैं ध्यान में बैठा था । तब ध्यान में एक अप्सरा दिखी । उसके वस्त्र बिल्कुल पारदर्शी व सुंदर थे । उनमें से उसके अंग सूर्य की किरणों की तरह चमक रहे थे । ऐसी अलौकिक लावण्ययुक्त स्त्री किसी ने इस पृथ्वी पर नहीं देखी होगी । बहुत देर तक वह मुझको मोहित करने का प्रयत्न करती रही । मैंने वह दृश्य दूर करने का प्रयास किया लेकिन विफल रहा । अंत में खूब करुण भाव से सद्गुरुदेव को प्रार्थना करने लगा । थोड़ी देर के बाद ध्यान टूटा तब पता चला कि बाहर से कोई दरवाजा खटखटा रहा है । मैं दरवाजा खोल के देखा तो पूज्य गुरुदेव स्वयं खड़े थे । मेरी ओर बहुत ही प्रेमयुक्त मधुर दृष्टि डाली । साधना में उत्साहप्रेरक शब्दों के साथ जरूरी मार्गदर्शन देकर गुरुदेव चले गये । ध्यान में उस विचित्र दृश्य के बाद तुरंत ही पूज्य श्री का दर्शन पाकर अंतर पुलकित हो गया, धन्यता का अनुभव हुआ ।
पहले सुना था कि माया की शक्तियाँ आ-आ के ध्यान में बैठने वाले तपस्वियों की परीक्षा लेती हैं । अब मेरे लिए यह प्रत्यक्ष अनुभव बन गया ।
उसके बाद 3 दिनों तक निर्विघ्न रूप से अच्छा ध्यान होता रहा । कोई उपद्रव नहीं आया । परंतु शनिवार की रात को 9-10 बजे मैं ध्यान में बैठा था, तब सामने वाली कुर्सी पर एक नवयौवना आकर बैठ गयी और अपनी नखरेवाली चेष्टाओं से मुझे आकर्षित करने लगी । वह रूप लावण्य में बेजोड़ थी । उसने जो महीन व अल्प वस्त्र पहने थे उनमें से उसके अंग दिखते थे । वह अपने विविध आकर्षक अंगों से कामुक चेष्टाएँ करने लगी किंतु मैं गुरुदेव का स्मरण करते-करते अचल रहा ।
थोड़ी ही देर में वह दृश्य बदला और उसकी जगह एक भयंकर रुग्ण शरीरवाली स्त्री उपस्थित हुई । उसने संकल्प से अपने शरीर से चमड़ी हटा ली । उसके अंदर तो मांस मज्जा, हड्डियाँ, खून, मल-मूत्र भरे हुए शरीर के दर्शन हुए । उसके सभी अंग वीभत्स रोग से ग्रस्त थे । चेहरा अत्यंत कुरूप बन गया था । मुँह से खून, लार आदि टपक रहे थे । रोग की पीड़ा से वह कराह रही थी । उसके दर्शनमात्र से घृणा हो रही थी । उसके शरीर की बनावट देख के अनुमान होता था कि पहले बहुत सुंदर अंगना होनी चाहिए पर उसकी यह हालत देख के किसी को भी दया आ जाय । कैसा करुण दृश्य !
मेरी ओर एकटक देखते हुए भारी आवाज में बोलीः ″पहले के सुंदर दृश्यों से अगर तू प्रभावित हुआ होता तो तेरी कैसी हालत होती पता है ? मेरे को देख ले । तेरी भी ऐसी ही हालत होती । संसार में ऐसे भोगों में रह के लोग कीड़े-मकोड़ों की तरह जीवन बिता के जिंदगी बरबाद कर रहे हैं । उनकी हालत भी मेरे जैसी ही होगी । तू तो समर्थ गुरु की शरण में है इसलिए बच गया । अब अच्छे से साधना करना और परम लक्ष्य परमात्मप्राप्ति करके ही रहना ।″
ओह ! वह दृश्य कैसा विलक्षण था ! मेरे सद्गुरुदेव के प्रति मुझे खूब अहोभाव जगा । उनके श्रीचरणों में रह के साधना करने का अवसर मिला है यह कैसा परम सौभाग्य है ! समर्थ सद्गुरु के मार्गदर्शन बिना ही साधना करने वाले साधकों की दशा कैसी होती होगी ! मेरे समर्थ सद्गुरुदेव हर पल मेरा ध्यान रखते हैं । पूज्य सद्गुरुदेव का स्मरण आते ही सिर अहोभाव से झुक जाता है ।
रविवार को मेरा समय पूरा होने से मैं मौन मंदिर से बाहर निकला और दूसरे साधक को उस आगम-निगम के ताले खोलने की प्रयोगशाला में प्रवेश दिया गया । इस स्वप्नमय सृष्टि में बाह्य रूप-रंग-आकार में बह के लोग इतना अमूल्य जीवन बरबाद कर देते हैं और बाद में पछताते हैं लेकिन तब समय बीत गया होता है । धन्य हैं ऐसे साधकों को कि जो समय रहते ही ऐसे समर्थ सद्गुरु का सहारा पाकर जीवन का परम लक्ष्य ब्रह्मानुभव पा लेते हैं ।
- परसराम दरियानानी, सेवानिवृत्त उप तहसीलदार, सरदार नगर, अहमदाबाद । सचल दूरभाषः 9662416171
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 7-8 अंक 355
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