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Anmol Yuktiyan

बुद्धि का विकास और नाश कैसे होता है ? – पूज्य बापू जी


बुद्धि का नाश कैसे होता है और विकास कैसे होता है ? विद्यार्थियों को तो खास समझना चाहिए न ! बुद्धि नष्ट कैसे होती है ? बुद्धि शोकेन नश्यति । भूतकाल की बातें याद करके ‘ऐसा नहीं हुआ, वैसा नहीं हुआ…’ ऐसा करके जो चिंता करते हैं न, उनकी बुद्धि का नाश होता है और ‘मैं ऐसा करके ऐसा बनूँगा…’ यह चिंतन बुद्धि-नाश तो नहीं करता लेकिन बुद्धि को भ्रमित कर देता है । और ‘मैं कौन हूँ ? सुख-दुःख को देखने वाला कौन ? बचपन बीत गया फिर भी जो नहीं बीता वह कौन ? जवानी बदल रही है, सुख-दुःख बदल रहा है, सब बदल रहा है इसको जानने वाला मैं कौन हूँ ? प्रभु ! मुझे बताओ…’ इस प्रकार का चिंतन, थोड़ा अपने को खोजना, भगवान के नाम का जप और शास्त्र का पठन करना – इससे बुद्धि ऐसी बढ़ेगी, ऐसी बढ़ेगी कि दुनिया का प्रसिद्ध बुद्धिमान भी उसके चरणों में सिर झुकायेगा ।

रमण महर्षि के पास पॉल ब्रंटन कैसा सिर झुकाता है और रमण महर्षि तो हाई स्कूल तक पढ़े थे । उनकी कितनी बुद्धि बढ़ी की मोरारजी भाई देसाई कहते हैं- ″मैं प्रधानमंत्री बना तब भी मुझे उतनी शांति नहीं मिली, उतना सुख नहीं मिला जितना रमण महर्षि के चरणों में बैठने से मिला ।″ तो आत्मविश्रांति से कितनी बुद्धि बढ़ती है, बोलो ! प्रधानमंत्री पर भी कृपा करने योग्य बुद्धि हो गयी रमण महर्षि की ।

जप करने से, ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है । जरा-जरा बात में दुःखी काहे को होना ? जरा-जरा बात में प्रभावित काहे को होना ? ‘यह मिल गया, यह मिल गया…’ मिल गया तो क्या है ! ज्यादा सुखी-दुःखी होना यह कम बुद्धि वालों का काम है । जैसे बच्चे की कम बुद्धि होती है तो जरा-से चॉकलेट में, जरा-सी चीज में खुश हो जाता है और जरा-सी चीज हटी तो दुःखी हो जाता है लेकिन जब बड़ा होता है तो चार आने का चॉकलेट आया तो क्या, गया तो क्या ! ऐसे ही संसार की जरा-जरा सुविधा में जो अपने को भाग्यशाली मानता है उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता और जो जरा-से नुकसान में अपने को अभागा मानता है उसकी बुद्धि मारी जाती है । अरे ! यह सपना है, आता-जाता है । जो रहता है उस नित्य तत्त्व में जो टिके उसकी बुद्धि तो गजब की विकसित होती है ! सुख-दुःख में, लाभ-हानि में, मान-अपमान में सम रहना तो बुद्धि परमात्मा में स्थित रहेगी और स्थित बुद्धि ही महान हो जायेगी ।

बुद्धि बढ़ाने के 4 तरीके

एक तो शास्त्र का पठन, दूसरा भगवन्नाम-जप करके फिर भगवान का ध्यान, तीसरा पवित्र स्थानों ( जैसे ब्रह्मवेत्ता महापुरुष के आध्यात्मिक स्पंदनों से सम्पन्न आश्रम ) में जाना और चौथा परमात्मा को पाये हुए महापुरुषों का सत्संग-सान्निध्य – इन 4 से तो गजब की बुद्धि बढ़ती है !

विद्या के 6 विघ्न

स्वच्छन्दत्वं धनार्थित्व प्रेमभावोऽथ भोगिता ।

अविनीतत्वमालस्यं विद्याविघ्नकराणि षट् ।।

‘स्वच्छन्दता अर्थात् मनमुखता, धन की इच्छा, किसी के ( विकारी ) प्रेम में पड़ जाना, भोगप्रिय होना, अनम्रता, आलस्य – ये 6 विद्या के विघ्न हैं ।’ ( सुभाषितरत्नाकर )

बल ही जीवन है

बल ही जीवन है, दुर्बलता मौत है । जो नकारात्मक विचार करने वाले हैं वे दुर्बल हैं, जो विषय विकारों के विचार में उलझता है वह दुर्बल होता है लेकिन जो निर्विकार नारायण का चिंतन, ध्यान करता है और अंतरात्मा का माधुर्य पाता है उसका मनोबल, बुद्धिबल और आत्मज्ञान बढ़ता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2022, पृष्ठ संख्या 18, 19 अंक 349

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यदि पुण्यात्मा व उत्तम संतान चाहते हैं तो…


महान आत्माएँ धरती पर आना चाहती है लेकिन उसके लिए संयमी पति-पत्नी की आवश्यकता होती है । अतः उत्तम संतान की इच्छा वाले दम्पति गर्भाधान से पहले अधिक-से-अधिक ब्रह्मचर्य का पालन करें व गुरुमंत्र का जप करें । गर्भाधान के पहले और गर्भाधान के समय पति-पत्नी की मानसिक प्रसन्नता बहुत अच्छी होनी चाहिए । इसलिए अनुष्ठान करके उत्तम संतान हेतु सद्गुरु या इष्टदेव से प्रार्थना करें, फिर गर्भाधान करें । 22 जून 2022 तक का समय तो गर्भाधान के लिए अतिशय उत्तम है ।

गर्भाधान के लिए अनुचित काल

पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, पर्व या त्यौहार की रात्रि ( जन्माष्टमी, श्री राम नवमी, होली, दीवाली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि ), श्राद्ध के दिन, प्रदोषकाल ( सूर्यास्त का समय, सूर्यास्त से लेकर ढाई घंटे बाद तक का समय ), क्षयतिथि [ देखें आश्रम में सत्साहित्य केन्द्रों पर व समितियों में उपलब्ध कर्मयोग दैनंदिनी (डायरी)] एवं मासिक धर्म के प्रथम 5 दिन, माता-पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, संध्या के समय एवं दिन में समागम या गर्भाधान करना भयंकर हानिकारक है । दिन के गर्भाधान से उत्पन्न संतान दुराचारी और अधम होती है ।

शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, नहीं तो आसुरी, कुसंस्कारी या विकलांग संतान पैदा होती है । संतान नहीं भी हुई तो दम्पति को कोई खतरनाक बीमारी हो जाती है ।

गर्भाधान के पूर्व विशेष सावधानी

अपने शरीर व घर में धनात्मक ऊर्जा आये इसका तथा पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए । महिलाओं को मासिक धर्म में भोजन नहीं बनाना चाहिए तथा उन दिनों अपने हाथ का भोजन अपने परिवारवालों को देकर उनका ओज, बल और बुद्धि क्षीण करने की गलती कदापि नहीं करनी चाहिए ।

गर्भाधान घर के शयनकक्ष में ही हो, होटलों आदि ऐसी-वैसी जगहों पर न हो ।

ध्यान दें- उत्तम समय के अलावा के समय में भी यदि गर्भाधान हो गया हो तो गर्भपात न करायें बल्कि गर्भस्थ शिशु में आदरपूर्वक उत्तम संस्कारों का सिंचन करें । गर्भपात महापाप है, जिसका प्रायश्चित मुश्किल है ।

विशेषः उत्तम संतानप्राप्ति हेतु महिला उत्थान मंडल के ‘दिव्यु शिशु संस्कार केन्द्रों’ का भी लाभ ले सकते हैं ।

सम्पर्कः 9157389706, 9157306313

उत्तम संतानप्राप्ति में सहायक विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम में सत्साहित्य सेवा केन्द्रों पर व समितियों में उपलब्ध पुस्तक ‘दिव्य शिशु संस्कार’ ।

सम्पर्कः 079-61210730

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 21 अंक 347

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स्वास्थ्य व पुष्टि प्रदायक रागी


रागी (मँडुआ, मराठी में ‘नाचणी’ ) मधुर, कसैली, कड़वी, शीतल व सुपाच्य होती है । इसमें गेहूँ के समान तथा चावल की अपेक्षा अधिक पौष्टिकता होती है । सुपाच्य होने से सभी ऋतुओं में इसका सेवन किया जाता है ।

आधुनिक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार रागी में सभी अनाजों से अधिक और दूध से 3 गुने कैल्शियम की मात्रा होती है । इसके अतिरिक्त इसमें एमिनो एसिड्स, विटामिन ए, बी तथा फास्फोरस, जो हमारे शरीर के संवर्धन के लिए आवश्यक हैं, संतुलित मात्रा में पाये जाते हैं ।

रागी के विभिन्न लाभ

  1. इसमें रेशे ( फाइबर्स ) की मात्रा अधिक होने से यह पेट के रोगों, उच्च रक्तचाप तथा आँतों के कैंसर से रक्षा करती है ।
  2. खून की कमी ( एनीमिया), अजीर्ण, पुराना बुखार, हड्डियों की कमजोरी आदि समस्याओं में तथा कैल्शियम से भरपूर व सुपाच्य होने के कारण बढ़ते हुए बच्चों, गर्भवती महिलाओं व बुजुर्गों के लिए भी इसका सेवन विशेष लाभदायी है ।
  3. इसमें प्रोटीन की प्रचुरता होने से कुपोषण से लड़ने के लिए यह शरीर को सक्षम बनाती है । शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखने की क्षमता के कारण रागी मधुमेह में उपयोगी है ।

रागी के पौष्टिक व्यञ्जन

रागी का सत्त्व बनाने की विधिः रागी को अच्छी तरह से धोकर 8-10 घंटे तक पानी में भिगो के फिर छाया में सुखा दें । फिर मंद आँच पर सेंके व चट-चट आवाज आने पर सेंकना बंद कर दें । ठंडा होने पर रागी को पीसकर आटा बना लें । इस प्रकार बनाया गया रागी का सत्त्व पौष्टिक व पचने में हलका होता है । छोटे बच्चों हेतु सत्त्व को छानकर प्रयोग करें ।

रागी की खीरः एक कटोरी रागी का सत्त्व तथा तीन कटोरी पानी लें । उबलते हुए पानी में थोड़ा-थोड़ा सत्त्व मिलाते हुए पकायें, बाद में इसमें दूध, मिश्री व इलायची डालें । यह खीर स्वादिष्ट, सुपाच्य, सात्त्विक, रक्त व बल वर्धक तथा पुष्टिदायी है ।

रागी की रोटीः रागी का आटा लेकर गूँथ लें । रोटी बेलकर तवे पर डालें और बीच-बीच में घुमाते रहें ताकि काले दाग न पड़ें, थोड़ी देर बाद पलट दें । फिर कपड़े से हलका-हलका दबायें । इससे रोटी फूल जाती है और उसकी 2 पर्तें बनकर यह सुपाच्य व स्वादिष्ट बनती है ।

रागी के आटे में कद्दूकश की हुई ताजी लौकी, जीरा, धनिया, हल्दी आदि मिलाकर भी रोटी बना सकते हैं ।

रागी के लड्डूः रागी का 1 कटोरी आटा घी में भून लें । आटे से आधी मात्रा में गुड़ ले के एक तार की चाशनी बनायें । भूने हुए आटे को चाशनी में मिलाकर लड्डू बना लें इसमें आवश्यकतानुसार इलायची व सूखे मेवे मिला सकते हैं । इन लड्डुओं के सेवन से हड्डियाँ मजबूत बनती है व रक्त की वृद्धि होती है ।

विशेषः यह पौष्टिक चीज (रागी) साफ-सुथरी, कंकड़-पत्थर एवं कचरे बिना की साधकों को मिले इसके प्रयास चालू हो गये हैं । आश्रमों में सत्साहित्य केन्द्रों पर व समितियों से साफ-सुथरी, दोषमुक्त रागी साधकों को मिल जायेगी ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2021, पृष्ठ संख्या 33 अंक 346

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