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सद्गुरु के बिना जीव का कल्याण नहीं है – संत देवराहा बाबा



गुरु तत्त्व बड़ा ही विलक्षण और रहस्यमय है । इस तत्तव की कृपा
से लोक और परलोक – दोनों ही प्राप्त हो सकते हैं । शास्त्रों में गुरु
तत्त्व को ईश्वर तत्त्व से भी बढ़कर बताया गया है परंतु शिष्य के साधन
और अधिकार के अनुसार ही गुरुकृपा की उपलब्धि होती है ।
गुरु तत्त्व और भगवद तत्त्व एक ही तत्तव के दो रूप हैं । भगवद्
तत्त्व ऐश्वर्यमय है तथा गुरु तत्त्व साधनामय है । इसीलिए भगवद्-तत्त्व
को अविद्या माया के अधिष्ठातृ रूप में माना जाता है तथा गुरु-तत्त्व को
विद्या माया (ब्रह्मविद्या) के अधिष्ठातृ रूप में । भगवद्-तत्त्व
जगतनियंता है, कर्मों के अनुसार ही जीव को भोग प्रदान करता है परंतु
गुरु-तत्त्व असीम दया और करुणा का सागर है । उसकी कृपा अहैतुकी है

गुरु-तत्त्व की सम्पूर्ण शक्ति गुरुमंत्र में निहित है । गुरु प्रदत्त
बीजमंत्र जो एक अलौकिक शक्ति से परिपूर्ण होता है, वह शिष्य के
हृदय में अनंत प्रकाश प्रज्वलित कर देता है परंतु वह शिष्य की योग्यता
पर निर्भर है ।
सद्गुरु में भगवद्बुद्धि होना आवश्यक है
गुरुमंत्र मानव-मन को अंतर्मुख कर देता है । यों तो ब्रह्मतत्त्व
सर्वत्र व्याप्त है पर उसके साक्षात्कार के लिए गुरुमंत्र अपेक्षित है । जिस
प्रकार काष्ठ में निहित अग्नि का साक्षात्कार घर्षण से होता है इसी
प्रकार मंत्र द्वारा हृदय से ब्रह्माग्नि का साक्षात्कार होता है । गुरुमंत्र का
जप किसी भी रूप में किया जाय, उसका फल अवश्य मिलता है । गुरु
में भगवद्बुद्धि होना आवश्यक है । यह सम्पूर्ण समर्पण भाव से ही
सम्भव है । सद्गुरु के मार्गदर्शन के बिना विषय-त्याग, तत्त्व-दर्शन एवं

सहजावस्था कुछ भी सम्भव नहीं है । सद्गुरु के बिना जीव का कल्याण
नहीं है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2023, पृष्ठ संख्या 21 अंक 365
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उनकी महिमा वेद भी नहीं जान पाये – संत एकनाथ जी



‘गुरु’ शब्द का अर्थ है ‘भारी’ लेकिन वह इतना हलका है कि
भवसागर से स्वयं तो तैरता है, शिष्य को भी पार कराता है । गुरु तत्त्व
का आदि, मध्य और अंत वेद भी नहीं जान पाये । ये ही आनंदघन
सद्गुरु जनार्दन है जिन्होंने मेरा एकाकीपन दूर कर इस एक ‘एका’
(एकनाथ) को पावन कर दिया । और देखो, आत्मज्ञान का बोध करा के
उसी ऐक्य से भक्तिमार्ग पर लगा दिया तथा ‘जो एक है वह अनेक है
और जो अनेक है वही एक है’ यह निश्चय करा दिया ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2023, पृष्ठ संख्या 10 अंक 365
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मैंने जादू नहीं किया प्रणव के जप का चमत्कार था


एक घटित घटना है । एक व्यक्ति सेल्स टैक्स विभाग के करीब 2200 अधिकारियों के संघ का अगुआ अधिकारी था । उसको हर शुक्रवार को शाम को 7 बजे हृदय में पीड़ा होती थी और वह हृदयाघात (हार्ट अटैक) हो गया ऐसा मानता था । महाराज ! उसको इतनी पीड़ा होती थी कि उसकी पीड़ा देखकर दुश्मन को भी दया आ जाय ! उसकी बच्ची और पत्नी सब रोने लग जाते । अहमदाबाद के सब मुख्य डॉक्टरों को उसने दिखा लिया, मुंबई भी दिखाने गया पर कोई लाभ नहीं हुआ । आखिर जब रोग लाइलाज ज्ञात हुआ तब उसे यह याद आया जो उसने कभी नहीं सुन रखा होगा या किसी ने सुनाया होगाः जो बात दवा से नहीं होती, वह दुआ से होती है । मुर्शिद (गुरु) अगर मिल जायें कामिल (पूर्ण), तो मुलाकात खुदा से होती है ।। किसी भी कारण से हो, वह पहुँच गया बड़ बादशाह के पास और उसने अपनी पूरी रामकथा (तकलीफ) सुनायी । मैं समझ गया कि क्या समस्या है । मैंने उसको कहाः “मेरे सामने बैठ ।” और प्रणव का जप चालू कराया । उसे प्रयोग बताया कि “शुक्रवार को पीड़ा होने के 15 मिनट पहले तू ॐकार का जप चालू कर देना । आज गुरुवार है । पिछले 7 महीने से तेरे को हर शुक्रवार को पीड़ा होती है और कल शुक्रवार है तो यह प्रयोग करना । यदि फायदा हो जाय तो प्रणव (ॐकार) की कृपा समझना और फायदा नहीं हो तो समझना बाबा बेकार है ।” जीवन में किसी बाबा को सलाम करे, नमस्कार करे ऐसे व्यक्तियों में से नहीं था वह सज्जन बेचारा । सज्जनों की भी अपनी-अपनी मान्यता होती है । जल्दी से आँख में आँसू लाने वालों में से नहीं था व । उसने कई लोगों से टक्करें ली होंगी, कई व्यापारियों के बहीखाते जब्त किये होंगे, कराये होंगे । वह कई फैसलों-वैसलों में गया होगा ऐसा व्यक्ति था । शुक्रवार को उसने प्रयोग किया और निश्चिंत हो गया । फिर आश्रम आया, बोलाः “बाबा जी ! पीड़ा नहीं हुई ।” मैंने कहाः “अब क्या संकल्प करते हो बोलो ? बड़ बादशाह को क्या देते हो ? जो कोई डॉक्टर नहीं मिटा सके, तुम्हारे साथ के जो अधिकारी – सेल्स टैक्स कमिश्नर नहीं मिटा सके, वह भगवान के नाम ने मिटाया । बड़ बादशाह की दुआ हुई, अब तुम क्या करोगे ?” बोलाः “बापू ज ! मैंने बड़ बादशाह को फेरे फिरकर मन्नत मानी है ।” मैंने कहाः “क्या” ? बोलाः “यदि रोग सोलह आना ( सौ प्रतिशत) मिट गया तो मैं 501 रूपये दूँगा इधर ।” मैं समझ गया कि यह पैसों में जीने वाले व्यक्तियों में से है । भाव भी कोई जीवन होता है ! श्रद्धा भी कुछ चीज होती है ! समपर्ण भी कुछ चीज होती है ! लेकिन उस दुनिया में वह आया नहीं बेचारा ! मैंने कहाः “ये तो बहुत कम होंगे ।” तो बोलाः “बापू ! 1001 रख दूँगा किंतु 100 प्रतिशथ फायदा होगा तो…!” मैंने कहाः “अच्छा, 1001 तुम रख देना, ठीक है परंतु कब मानोगे कि फायदा हुआ ?” बोलाः “3 शुक्रवार तक तकलीफ न हो तो मानूँगा कि ठीक हो गया ।” मैंने कहाः “3 नहीं, 30 शुक्रवार तक की गारंटी ! और जो 501 या 1001 तुम बोलते हो न, वह समझना कि बाबा को दे दिये हैं । (उस व्यक्ति की जेब की ओर इशारा करते हुए) यह हमारी जेब है, तुम रुपये अपने पास रखना ।” किंतु उसने कहा कि “मैंने जब पैसे देने का बोला है तो अच्छे काम में लगाऊँगा ।” तो कहीं उसके परिचय में कोई गाँव था जहाँ पानी की तकलीफ थी, वहाँ पर उसने हैंडपम्प लगवाया होगा या जो कुछ किया होगा मेरे को पता नहीं । फिर तो वह व्यक्ति आश्रम में आता ही रहा । फिर कभी उसको वह बीमारी नहीं आयी । मैंने जादू नहीं किया, बड़ बादशाह ने फूँक नहीं मारी, प्रणव के जप का चमत्कार था । सीधी तो बात थी । तस्य वाचकः प्रणवः । (पातंजल योगदर्शन) परमात्मा का वाचक ॐकार है । यह सब मंत्रों में राजा है । प्रोफेसर जे मॉर्गन ने खोजा है कि ॐकार के उच्चारण से पेट, सीने और मस्तिष्क में जो कम्पन्न होते हैं, आंदोलन होते हैं उनसे मृत कोशिकाएँ जीवित हो जाती हैं और जीवित कोशिकाओं में नवजीवन का संचार होता है तथा नयी कोशिकाओं का निर्माण होता है । जिनको ईश्वर से लेना-देना नहीं, शरीर ही अपना है ऐसा मानते हैं, ऐसे देहाध्यासियों को भी ॐकार थेरेपी से बहुत फायदे होते हैं परंतु ॐकार का उच्चारण करने से तो ईश्वर मिलता है यह महापुरुषों का अनुभव है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 13-15 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ