Tag Archives: Sant Charitra

Sant Charitra

भगवद्भक्तों, संतों के जीवन प्रसंगों का प्रभाव


(गुरु तेग बहादुर जी शहीदी दिवसः 24 नवम्बर 2019)

सन् 1621 में अमृतसर में एक बालक का जन्म हुआ, नाम रखा गया त्यागमल । बालक जब 4 वर्ष का हुआ तब उसके बड़े भाई के विवाह का अवसर आया । बारात जा रही थी, बालक की दृष्टि एक लड़के पर पड़ी, जिसके तन पर कपड़े नहीं थे और वह दूर से बारात को बहुत ही गौर से देख रहा था । उसी समय बालक ने महसूस किया कि ‘इस लड़के के पास एक लँगोट तक नहीं और मैं शाही पोशाक में !’ बालक का हृदय दया से भर गया और उसने तुरंत अपनी पोशाक उतारकर उस लड़के को पहना दी । बालक की माँ का ध्यान जब अपने बेटे पर गया तो वे आश्चर्य में पड़ गयीं कि ‘अभी-अभी तो मैंने अपने लाड़ले को पोशाक पहनायी थी, वह कहाँ गयी ?’

बालक से पूछे जाने पर उसने सारी बात बता दी ।

बेटे की परदुःखकातरता देखकर माँ को लव-कुश, ध्रुव, प्रह्लाद, बाबा फरीद जैसे भगवद्भक्तों व संतों के प्रेरणाप्रद प्रसंग, कथाएँ सुनाना सार्थक लगा । माँ ने उसे गले से लगा लिया और आशीष की वर्षा की ।

जानते हैं वे माँ कौन थीं और वह बालक कौन थे ? वे माँ थीं नानकी देवी और वह बालक थे ‘गुरु तेग बहादुर जी’ जिन्होंने सिखों की गुरु-परम्परा में 9वें गुरु के रूप में गुरुगादी सँभाली और धर्मांतरण के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए नारा दिया थाः

गुरु तेग बहादुर बोलिया, सुनो सिखो बड़भागियाँ ।

धड़ दीजिये धर्म न छोड़िये ।।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 25 अंक 323

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

ऐसे गहने हों तो हीरे-मोतियों की क्या आवश्यकता ?


भक्तिमति मीराबाई की भगवद्भक्ति, साधुसंगति आदि देखकर एक ओर जहाँ उनके देवर विक्रमादित्य (महाराजा विक्रम) का क्रोध बढ़ता जा रहा था, वहीं दूसरी ओर मीरा की यश-कीर्ति का विस्तार हो रहा था । मंदिर में महल की डयोढ़ी (दहलीज) पर मीरा के भजन लिखने-सुनने वाले जिज्ञासु यात्रियों, साधु सज्जनों की भीड़ लगी ही रहती थी । यह सब देख-सुन महाराणा विक्रम तिलमिला उठता था ।

एक दिन मीरा की ननद उदा के पति पधारे । सारी हँसी-खुशी के बीच उन्होंने पत्नी को उलाहना दियाः “तुम्हारी भाभी पुरुषों की भीड़ में नाचती गाती हैं । कैसी कुलरीति है हिन्दूपति राणा के घर की ?”

उदा मन ही मन गुस्से को पी गयी और दूसरे दिन उसने सारी भड़ास मीराबाई पर निकालते हुए कहाः “मेरी भाभी ! क्या जानती है आप अपनी करतूतों का परिणाम ? आपके नंदोई, इस घर के जँवाई पधारे हैं । आपके कारण मुझे कितने उलाहने, कितनी वक्रोक्तियाँ सुननी पड़ीं सो तो मैं ही जानती हूँ ।”

मीरा ने कहाः “बाईसा ! जिनसे मेरा कोई परिचय या स्नेह-संबंध नहीं है, उनके द्वारा दिये गये उलाहनों का कोई प्रभाव मुझ पर नहीं होता ।”

मीरा का उत्तर सुनकर उदा मन ही मन जल उठी और व्यंग्यपूर्वक बोलीः “किंतु भाभी ! कैसे समझाऊँ आपको कि आपके इस साधु-संग से आपका मायका और ससुराल दोनों लज्जित हैं । आप इन बाबाओं का संग छोड़ती क्यों नहीं है ? सारे सगे-संबंधियों और प्रजा में थू-थू हो रही है । क्या इन श्वेत वस्त्रों को छोड़कर और कोई रंग नहीं बचा है पहनने को ? और कुछ न सही पर एक-एक सोने का कंगन हाथों में और एक स्वर्ण-कंठी गले में पहन ही सकती हैं न ? क्या आप इतना भी नहीं जानतीं कि लकड़ी के डंडे जैसे सूने हाथ अपशकुनी माने जाते हैं ? जब बावजी हुकम (मीराबाई के पति भोजराज) का परलोकगमन हुआ और गहने-कपड़े उतारने का समय आया, तब तो आप सोलहों श्रृंगार करके उनका शोक मनाती रहीं और अब ? ये तुलसी की मालाएँ हाथों और गले में बाँधे फिरती हैं, जैसे कोई निर्धन औरत हो । पूरा राजपरिवार लाज से मरा जा रहा है  आपके व्यवहार के कारण ।”

मीराबाई ने शांतभाव से कहाः “जिसने शील (किसी का भी अहित न चाहना और न करना, सच्चरित्रता, सदाचार, विनम्रता) और संतोष के गहने पहन लिये हैं, उसे सोने और हीरे-मोतियों की आवश्यकता नहीं रहती बाईसा !”

मीरा के वचनों में जीवन की एक गहरी सच्चाई झलक रही थी । मीराबाई को भक्तिमार्ग से हटाने के लिए बहुत प्रयास हुए फिर भी वे डटी रहीं । गीता में जो भी कहा गया हैः भजन्ते मां दृढव्रताः । जो दृढ़ हैं वह अवश्य पूर्णता प्राप्त कर लेता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 21 अंक 323

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

गुरुमंत्र के प्रभाव से एक ने पाया ऋषि पद ! – पूज्य बापू जी


इतरा माता का पुत्र बालक ऐतरेय बाल्यकाल से ही जप करता था । वह न तो किसी की बात सुनता था, न स्वयं कुछ बोलता था । न अन्य बालकों की तरह खेलता ही था और न ही अध्ययन करता था ।

आखिर लोगों ने कहाः “यह तो मूर्ख है । कुछ बोलता ही नहीं है ।”

एक दिन माँ ने दुःखी होकर ऐतरेय से कहाः “माता-पिता तब प्रसन्न होते हैं जब उनकी संतान का यश होता है । तेरी तो निंदा हो रही है । संसार में उस नारी का जन्म निश्चय ही व्यर्थ है जो पति के द्वारा तिरस्कृत हो और जिसका पुत्र गुणवान न हो ।”

तब ऐतरेय हँस पड़ा और माता के चरणों में प्रणाम करके बोलाः “माँ ! तुम झूठे मोह में पड़ी हुई हो । अज्ञान को ही ज्ञान मान बैठी हो । निंदा और स्तुति संसार के लोग अपनी दृष्टि से करते हैं । निंदा करते हैं तो किसकी करते हैं ? जिसमें कुछ खड़ी हड्डियाँ हैं, कुछ आड़ी हड्डियाँ हैं और थोड़ा माँस है जो नाड़ियों से बँधा है, उस निंदनीय शरीर की निंदा करते हैं । इस निंदनीय शरीर की निंदा हो चाहे स्तुति, क्या अंतर पड़ता है ? मैं निंदनीय कर्म तो नहीं कर रहा, केवल जानबूझकर मैंने मूर्ख का स्वांग किया है ।

यह संसार स्वार्थ से भरा है । निःस्वार्थ तो केवल भगवान और भगवत्प्राप्त महापुरुष हैं । इसीलिए माँ ! मैं तो भगवान के नाम का जप कर रहा हूँ और मेरे हृदय में भगवत्शांति है, भगवत्सुख है । मेरी निंदा सुनकर तू दुःखी मत हो ।

माँ ! ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए जिससे मन में दुःख हो, बुद्धि में द्वेष हो और चित्त में संसार का आकर्षण हो । संसार का चिंतन करने से जीव बंधन में पड़ता है और चैतन्यस्वरूप परमात्मा का चिंतन करने से जीव मुक्त हो जाता है ।

वास्तव में मैं शरीर नहीं हूँ और माँ ! तुम भी यह शरीर नहीं हो । शरीर तो कई बार पैदा हुए और कई बार मर गये । शरीर को ‘मैं’ मानने से, शरीर के साथ संबंधित वस्तुओं को मेरा मानने से ही यह जीव बंधन में फँसता है । आत्मा को मैं मानने और परमात्मा को मेरा मानने से जीव मुक्त हो जाता है ।

माँ ! ऐसा चिंतन-मनन करके तू भी मुक्तात्मा हो जा । अपनी मान्यता बदल दे । संकीर्ण मान्यता के कारण ही जीव बंधन का शिकार होता है । अगर वह ऐसी मान्यता को छोड़ दे तो जीवात्मा परमात्मा का सनातन स्वरूप है है ।

माँ ! जीवन की शाम हो जाय उसके पहले जीवनदाता का ज्ञान पा ले । आँखों को देखने की शक्ति क्षीण हो जाय उसके पहले जिससे देखा जाता है उसे देखने का अभ्यास कर ले । कान बहरे हो जायें उसके पहले जिससे सुना जाता है उसमें शांत होती जा… यही जीवन का सार है माँ !”

इतरा ने देखा कि बेटा लगता तो मूर्ख जैसा है किंतु बड़े-बड़े तपस्वियों से भी ऊँचे अनुभव की बात करता है । माँ को बड़ा संतोष हुआ ।

ऐतरेय ने कहाः “माँ ! पूर्वजन्म में मुझे गुरुमंत्र मिला था । मैं निरंतर उसका जप करता था । उस जप के प्रभाव से ही मुझे पूर्वजन्म  की स्मृति हुई, भगवान के प्रति मेरे मन में भक्ति का उदय हुआ ।”

यही बालक आगे चलकर ऐतरेय ऋषि हुए ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2019, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 318

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ