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Sharir Swasthya

वर्षभर के लिए स्वास्थ्य-संवर्धन का काल


शीत ऋतु के अंतर्गत हेमंत व शिशिर ऋतुएँ (23 अक्तूबर 2018 से 17 फरवरी 2018) तक) आती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इसे सबसे बेहतर समय माना गया है। इस ऋतु में चन्द्रमा की शक्ति सूर्य की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती है, इसलिए इस ऋतु में पृथ्वी के रस में भरपूर वृद्धि होने से औषधियाँ, वृक्ष और जीव भी पुष्ट होते हैं। इन दिनों में शरीर में कफ का संचय होता है तथा पित्तदोष का शमन होता है। जठराग्नि तीव्र होने के कारण पाचनशक्ति प्रबल रहती है। अतः इस समय लिया गया पौष्टिक और बलवर्धक आहार वर्षभर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है।

शीत ऋतु में सेवनीय

इस ऋतु में मधुर, खट्टा तथा खारा रसप्रधान आहार लेना चाहिए। पौष्टिकता से भरपूर, गर्म व स्निग्ध प्रकृति के पदार्थों का यथायोग्य सेवन करना चाहिए। मौसमी फल जैसे संतरा, आँवला आदि व शाक – परवल, बैंगन, गोभी, गाजर, बथुआ, मेथी, हरे साग आदि का सेवन करना चाहिए। दूध, घी, मक्खन, शहद, उड़द, तिल, सूखे मेवे जैसे – खजूर, किशमिश, खोपरा, काजू, बादाम, अखरोट आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन हितकारी है। ताजी छाछ, नींबू आदि का सेवन कर सकते हैं। रात को भोजन के 2.30-3 घंटे बाद दूध पीना लाभदायी है। पीने हेतु गुनगुने जल का प्रयोग करें।

इनसे बचें

इस ऋतु में बर्फ अथवा फ्रिज का पानी, रूखे-सूखे, कसैले, तीखे तथा कड़वे रसप्रधान द्रव्यों, वातकारक और बासी पदार्थों का सेवन न करें। इन दिनों में खटाई का अति प्रयोग न करें ताकि कफ का प्रकोप और खाँसी, दमा, नजला, जुकाम जैसी व्याधियाँ न हों। इन दिनों भूख को मारना या समय पर भोजन न करना स्वास्थ्य के लिए हितकारी नहीं है अतः उपवास भी अधिक नहीं करने चाहिए।

विशेष सेवनीय

स्वास्थ्य रक्षा हेतु व शारीरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए अश्वगंधा पाक, सौभाग्य शुंठी पाक, ब्राह्म रसायन, च्यवनप्राश जैसे बल-वीर्यवर्धक एवं पुष्टिदायी पदार्थों का सेवन अत्यंत लाभदायी है। अश्वगंधा चूर्ण, सप्तधातुवर्धक बूटी आदि आयुर्वेदिक औषधियों का भी यथायोग्य सेवन किया जा सकता है। इस ऋतु में हरड़ व सोंठ का चूर्ण समभाग मिलाकर (इसमें समभाग पुराना गुड़ मिला के 2-2 ग्राम की गोलियाँ बना के रख सकते हैं।) 2 से 3 ग्राम सुबह खाली पेट लें। यह उत्तम रसायन है।

इन बातों का भी रखें ख्याल

इस ऋतु में प्रतिदिन प्रातःकाल दौड़ लगाना, शुद्ध वायु सेवन हेतु भ्रमण, सूर्यकिरणों का सेवन, योगासन आदि करने चाहिए। तिल अथवा सरसों के तेल से शरीर की मालिश करें। इससे शरीर में कफ और वात का शमन होता है। तेल-मालिश के बाद शरीर पर उबटन (जैसे सप्तधान्य उबटन) लगाकर स्नान करना हितकारी होता है। ऊनी वस्त्र पहनना इस मौसम में लाभकारी है। ठंडी हवा से बचें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2018, पृष्ठ संख्या 30 अंक 310

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जानिये तृण धान्य के स्वास्थ्यहितकारी गुण !


आयुर्वेद में 5 प्रकार के धान्यों (अनाजों) का वर्णन मिलता है। उनमें से पाँचवाँ धान्य है तृण धान्य। तृण धान्य में कंगुनी, चीना (बारे), सावाँ, कोदो, गरहेडुआ, तीनी, मँडुआ (रागी), ज्वार आदि का समावेश है।

आयुर्वेद के अनुसार तृण धान्य कसैला व मधुर रसयुक्त, रुक्ष, पचने में हलका, वज़न कम करने वाला, मल के पतलेपन या चिकनाहट (जो स्वास्थ्यकर नहीं है) को कम करने वाला, कफ-पित्तशामक, वायुकारक एवं रक्त विकारों में लाभदायी है। कंगुनी रस-रक्तादि वर्धक है। यह टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने तथा प्रसव पीड़ा को कम करने में लाभदायी है। मधुमेह में कोदो का सेवन हितकारी है।

पोषक तत्त्वों से भरपूर

पोषण की दृष्टि से मँडुआ, ज्वार आदि तृण धान्य गेहूँ, चावल आदि प्रमुख धान्यों के समकक्ष होते हैं। इनमें शरीर के लिए आवश्यक कई महत्त्वपूर्ण विटामिन्स तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस, सल्फर, लौह तत्त्व, रेशे (Fibres), प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट भी पाये जाते हैं। तृण धान्य में पाये जाने वाले आवश्यक एमिनो एसिड मकई में पाये जाने वाले एमिनो एसिड से अच्छे होते हैं। मँडुआ में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है। तृण धान्यों में रेशे की मात्रा अधिक होने से कब्जियात को दूर रखने तथा खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को संतुलित करने में सहायक हैं। इनमें एंटी ऑक्सीडेंट्स भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं, जो कैंसर को रोकते हैं और शरीर के यकृत (Liver), गुर्दे( kidneys) अवयवों में संचित विष को दूर करते हैं। तृण धान्य पाचन-प्रणाली को दूरुस्त रखते हैं और पाचन-संबंधि गड़बड़ियों को दूर करते हैं।

विविध रोगों में लाभकारी

तृण धान्य मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अम्लपित्त, चर्मरोग, हृदय एवं रक्तवाहिनियों से संबंधित रोग, चर्बी की गाँठ, पुराने घाव, गाँठ तथा वज़न कम करने आदि में लाभदायी हैं।

तृण धान्यों की रोटी बना के या इन्हें चावल की तरह भी उपयोग कर सकते हैं। कंगुनी, कुटकी, कोदो, गरहेडुआ आदि के आटे की रोटी बना सकते। इनके आटे में 20 प्रतिशत जौ, गेहूँ या मकई का आटा मिलाना चाहिए। चरबी घटाने में गरहेडुआ की रोटी खाना लाभकारी है। चावल की तरह बनाने के लिए कुटकी, कंगुनी, चीना इत्यादि को पकाने के आधा घंटा पहले पानी में भिगोयें।

ध्यान दें- वसंत ऋतु व शरद ऋतु में तृण धान्यों का सेवन स्वास्थ्य हेतु अनुकूल है, अन्य ऋतुओं में नहीं।

सूचनाः सामान्य जानकारी हेतु यह वर्णन दिया गया है। व्यक्ति, ऋतु व रोग विशेष के अनुसार विशेष जानकारी हेतु वैद्यकीय सलाह अवश्य लें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 30 अंक 309

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शरद ऋतु में कैसे करें स्वास्थ्य की रक्षा ?


(शरद ऋतुः 23 अगस्त 2018 से 22 अक्तूबर 2018 तक)

शरद ऋतु में ध्यान देने योग्य बातें-

1.रोगाणां शारदी माता। रोगों की माता है यह शरद ऋतु। वर्षा ऋतु में संचित पित्त इस ऋतु में प्रकुपित होता है। इसलिए शरद पूर्णिमा की चाँदनी में उस पित्त का शमन किया जाता है।

इस मौसम में खीर खानी चाहिए। खीर को भोजन में रसराज कहा गया है। सीता माता जब अशोक वाटिका में नजरकैद थीं तो रावण का भेजा हुआ भोजन तो क्या खायेंगी, तब इन्द्र देवता खीर भेजते थे और सीता जी वह खाती थीं।

2.इस ऋतु में दूध, घी, चावल, लौकी, पेठा, अंगूर, किशमिश, काली द्राक्ष तथा मौसम के अनुसार फल आदि स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं। गुलकंद खाने से भी पित्तशामक शक्ति पैदा होती है। रात को (सोने से कम से कम घंटाभर पहले) मीठा दूध घूँट-घूँट मुँह में बार-बार मुँह में घुमाते हुए पियें। दिन में 7-8 गिलास पानी शरीर में जाय, यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। (किशमिश व गुलकंद संत श्री आशाराम जी आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं। – संकलक)

3.खट्टे, खारे, तीखे पदार्थ व भारी खुराक का त्याग करना बुद्धिमत्ता है। तली हुई चीजें, अचारवाली खुराक, रात को देरी से खाना अथवा बासी खुराक खाना और देरी से सोना स्वास्थ्य के लिए खतरा है क्योंकि शरद् ऋतु रोगों की माता है। कोई भी छोटा-मोटा रोग होगा तो इस ऋतु में भड़केगा इसलिए उसको बिठा दो।

4.शरद ऋतु में कड़वा रस बहुत उपयोगी है। कभी करेला चबा लिया, कभी नीम के 12 पत्ते चबा लिये। यह कड़वा रस खाने में तो अच्छा नहीं लगता लेकिन भूख लगाता है और भोजन को पचा देता है।

5.पाचन ठीक करने का एक मंत्र भी हैः

अगस्तयं कुम्भकर्णं च शनिं च वडवानलम्।

आहारपरिपाकार्थं स्मरेद् भीमं च पंचमम्।।

यह मंत्र पढ़ के पेट पर हाथ घुमाने से भी पाचनतंत्र ठीक रहता है।

6.बार-बार मुँह चलाना (खाना) ठीक नहीं, दिन में दो बार भोजन करें। और वह सात्त्विक व सुपाच्य हो। भोजन शांत व प्रसन्न होकर करें। भगवन्नाम से आप्लावित (तर, नम) निगाह डालकर भोजन को प्रसाद बना के खायें।

7.50 साल के बाद स्वास्थ्य जरा नपा तुला रहता है, रोगप्रतिकारक शक्ति दबी रहती है। इस समय नमक, शक्कर और घी-तेल पाचन की स्थिति पर ध्यान देते हुए नपा-तुला खायें, थोड़ा भी ज्यादा खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

8.कईयों की आँखें जलती होंगी, लाल हो जाती होंगी। कइयों को सिरदर्द होता होगा। तो एक-एक घूँट पानी मुँह में लेकर अंदर गरारा (कुल्ला) करता रहे और चाँदी का बर्तन मिले अथवा जो भी मिल जाय, उसमें पानी भर के आँख डुबा के पटपटाता जाय। मुँह में दुबारा पानी भर के फिर दूसरी आँख डुबा के ऐसा करे। फिर इसे कुछ बार दोहराये। इससे आँखों व सिर की गर्मी निकलेगी। सिरदर्द और आँखों की जलन में आराम होगा व नेत्रज्योति में वृद्धि होगी।

9.अगर स्वस्थ रहना है और सात्त्विक सुख लेना है तो सूर्योदय के पहले उठना न भूलें। आरोग्य और प्रसन्नता की कुंजी है सुबह-सुबह वायु सेवन करना। सूरज की किरणें नहीं निकली हों और चन्द्रमा की किरणें शांत हो गयी हों उस समय  वातावरण में सात्त्विकता का प्रभाव होता है। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो इस समय ओजोन वायु खूब मात्रा में होती है वातावरण में ऋणायनों प्रमाण अधिक होता है। वह स्वास्थ्यप्रद होती है। सुबह के समय की  जो हवा है वह मरीज को भी थोड़ी सांत्वना देती है।

दुग्ध सेवन संबंधी महत्त्वपूर्ण बातें

क्या करें क्या न  करें
रात्रि को दूध पीना  पथ्य (हितकर), अनेक दोषों का शामक एवं नेत्रहितकर होता है। फल, तुलसी, अदरक, लहसुन, खट्टे एवं नमकयुक्त पदार्थों के साथ दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
पीपरामूल, काली मिर्च, सोंठ – इनमें से एक या अधिक द्रव्य दूध के साथ लेने से वह सुपाच्य हो जाता है तथा इन द्रव्यों के औषधीय गुणों का भी लाभ प्राप्त होता है। नया बुखार, मंदाग्नि, कृमिरोग, त्वचारोग, दस्त, कफ के रोग आदि में दूध का सेवन न करें।
उबले हुए गर्म दूध का सेवन वात-कफशामक तथा औटाकर शीतल किया हुआ दूध पित्तशामक होता है। दूध को ज्यादा उबालने से वह पचने में भारी हो जाता है।
देशी गाय के दूध में देशी घी मिला के पीने से मेधाशक्ति बढ़ती है। बासी, खट्टा, खराब स्वादवाला, फटा हुआ एवं खटाई पड़ा हुआ दूध भूल के भी नहीं पीना चाहिए।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2018, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 308

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