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श्राद्ध में पालने योग्य नियम


श्रद्धा और मंत्र के मेल से पितरों की तृप्ति के निमित्त जो विधि होती है उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं।

हमारे जिन संबंधियों का देहावसान हो गया है, जिनको दूसरा शरीर नहीं मिला है वे पितृलोक में अथवा इधर-उधर विचरण करते हैं, उनके लिए पिण्डदान किया जाता है।

बच्चों एवं संन्यासियों के लिए पिण्डदान  नहीं किया जाता।

विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दे। परंतु श्राद्ध के दिन कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारें तो उन्हें भी भोजन कराना चाहिए।

भोजन के लिए उपस्थित अन्न अत्यंत मधुर, भोजनकर्ता की इच्छा के अनुसार तथा अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ होना चाहिए। पात्रों में भोजन रखकर श्राद्धकर्ता को अत्यंत सुंदर एवं मधुर वाणी से कहना चाहिए कि ‘हे महानुभावो ! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करें।’

श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर मिलता है। (विष्णु पुराणः 3.16,16)

श्राद्धकाल में शरीर, द्रव्य, स्त्री, भूमि, मन, मंत्र और ब्राह्मण-ये सात चीजें विशेष शुद्ध होनी चाहिए।

श्राद्ध में तीन बातों को ध्यान में रखना चाहिएः शुद्धि, अक्रोध और अत्वरा (जल्दबाजी नही करना)।

श्राद्ध में मंत्र का बड़ा महत्त्व है। श्राद्ध में आपके द्वारा दी गयी वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, लेकिन आपके द्वारा यदि मंत्र का उच्चारण ठीक न हो तो काम अस्त-व्यस्त हो जाता है। मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और जिसके निमित्त श्राद्ध करते हों उसके नाम का उच्चारण भी शुद्ध करना चाहिए।

जिनकी देहावसना-तिथि का पता नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए।

हिन्दुओं में जब पत्नी संसार से जाती है तो पति को हाथ जोड़कर कहती हैः ‘मुझसे कुछ अपराध हो गया हो तो क्षमा करना और मेरी सदगति के लिए आप प्रार्थना करना।’ अगर पति जाता है तो हाथ जोड़ते हुए पत्नी से कहता हैः ‘जाने-अनजाने में तेरे साथ मैंने कभी कठोर व्यवहार किया हो तो तू मुझे क्षमा कर देना और मेरी सदगति के लिए प्रार्थना करना।’

हम एक दूसरे की सदगति के लिए जीते जी भी सोचते हैं, मरते समय भी सोचते हैं और मरने के बाद भी सोचते हैं।

श्राद्ध में प्रति व्यक्ति के लिए पूजन सामग्री


 

श्राद्ध में प्रति व्यक्ति के लिए पूजन सामग्री

१. यज्ञोपवीत -१ नंग (बहनों को नहीं देना है)

२. कच्चा सूत -१० टुकड़ा (३ इंच का)

३. नाड़ाछड़ी -१ बित्ता का १ नंग

४. सुपारी – १ नंग (विष्णु पूजन हेतु)

५. कंकु, अबीर, गुलाल, सिंदुर – १० ग्राम(२-२ ग्राम सब)

६. चंदन -१० ग्राम

७. चावल (अक्षत) -२० ग्राम

८. मिश्री -२० ग्राम

९. किशमिश -२० ग्राम

१०. कपूर (२ टुक‹डा – आरती) , माचिस, गौ-चंदन धूपबत्ती (२), दिया-बत्ती (तिल का तेल १०ग्राम) – (१)

११. फल – केला – २ नंग

१२. पीपल या पलाश के पत्ते -७ नंग

१३. गंगाजल

१४. तुलसी दल -३० नंग (स्याम तुलसी हो तो ज्यादा अच्छा)

१५. फूल -२० नंग (सफेद ज्यादा)

१६. काला तिल -२५ ग्राम

१७. सफेद तिल -५ ग्राम

१८. जव -२५ ग्राम

१९. पिड़ (चावल के आटे के) -(५०० ग्राम) (उसमें घी, तिल, गंगाजल, शक्कर,दूध-दही, शहद, चंदन, पुष्प  आदि डालकर बनाना है ।)

२०. पत्तल -१ नंग (पलाश)

२१. दोना -१ नंग (पलाश)

२२. दूध -(१०० ग्राम)

२३. इत्र (रूई में भीगोकर)

२४. (क) दर्भ (कुशा)- चट -१० (५ इंच का १०-१०, धागे में लपेट कर रखना है।)

(पितर-३, वैश्वदेव -२, विष्णुजी -१)

(ख) ८-८ इंच का ३ कुशा लेकर उसको कलावा लपेट कर एक बनायें – तर्पण हेतु

(ग) ८-८ इंच का ३ कुशा (पिण्ड के नीचे डालने हेतु)

(घ) एक अंगूठी (कुश की बनी हुई)

(ङ) गाँठ बँधा हुआ कुशा । – मार्जन के लिए – १ नंग

(च) ३ इंच का १५ कुशा (विधि में अलग-अलग स्थानों पर चढाने हेतु)

निम्नलिखित सामान यजमान को अपने साथ लाना है ।

नोट : थाली – २ (एक सामान्य थाल व एक परात जैसा, तर्पण हेतु), कटोरी-२ (दूध और स्वयं के आचमनादि उपयोग के लिए), ताम्बे का लोटा -१ नंग, चम्मच – १ नंग), कंधे पर रखने हेतु उत्तरीय वस्त्र (अँगोछा) – १ ।

आवश्यक सूचना : सामग्री की यह सूची श्राद्ध करानेवाले ब्राह्मणदेव को पहले दिखा लें

धन-धान्य, यश की वृद्धि के साथ अंतरात्मा की चिन्मय तृप्ति दिलाता श्राद्ध-कर्म


 

धन-धान्य, यश की वृद्धि के साथ अंतरात्मा की चिन्मय तृप्ति दिलाता श्राद्ध-कर्म

श्राद्ध पक्ष के दिनों में पितरों को अपने-अपने कुल में जाने की छूटछाट का विधान है । अतः श्राद्ध पक्ष में पितर विचरण करते हैं । जिनके यहाँ से अपने पितरों को अघ्र्य, कव्य मिलता है, उनके पितर तृप्त होकर जाते हैं और आशीर्वाद देते हैं । उनके कुल-खानदान में अच्छी संतानें आती हैं । जो श्राद्ध नहीं करते हैं उनके पितर अतृप्त होकर निःश्वास छोड़ के जाते हैं कि ‘धिक्कार है !’ ऐसे लोग फिर अतृप्त रहते हैं ।

आपका एक मास बीतता है तो पितृलोक का एक दिन (दिन+रात) होता है । आप वर्ष में एक बार भी विधिवत् श्राद्ध कर लेते हैं तो आपके पितर तृप्त होते हैं । आप जो खिलाते हैं उन चीजों का केवल भाव ही उन तक पहुँचता है और उस भाव से ही वे तृप्त होते हैं । हमारे पूर्वज मरकर जिस लोक में या जिस योनि में गये हैं, उसके अनुरूप उन्हें तृप्ति देनेवाला भोग मिलेगा ।

पितरों के उद्धार, कल्याण के लिए पानी रखकर ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के ७वें अध्याय का माहात्म्यसहित पाठ करें और जिसका श्राद्ध करते हैं, उसके कल्याण व आत्मशांति के निमित्त वह पानी हाथ में लेकर तुलसी के पौधे में छोड़ दें तो आपका संकल्प जिनके लिए श्राद्ध करते हो उनको बड़ी मदद देगा और उनका आशीर्वाद आपका कल्याण करेगा ।

मुझे बड़ा लाभ हुआ

श्राद्ध पक्ष का मुझे बहुत लाभ मिला । जब हमारे पिता का श्राद्ध होता है तो सिर्फ पिता के लिए मैं नहीं करता हूँ । जो भी कुल-खानदान में मर गये, उनके लिए भी कर लो । यक्षों, गंधर्वों, जो अवनत हो के मर गये, जिनकी अकाल मृत्यु हो गयी है, जिनका किसीने पिडदान नहीं किया हो, जिनका कोई नहीं है, जो ब्रह्मचारी थे, उन सबकी सद्गति के लिए भी हम करते हैं तो उस दिन वह कर्म करते-करते हमारे हृदय में बड़ा आनंद, बड़ा रस, बड़े चिन्मय सुख का एहसास होता है । नाग, यक्ष, किन्नर – जो भी प्राणिमात्र हैं, उन सभीको मैं श्राद्ध के द्वारा तृप्त करता हूँ तो बड़ा अच्छा लगता है । बाहर का लाभ धन-धान्य, यश तो बढ़ता ही है लेकिन पितृश्राद्ध करने से अंतरात्मा की चिन्मय तृप्ति का एहसास भी होता है ।

श्राद्ध का मंत्र

ॐ, ह्रीं, श्रीं, क्लींये चारों बीजमंत्र हैं और स्वधा देवी पितरों को तृप्त करने में सक्षम हैं तो उसी देवी के लिए यह मंत्र उच्चारण करना है : ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा ।

जो जाने-अनजाने रह गये हों, जिनकी मृत्यु की तिथि का पता न हो, उनका भी श्राद्ध, तर्पण सर्वपित्री अमावस्या को होता है । आप ज्यादा विधि-विधान न भी कर पायें तो थोड़ी-सी विधि में भी इस मंत्र की सहायता से काम चल जायेगा ।

सर्वपित्री अमावस्या के दिन कर्मकांड करके इस मंत्र का जप करोगे तो करते समय कोई भी त्रुटि रही होगी तो वह पूर्ण हो जायेगी और पितरों को तृप्ति मिलेगी । पितरों की तृप्ति से आपके कुल-खानदान में श्रेष्ठ आत्माओं का अवतरण तथा धन-धान्य व सुख-सम्पदा का स्थायीकरण होता है । श्राद्ध के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करें और ब्राह्मण भी ब्रह्मचर्य का पालन करके श्राद्ध ग्रहण करने आये । ब्राह्मण जरदा, तम्बाकू आदि मलिनता से बचा हुआ हो ।

यदि श्राद्ध करने का सामथ्र्य न हो तो…

समझो श्राद्ध करने की क्षमता, शक्ति, रुपया-पैसा नहीं है तो श्राद्ध के दिन ११.३६ से १२.२४ के बीच के समय (कुतप वेला) में गाय को चारा खिला दें । चारा खरीदने का भी पैसा नहीं है, ऐसी कोई समस्या है तो उस समय दोनों भुजाएँ ऊँची कर लें, आँखें बंद करके सूर्यनारायण का ध्यान करें : ‘हमारे पिता को, दादा को, फलाने को आप तृप्त करें, उन्हें आप सुख दें, आप समर्थ हैं । मेरे पास धन नहीं है, सामग्री नहीं है, विधि का ज्ञान नहीं है, घर में कोई करने-करानेवाला नहीं है, मैं असमर्थ हूँ लेकिन आपके लिए मेरा सद्भाव है, श्रद्धा है । इससे भी आप तृप्त हो सकते हैं ।ङ्क इससे आपको मंगलमय लाभ होगा ।

भगवान राम ने श्राद्ध किया पुष्कर में कंदमूल से और अयोध्या गये तो फिर खीर, पूड़ी आदि व्यंजनों से किया । एकनाथजी महाराज ने भी श्राद्ध किया । ऐसे-ऐसे महापुरुषों ने श्राद्ध-कर्म किया तो आप भी अपने पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध-कर्म करें ।

सर्वपित्री अमावस्या परसामूहिक श्राद्ध का आयोजन

जिन्हें अपने पूर्वजों की परलोकगमन की तिथियाँ मालूम नहीं हैं, उन्हें सर्वपित्री दर्श अमावस्या के दिन श्राद्ध-कर्म करना चाहिए । संत श्री आशारामजी आश्रम की विभिन्न शाखाओं में इस दिन ‘सामूहिक श्राद्ध’ का आयोजन होता है, जिसमें आप सहभागी हो सकते हैं । इस हेतु अपने नजदीकी आश्रम में पंजीकरण करा लें ।

श्राद्ध हेतु अपने साथ दो बड़ी थाली, दो कटोरी, दो चम्मच, ताँबे का एक लोटा और आसन लेकर आयें । अन्य आवश्यक सामग्री श्राद्ध-स्थल पर उपलब्ध रहेगी । श्राद्ध-कर्म सम्पन्न होने के बाद लाये हुए बर्तन सब वापस ले जाने हैं । अधिक जानकारी हेतु पहले ही अपने नजदीकी आश्रम से सम्पर्क कर लें ।

(श्राद्ध से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु आश्रम की पुस्तक ‘श्राद्ध-महिमा पढ़ें ।)