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वे वीडियो व आवाज को काट-छाँटकर प्रसारित करते हैं


परम पूज्य सदगुरुदेव संत श्री आसारामजी बापू के श्रीचरणों में सादर प्रणाम !

आज भारतीय मीडिया जिस दिशा में जा रहा है वह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। अपने ही संत-संस्कृति का मखौल उड़ाकर पूरे विश्व में भारत की छवि को बिगाड़ने का प्रयास कुछ चैनल कर रहे हैं। मैं तो खुद एक टी.वी. पत्रकार हूँ इसलिए बेहतर तरीके से जानता हूँ कि मीडिया में कुछ ऐसे तत्त्व घुस आये हैं, जिन्होंने भारतीय संत-समाज को बदनाम करने का ठेका दुराचारियों से ले लिया है।

पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का डंका बजाने वाले और अध्यात्म-ज्ञान, आत्मज्ञान का खजाना बाँटने वाले, स्वस्थ, सुखी, सम्मानित जीवनि की राह दिखाने वाले लोकलाडले संत श्री आसारामजी महाराज को सनसनी खबर बनाकर बदनाम करने का सोचा समझा षडयंत्र है। केवल बापू जी ही नहीं, श्री श्री रविशंकरजी महाराज, कांची कामकोटि पीठ के श्रद्धेय शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी, श्री सत्य साँई बाबा और योग गुरु स्वामी रामदेव को भी बदनाम करने का कुचक्र कुछ मीडिया संस्थानों ने किया है।

दिन रात दौड़ धूप कर समाज को जागृत करने में तत्पर बापू जी के लोक-कल्याणकारी कार्य दिखाने में इन चैनलों को शर्म आती है, परंतु अभिनेता अभिनेत्रियों के लज्जाहीन बाईट इंटरव्यू और फुटेज दिखाने में ये गर्व महसूस करते हैं। मैं जानता हूँ कि किस तरीके से बापू जी के सत्संग के वास्तविक वीडियो और आवाज को काट-छाँटकर प्रसारित किया जाता है। टी.आर.पी. (टेलिविज़न रेटिंग प्वाइंट) बढ़ाने के चक्कर में इन अधर्मियों को यह भी नहीं पता कि ऐसा करके वे भारत की अस्मिता पर प्रहार कर रहे हैं। अरे ये सहनशील हिन्दू संतों के पीछे क्यों पड़े हैं ? और… कट्टरपंथी धर्मों के आचार्यों के खिलाफ एक शब्द भी छापने व दिखाने की हिम्मत इनमें क्यों नहीं है ? क्योंकि उनके बारे में कुछ दिखाया तो वे आग लगा देंगे, काटकर रख देंगे, लेकिन ये हिन्दू संत अपमान सह लेते हैं और इन अधर्मियों का फिर भी बुरा न चाहकर लोककल्याम में लगे हैं।

मैं तो इन चैनलों के मालिकों के साथ ही भारत सरकार से अपील करता हूँ कि वह जाँच कराये कि कहीं भारतीय संस्कृति का उपहास उड़ाने वाले इन चैनलों में आतंकवादी व आई.एस.आई. एजेन्ट तो नहीं घुस गये हैं, जो मीडियारूपी मजबूत हथियार का इस्तेमाल कर भारत को नष्ट-भ्रष्ट करने पर उतारू हैं। इन चैनलों के बड़े पदों पर भी संदिग्ध लोगों का आधिपत्य बढ़ता जा रहा है।

मीडिया में कुछ अच्छे लोग भी हैं जो संस्कृति के रक्षण् में लगे हैं लेकिन कई बार जब रिपोर्टर खबर भेजता है तो वह या तो रोक ली जाती है या फिर ये विधर्मी चैनल उन खबरों को निगेटिव बनाकर प्रसारित करते हैं। पत्रकार न चाहकर भी कई बार अपने आलाओं के लिए नकारात्मक खबरें बनाने को बाध्य हो जाता है।

मैं मीडिया समुदाय से आग्रह करना चाहूँगा कि भारतीय संस्कृति का रक्षक बने, न कि भक्षक ! भारत के अध्यात्म-ज्ञान की आज भारत को ही नहीं पूरे विश्व को जरूरत है, इसलिए बापू जी जैसे महान संतों के वचनों को जन-जन तक पहुँचाकर अपना व विश्व का कल्याण करें।

पूज्य बापू जी के श्रीचरणों में पुनः नमन।

धर्मेन्द्र साहू

टी.वी. पत्रकार, संवाददाता,

सहारा समय न्यूज चैनल।

कबीरा निंदक न मिलो पापी मिलो हजार।

एक निंदक के माथे पर लाख पापिन को भार।।

संतों की निंदा करके समाज की श्रद्धा तोड़ने वाले लोग कबीर जी के इस वचन से सीख लेकर सँभल जायें तो कितना अच्छा है !

जो अपराध छुड़ायें, रोग मिटायें, राष्ट्रप्रेम में दृढ़ बनायें, सबमें समता-सदभाव बढ़ायें, ऐसे संत पर से श्रद्धा तोड़ना, इसे राष्ट्रद्रोह कहें कि विश्वमानव-द्रोह कहें ? धिक्कार है ऐसे द्वेषपूर्ण रवैयेवालों को !

आर.सी.मिश्र

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2010, पृष्ठ संख्या 7,8 अंक 214

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निंदकों, कुप्रचारकों की खुल गयी पोल – ईश्वर ने उगला सच


धर्मांतरणवालों के सुनियोजित षड्यंत्र के तहत आश्रम पर झूठे आरोप लगाने वाले ईश्वर नायक को आखिर न्यायाधीश श्री डी.के. त्रिवेदी जाँच आयोग में विशेष पूछताछ के दौरान सच्चाई को स्वीकार करना ही पड़ा। परम पूज्य बापू जी ने करूणा कृपा कर महामृत्युंजय मंत्र द्वारा मृत्युशय्या पर पड़े ईश्वर नायक को नवजीवन दिया था। उसने माना कि ‘मैं जब कनाडा में बीमार पड़ा और मुझे अस्पताल में भर्ती किया गया तो उस दौरान मेरी पत्नी ने फोन द्वारा पूज्य बापू जी का सम्पर्क किया और उनकी सूचना के अनुसार मेरे बिस्तर के पास मंत्रजप किया, उससे मैं ठीक हो गया। मैं मंत्र की शक्ति में मानता हूँ।’

उसने यह भी कहा कि ‘पूज्य बापू जी पीड़ित व्यक्ति को ठीक करने के लिए उससे अथवा तो उसके मित्र-परिवार के पास से कोई पैसा, वस्तु नहीं लेते। पूज्य बापू जी द्वारा पीड़ित व्यक्ति को दुःख से मुक्त करने का जो कार्य किया जाता है, वह मेरी दृष्टि से पूज्य बापू जी की समाज सेवा का एक कार्य है।’

ईश्वर नायक ने यह भी माना कि आश्रम आने के पूर्व उसकी तथा उसके परिवार के लोगों की मानसिक स्थिति बिगड़ी हुई थी और व्यक्ति के खुद के कर्मों का उसके शरीर के अवयवों पर असर होता है। जैसे कर्म हों उसके अनुसार उसकी शारीरिक स्थिति में फर्क पड़ता है।

आश्रम के पवित्र वातावरण में रहकर ईश्वर नायक ने सुख-शांति का अनुभव किया। उसने स्वीकार किया कि ‘आश्रम में रहकर साधना करने के दौरान मैंने ऐसी स्थिति का अनुभव किया कि मैं जैसे किसी दिव्य जगत में हूँ। मैं एकदम प्रफुल्लित था और ध्यान में मार्मिक हास्य भी करता। मुझे अदभुत आनंद हुआ। आश्रमवासी सेवक (साधक) शयन के पूर्व शास्त्र की चर्चा, माला द्वारा मंत्रजप और ध्यान करके सोते हैं – यह आश्रम एक नित्यक्रम है।’

साजिशकर्ता ने तथा झूठी कहानियाँ बनाने वाले अखबार ने आश्रम के बड़ बादशाह (वटवृक्ष) के बारे में समाज में मिथ्या भ्रम फैलाये। इस बारे में ईश्वर नायक ने सच्चाई को स्वीकार करते हुए कहा कि ‘आश्रम में स्थित वटवृक्ष की परिक्रमा करने से साधकों के प्रश्नों का निराकरण हुआ है, लौकिक लाभ भी हुए हैं – ऐसा मैं जानता हूँ। वटवृक्ष की महिमा के बारे में लोगों के अनुभवों के पत्र एकत्रित करके मेरी पत्नी ने एक पुस्तक भी लिखनी शुरू की थी।’

ईश्वर नायक ने यह भी स्वीकार किया कि ‘पंचेड़, रतलाम (म.प्र.) के पास कोई एक गाँव में पूज्य बापूजी द्वारा एक भंडारे का आयोजन किया गया था। उसमें अनेक आदिवासी आये और भोजन किया। भोजन कराने के बाद पूज्य बापू जी द्वारा मुझे नोटों का एक बंडल उन आदिवासियों में बाँटने के लिए दिया। उस समय मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि पूज्य बापू जी द्वारा मुझे दिये नोट वहाँ उपस्थित सभी आदिवासियों में बाँटने के बाद भी कम नहीं होते थे ! इससे मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने ऐसा चमत्कार देखा कि नोटों का जो बंडल मुझे बाँटने के लिए दिया गया था, वह बढ़ गया है।’

कृतघ्नता का कोई प्रायश्चित नहीं है। परम पूज्य बापू जी के अनगिनत उपकारों को भूलकर षड्यंत्रकारियों का साथ देने वाले ईश्वर नायक ने स्वयं ही अपने हाथों मानो, अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चलायी है, जिससे वह सज्जनों की दृष्टि में धिक्कार का पात्र बन गया है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010, पृष्ठ संख्या 7, अंक 212

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महेन्द्र चावला के आरोपों की हकीकत


निंदकों, कुप्रचारकों की खुल गयी पोल

विदेशी षड्यंत्रकारियों का हत्था बनकर मीडिया में आश्रम के खिलाफ मनगढंत आरोपों की झड़ी प्रचारित करने वाले महेन्द्र चावला की न्यायाधीश श्री डी.के.त्रिवेदी जाँच आयोग के समक्ष पोल खुल गयी। चालबाज महेन्द्र ने वास्तविकता को स्वीकारते हुए उसने कहा कि मैं अहमदाबाद आश्रम में जब-जब आया और जितना समय निवास किया, तब मैंने आश्रम में कोई तंत्रविद्या होते हुए देखा नहीं।

आश्रम में छुपे भोंयरे (गुप्त सुरंग) होने का झूठा आरोप लगाने वाले महेन्द्र ने सच्चाई को स्वीकारते हुए माना कि यह बात सत्य है कि जिस जगह आश्रम का सामान रहता है अर्थात् स्टोर रूम है, उसे मैं भोंयरा कहता था।

श्री नारायण साँई के नाम के नकली दस्तावेज बनाने वाले महेन्द्र ने स्वीकार किया कि यह बात सत्य हे कि कम्पयूटर द्वारा किसी भी नाम का, किसी भी प्रकार का, किसी भी संस्था का तथा किसी भी साइज का लेटर हेड तैयार हो सकता है। बनावटी हस्ताक्षर किये गये हों, ऐसा मैं जानता हूँ।

महेन्द्र ने स्वीकार किया कि वह दिल्ली से दिनांक 5.8.2008 को हवाई जहाज द्वारा अहमदाबाद आया, जहाँ अविन वर्मा, वीणा चौहान व राजेश सोलंकी पहले से ही आमंत्रित थे। इन्होंने प्रेस कान्फ्रेन्स द्वारा आश्रम के विरोध के झूठे आरोपों की झड़ी लगा दी थी। साधारण आर्थिक स्थितिवाला महेन्द्र अचानक हवाई जहाजों में कैसे उड़ने लगा ? यह बात षड्यंत्रकारी के बड़े गिरोह से उसके जुड़े होने की पुष्टि करती है।

महेन्द्र के भाइयों ने पत्रकारों को दिये इंटरव्यू में बतायाः “आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद हमने उसकी पढ़ाई के लिए पानीपत में अलग कमरे की व्यवस्था की थी। उसकी आदतें बिगड़ गयी। वह चोरियाँ भी करने लगा। एक बार वह घर से 7000 रूपये लेकर भाग गया था। उसने खुद के अपहरण का भी नाटक किया था और बाद में इस झूठ को स्वीकार कर लिया था।

इसके बाद वह आश्रम में गया। हमने सोचा वहाँ जाकर सुधर जायेगा लेकिन उसने अपना स्वभाव नहीं छोड़ा। और अब तो धर्मांतरणवालों का हथकंडा बन गया है और कुछ का कुछ बक रहा है। उसे जरूर 10-15 लाख रूपये मिले होंगे। नारायण साँई के बारे में उसने जो अनर्गल बातें बोली हैं वे बिल्कुल झूठी व मनगढंत है।”

महेन्द्र के भाइयों ने यह भी बतायाः “आश्रम से आने के बाद किसी के पैसे दबाने के मामले में महेन्द्र के खिलाफ एफ.आई.आर. भी दर्ज हुई थी। मार-पिटाई व झगड़ाखोरी उसका स्वभाव है। वास्तव में महेन्द्र के साथ और भी लोगों का गैंग है और ये लोग ही मैं नारायण साँई बोल रहा हूँ, मैं फलाना बोल रहा हूँ….. मैं यह कर दूँगा, वह कर दूँगा….. इस प्रकार दूसरों की आवाजें निकाल के पता नहीं क्या-क्या साजिशें रच रहे हैं।

अंततः महेन्द्र चावला की भी काली करतूतों का पर्दाफाश हो ही गया। इस चालबाज साजिशकर्ता को उसक घर परिवार के लोगों ने तो त्याग ही दिया है, साथ ही समाज के प्रबुद्धजनों की दुत्कार का भी सामना करना पड़ रहा है। भगवान सबको सदबुद्धि दें, सुधर जायें तो अच्छा है।

ऐसे विदेशियों के हथकंडे साबित हो ही रहे हैं। कोई जेल में है तो किसी को परेशानी ने घेर रखा है तो कोई प्रकृति के कोप का शिकार बन गये हैं। और उनके सूत्रधारों के खिलाफ उन्हीं का समुदाय हो गया है। यह कुदरत की अनुपम लीला है। कई देशों में तथाकथित धर्म के ठेकेदारों द्वारा सैंकड़ों बच्चों का यौन-शोषण कई वर्षों तक किया गया। गूंगे-बहरे, विकलांग बालकों का यौन-शोषण और वह भी इतने व्यापक पैमाने पर हुआ। उसका रहस्य प्रकृति के खोल के रख दिया है (जिसका विवरण ऋषि प्रसाद के पिछले अंक में प्रकाशित हुआ है)। ऐसी नौबत आयी कि साम, दाम, दंड, भेद आदि से भी विरोध न रूका। आखिरकार इन सूत्रधारों को जाहिर में माफी माँगनी पड़ी। पूरे यूरोप का वकील-समुदाय बालकों किशोरों का यौन-शोषण करने वालों के खिलाफ खड़ा हो गया। भारत को तोड़ने की साजिशें रचने वाले अपने कारनामों की वजह से खुद ही टूट रहे हैं। पैसों के बल से न जाने क्या-क्या कुप्रचार करवाते हैं परंतु सूर्य को बादलों की कालिमा क्या ढकेगी और कब तक ढकेगी ? स्वामी रामतीर्थ, स्वामी रामसुखदासजी आदि के खिलाफ इनकी साजिशें नाकामयाब रहीं। ऐसे ही अब भी नाकामायाबी के साथ कुदरत का कोप भी इनके सिर पर कहर बरसाने के लिए उद्यत हुआ है।

डॉ. प्रे. खो. मकवाना (एम.बी.बी.एस.)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2010, पृष्ठ संख्या 5,6, अंक 210

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