पानी का धन पानी में

पानी का धन पानी में


एक गाँव में कुछ ग्वाले रहते थे । वे पास के शहर में दूध बेचने जाते थे । उनमें से एक आदमी का नाम था माखनलाल । वह बड़ा लालची था इसलिए ज्यादा धन कमाने के चक्कर में दूध में आधा पानी मिला दिया करता था ।

एक दिन की बात है, महीने भर की बिक्री के रूपये साथ लेकर वे ग्वाले घर आ रहे थे । रास्ते में एक नदी पड़ती थी । जब वे वहाँ आये तो दोपहर का समय हो गया था और खूब गर्मी पड़ रही थी । सभी लोगों ने कपड़े उतारकर किनारे पर रख दिये और नदी में नहाने लगे । इतने एक बंदर आया और माखनलाल के कपड़ों में से सिक्कों की थैली व कपड़े लेकर पेड़ पर चढ़ गया । डाल पर बैठकर थैली में से सिक्के निकाल  कर नदी में फेंकने लगा ।

माखनलाल चिल्लाया और कपड़े व थैली छुड़ाने के लिए दौड़ा तो बंदर थैली फैंककर भाग गया परंतु इतनी देर में वह काफी सिक्के पानी को भेंट कर चुका था । माखन ने आकर गिना तो ठीक आधे सिक्के पानी में फैंके जा चुके थे ।

घर लौटते समय माखनलाल अपने भाग्य को कोसते हुए साथियों से बोलाः “देखो, मेरी महीने भर की कमाई के आधे रूपये तो पानी में डूब गये !”

साथी बोलेः “तुमने जितने रूपये पानी बेचकर कमाये थे, वे पानी में चले गये और जो रूपये दूध की बिक्री के थे, वे बच गये । पाप की कमाई कभी फलती नहीं है । हमारे कपड़े भी तो पास ही में रखे थे, उन्हें तो बंदर ने नहीं उठाया !”

तब से कहावत चल पड़ीः

पानी का धन पानी में, नाक कटी बेईमानी में ।

उस दिन से माखनलाल ने दूध में पानी मिलाना छोड़ दिया व ईमानदारी से धंधा करने लगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2011, पृष्ठ संख्या 21 अंक 226

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