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Sharir Swasthya

विविध रोगनाशक एवं स्वास्थ्यरक्षक नीम


प्राकृतिक वनस्पतियाँ लोक-मांगल्य एवं व्याधिनिवारक गुणों से युक्त होने के कारण भारतीय संस्कृति में पूजनीय मानी जाती हैं । इनमें नीम भी एक है । इसकी जड़, फूल-पत्ते, फल, छाल – सभी अंग औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं ।

आयुर्वेद के अनुसार नीम शीतल, पचने में हलका, कफ, पित्तशामक व थकान, प्यास, खाँसी, बुखार, अरूचि, कृमि, घाव, उलटी, जी मिचलाना, प्रमेह (मूत्र-संबंधी रोगों) आदि को दूर करने वाला है ।

नीम के पत्ते नेत्रहितकर तथा विषनाशक होते हैं । इसके फल बवासीर में लाभदायी हैं । नीम के सभी अंगों की अपेक्षा इसका तेल अधिक प्रभावशाली होता है । यह जीवाणुरोधी कार्य करता है ।

औषधीय प्रयोग

नीम के पत्तेः 1. स्वप्नदोषः 10 मि.ली. नीम-पत्तों के रस या नीम अर्क में 2 ग्राम रसायन चूर्ण मिला के पियें ।

  1. रक्तशुद्धि व गर्मीशमन हेतुः सुबह खाली पेट 15-20 नीम-पत्तों का सेवन करें ।

फूल व फलः पेट को रोगों से सुरक्षाः नीम के फूल तथा पकी हुई निबौलियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते ।

नीम तेलः 1. चर्मरोग व पुराने घाव में- नीम का तेल लगायें व  इसकी 5-10 बूँदें गुनगुने पानी से दिन में दो बार लें ।

  1. गठिया व सिरदर्द में- प्रभावित अंगों पर नीम-तेल की मालिश करें ।
  2. जलने परः आग से जलने से हुए घाव पर नीम-तेल लगाने से शीघ्र भर जाता है ।

(नीम अर्क, नीम तेल, मुलतानी नीम तुलसी साबुन एवं रसायन चूर्ण सत्साहित्य सेवाकेन्द्रों व संत श्री आशाराम जी आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं ।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2019, पृष्ठ संख्या 31 अंक 315

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प्राकृतिक शुद्धिकारक व स्वास्थ्यवर्धक मूली


आयुर्वेद के अनुसार ताजी, कोमल, छोटी मूली रुचिकारक, भूखवर्धक, त्रिदोषशामक, पचने में हलकी, तीखी, हृदय के लिए हितकर तथा गले के रोगों में लाभदायी है । यह उत्तम पाचक, मल-मूत्र की रुकावट को दूर करने वाली व कंठशुद्धिकर है । बड़ी, पुरानी मूली पचने में भारी, उष्ण, रूक्ष और त्रिदोषकारक होती है । मूली के पत्ते व बीज भी औषधीय गुणों से युक्त होते हैं ।

आधुनिक अनुसंधानानुसार मूली में कैल्शियम, पौटैशियम, फॉस्फोरस, मैग्नेशियम, मैंगनीज़, लौह आदि खनिज पर्याप्त मात्रा में होने के साथ रेशे (fibres) विटामिन ‘सी’ तथा अन्य पोषक तत्त्व पाये जाते हैं ।

मूली मधुमेह के रोगियों के लिए लाभदायी है । यह गुर्दों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी रहती है और शरीर से विषैले तत्त्वों को निकालने में भी कारगर है । इसे कच्ची हल्दी के साथ खाने से बवासीर में लाभ होता है । इसका ताजा रस पीने से पथरी एवं मूत्र-संबंधी रोगों में राहत मिलती है । अफरा में मूली के पत्तों का रस विशेषरूप से उपयोगी होता है । इसके नियमित सेवन से पुराना कब्ज दूर होता है ।

पेट के लिए उत्तम

मूली पेट व यकृत के रोगों में बहुत लाभकारी है अतः इसे पेट व यकृत हेतु सबसे अच्छा ‘प्राकृतिक शुद्धिकारक’ माना गया है । अधिक मात्रा में रेशे होने से यह मल को मुलायम करने और पाचनक्रिया को बढ़िया रखने में मदद करती है ।

मूली व उसके पत्ते, खीरा या ककड़ी व टमाटर काट लें । इसमें नमक, काली मिर्च का चूर्ण व नींबू मिला के खायें । इससे पाचन-संबंधी अनेक समस्याओं तथा कब्ज में लाभ होता है ।

औषधीय प्रयोग

  1. पेशाब व शौच की समस्याः मूली के पत्तों का 20-40 मि.ली. रस सुबह-शाम सेवन करने से शौच साफ आता है और पेशाब खुलकर आता है, इससे वज़न घटाने में भी मदद मिलती है ।
  2. पेट के रोगः मूली के 50 मि.ली. रस में अदरक का आधा चम्मच व नींबू का 2 चम्मच रस मिलाकर नियमित पीने से भूख बढ़ती है । पेट में भारीपन महसूस हो रहा हो तो मूली के 15-20 मि.ली. रस में नमक मिला के पीने से लाभ होता है ।
  3. पथरीः बार-बार पथरी होने के समस्या में मूली के पत्तों के 50 मि.ली. रस में 1 चम्मच धनिया-चूर्ण मिला के लगातार 3 महीने लेने से पथरी होने की सम्भावना नहीं रहती है । साथ में पथ्य-पालन आवश्यक है ।
  4. सूजनः मूली के 1-2 ग्राम बीज का 5 ग्राम तिल के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से सभी प्रकार की सूजन में लाभ होता है ।

सावधानीः छोटी, पतली व कोमल मूली का ही सेवन करना चाहिए । मोटी, पकी हुई मूली नहीं खानी चाहिए । इसे रात में व दूध के साथ नहीं खाना चाहिए । माघ मास में (21 जनवरी से 19 फरवरी 2019 तक) मूली खाना वर्जित है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2019, पृष्ठ संख्या 31 अंक 314

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कब्ज से राहत देने वाली अनमोल कुंजियाँ – पूज्य बापू जी


प्रातः पेट साफ नहीं होता हो तो गुनगुना पानी पी के खड़े हो जायें और ठुड्डी को गले के बीचवाले खड्डे में दबायें व हाथ ऊपर करके शरीर को ऊपर खींचें । पंजों के बल कूदें । फिर सीधे लेट जायें, श्वास बाहर छोड़ दें व रोके रखें और गुदाद्वार को 30-32 बार अंदर खींचें, ढीला छोड़ें, फिर श्वास लें । इसको स्थलबस्ती बोलते हैं । ऐसा तीन बार करोगे तो लगभग सौ बार गुदा का संकुचन-प्रसरण हो जायेगा । इससे अपने-आप पेट साफ होगा । और कब्ज के कारण होने वाली असंख्य बीमारियों में से कोई भी बीमारी छुपी होगी तो वह बाहर हो जायेगी ।

सैंकड़ों पाचन-संबंधी रोगों को मिटाना हो तो सुबह 5 से 7 बजे के बीच सूर्योदय से पहले-पहले पेट साफ हो जाय… नहीं तो सूर्य की पहली किरणें शरीर पर लगें, सूर्यस्नान करने से भी पेट साफ होने में मदद मिलती है ।

कई लोग जैसे कुर्सी पर बैठा जाता है, ऐसे ही कमोड (पाश्चात्य पद्धति का शौचालय) पर बैठकर पेट साफ करते हैं । उनका पेट साफ नहीं होता, इससे नुकसान होता है । शौचालय सादा अर्थात् जमीन पर पायदान वाला होना चाहिए । शौच के समय आँतों पर दबाव पड़ना चाहिए, तभी पेट अच्छी तरह से साफ होगा । पहले शरीर का वज़न बायें पैर पर पड़े फिर दायें पैर पर पड़े । इस प्रकार दोनों पैरों पर दबाव पड़ने से उसका छोटी व बड़ी – दोनों आँतों पर प्रभाव होता है, जिससे पेट साफ होने में मदद मिलती है । तो पैरों पर वज़न हो इसी ढंग से शौचालय में बैठें ।

दायाँ स्वर चलते समय मल-त्याग करने से एवं बायाँ स्वर चलते समय मूत्र-त्याग करने से स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है ।

सर्दियों में पुष्टि के विशेष प्रयोग

सर्दियों में सुबह 4 से 5 खजूर को घी में सेंककर खा लें । ऊपर से इलायची, मिश्री व 2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण डालकर उबाला हुआ दूध पियें । इससे रक्त, मांस व शुक्र धातु की वृद्धि होती है ।

2 से 3 बादाम रात को पानी में भिगो दें । सुबह छिलके निकाल के बारीक पीस लें व दूध में मिला के उबालें । इसमें मिश्री और 5-10 ग्राम घी मिला के लेने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है एवं मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है ।

कृश एवं दुर्बल व्यक्ति बीज निकले 5 खजूर घी में सेंककर सुबह चावल के साथ खाये । इससे वज़न एवं बल में वृद्धि होती है ।

कैसे रखें सर्दी को दूर ?

कुछ लोगों को सर्दी सहन नहीं होती, थरथराते हैं, दाँत से दाँत बजते हैं, हाथ काँपते हैं । वे कड़ाही में थोड़ा सा घी डाल दें और फिर उसमें गुड़ गला दें । जितना गुड़ डालें उतनी सोंठ डाल दें । समझो 25 ग्राम सोंठ डाल दी । उसे घी में गला के सेंक दें । 1-1 चम्मच सुबह-शाम चाटने से सर्दी झेलने की ताकत आ जायेगी ।

राई पीस के शहद के साथ पैरों के तलवे में लगा दें तो सर्दी में ठिठुरना बंद हो जायेगा ।

उत्तम स्वास्थ्य हेतु जानिये शीत ऋतु के अपने आहार-विहार में….

क्या करें क्या न करें
हरड़ चूर्ण घी में भूनकर  नियमित रूप से लेने तथा भोजन  में घी का उपयोग करने से शरीर बलवान होकर दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है । अति श्रम करने वाले, दुर्बल, उष्ण प्रकृतिवाले एवं गर्भिणी को तथा रक्त व पित्त दोष में हरड़ का सेवन नहीं करना चाहिए ।
सर्दियों में प्रतिदिन सुबह खाली पेट 15 से 25 ग्राम काले तिल चबाकर खाने व ऊपर से पानी पीने से शरीर पुष्ट होता है व दाँत मृत्युपर्यंत दृढ़ रहते हैं । तिल और दूध का सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए और रात्रि को तिल व तिल के तेल से बनी वस्तुएँ खाना वर्जित है ।
सूर्य किरणें सर्वरोगनाशक व स्वास्थ्यप्रदायक हैं । रोज़ सुबह सिर को ढककर 8 मिनट सूर्य की ओर मुख व 10 मिनट पीठ करकें बैठें । सूर्यकिरणों में अधिक समय तक सिर को ढके बिना रहना व तेज धूप में बैठना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
शीतकाल में व्यायाम व योगासन विशेष जरूरी हैं । इन दिनों जठराग्नि बहुत प्रबल रहने से समय पर पाचन-क्षमता अनुरूप उचित मात्रा में आहार लें अन्यथा शरीर को हानि होगी । दिन में सोना, देर रात तक जागना, अति ठंड सहन करना, अति उपवास आदि शीत ऋतु में वर्जित है । बहुत ठंडे जल से स्नान नहीं करना चाहिए ।

 

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2109, पृष्ठ संख्या 32, 33 अंक 313

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