Tag Archives: Uttarayan

उत्तरायण पर्व कैसे मनाएं ?


 

(मकर संक्रांति: १४ जनवरी- पुण्यकाल : सूर्योदय से सूर्यास्त तक )

इस दिन स्नान, दान, जप, तप का प्रभाव ज्यादा होता है | उत्तरायण के एक दिन पूर्व रात को भोजन थोडा कम लेना | दूसरी बात, उत्तरायण के दिन पंचगव्य का पान पापनाशक एवं विशेष पुण्यदायी माना गया है | त्वचा से लेकर अस्थि तक की बीमारियों की जड़ें पंचगव्य उखाड़ के फेंक देता है | पंचगव्य आदि न बना सको तो कम-से-कम गाय का गोबर, गोझारण, थोड़े तिल, थोड़ी हल्दी और आँवले का चूर्ण इनका उबटन बनाकर उसे लगा के स्नान करो अथवा सप्तधान्य उबटन से स्नान करो (पिसे हुए गेहूँ, चावल, जौ, टिल, चना, मूँग और उड़द से बना मिश्रण) | इस पर्व पर जो प्रात: स्नान नहीं करते हैं वे सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहते हैं | मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गौदान करने का फल शास्त्र में लिखा है और इस दिन सूर्यनारायण का मानसिक रूप से ध्यान करके मन-ही-मन उनसे आयु-आरोग्य के लिए की गयी प्रार्थना विशेष प्रभावशाली होती है |

इस दिन किये गए सत्कर्म विशेष फलदायी होते हैं | इस दिन भगवान् शिव को तिल, चावल अर्पण करने अथवा तिल, चावल मिश्रित जल से अर्घ्य देने का भी विधान है | उत्तरायण के दिन रात्रि का भोजन न करें तो अच्छा है लेकिन जिनको सन्तान है उनको उपवास करना मना किया गया है |

इस दिन जो ६ प्रकार से तिलों का उपयोग करता है वह इस लोक और परलोक में वांछित फल को पाता है :

१] पानी में तिल डाल के स्नान करना,

२] तिलों का उबटन लगाना,

३] तिल डालकर पितरों का तर्पण करना, जल देना,

४] अग्नि में तिल डालकर यज्ञादि करना,

५] तिलों का दान करना,

६] तिल खाना

तिलों की महिमा तो है लेकिन तिल की महिमा सुनकर तिल अति भी न खायें और रात्रि को तिल और तिलमिश्रित वस्तु खाना वर्जित है |

उत्तरायण पर्व के दिन सूर्य-उपासना करें

ॐ आदित्याय विदमहे भास्कराय धीमहि | तन्नो भानु: प्रचोदयात् |

इस सुर्यगायत्री के द्वारा सूर्यनारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभकारी माना गया है अथवा तो ॐ सूर्याय नम: | ॐ रवये नम: | … करके भी अर्घ्य दे सकते है |

आदित्य देव की उपासना करते समय अगर सूर्यगायत्री का जप करके ताँबे के लोटे से जल चढाते है और चढ़ा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहा की मिटटी का तिलक लगाते हैं तथा लोटे में ६ घूँट बचाकर रखा हुआ जल महामृत्युंजय मंत्र का जप करके पीते हैं तो आरोग्य की खूब रक्षा होती है | आचमन लेने से पहले उच्चारण करना होता है –

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम |

सूर्यपादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम ||

अकालमृत्यु को हरनेवाले सूर्यनारायण के चरणों का जल मैं अपने जठर में धारण करता हूँ | जठर भीतर के सभी रोगों को और सूर्य की कृपा बाहर के शत्रुओं, विघ्नों, अकाल-मृत्यु आदि को हरे |

स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१४ से

पुण्य – अर्जन का पर्व मकर संक्रांति


 

(१४ जनवरी : पुण्यकाल : सूर्योदय से सूर्यास्त तक )

संक्रांति का अर्थ है बदलाव का समय | उत्तरायण से देवताओं का ब्राह्ममुहूर्त शुरू हो जाता है | अत: हमारे ऋषियों ने उत्तरायण को साधना व परा – अपरा विद्याओं की प्राप्ति के लिए सिद्धिकाल माना है |

मकर संक्रांति पर स्नान, दान व्रत, जप-अनुष्ठान, पूजन, हवन, सुमिरन, ध्यान, वेद-पाठ, सत्संग –श्रवण, सेवा आदि का विशेष महत्त्व है | ‘धर्मसिंधु’ ग्रंथ में आता है किसंक्रांति होने पर जो व्यक्ति स्नान नहीं करता, वह सात जन्मों तक रोगी और निर्धन होता है | सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गोदान करने का फल मिलता है | कुटे हुए तिल, जौ मिश्रित गोमूत्र या गोबर से रगड़ के स्नान करें तो और अच्छा | इस पर्व पर तिल के उपयोग की विशेष महिमा है | संक्रांति पर देवों और पितरों को तिलदान अवश्य करना चाहिए |   वैदिक साहित्य में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है |

सूर्योदय होने से प्राणिजगत में चेतना का संचार होता है और उसकी कार्यशक्ति में वृद्धि होती है | सृष्टि में जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यकता सूर्य की है | सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नवचेतना, नव-उत्साह और नवस्फूर्ति लाता है | उत्तरायण के बाद दिन बड़े होने लगते हैं |

पूज्य बापूजी कहते हैं : “मकर संक्रांति पुण्य – अर्जन का दिवस है | यह सारा दिन पुण्यमय है; जो भी करोगे कई गुना पुण्यदायी हो जायेगा | मौन रखना, जप करना, भोजन आदि का संयम रखना और भगवत्प्रसाद को पाने का संकल्प करके भगवान को जैसे भीष्मजी कहते हैं कि ‘हे नाथ ! मैं तुम्हारी शरण हूँ | हे अच्युत ! हे केशव ! हे सर्वेश्वर ! मेरी बुद्धि आपमें विलय हो |’ ऐसे ही प्रार्थना करते – करते मन – बुद्धि को उस सर्वेश्वर में विलय कर देना |”

स्त्रोत – लोक कल्याण सेतु – दिसम्बर -२०१५ (निरंतर अंक :२२२) से

उत्तरायण हमें प्रेरित करता है जीवत्व से ब्रह्मत्व की ओर – मकर संक्रांति – १४ जनवरी


 

पूज्य बापूजी कहते हैं – उत्तरायण कहता है कि सूर्य जब इतना महान है, पृथ्वी से १३ लाख गुना बड़ा है, ऐसा सूर्य भी दक्षिण से उत्तर की ओर आ जाता है तो तुम भी भैया ! नारायण ! जीवत्व से ब्रह्मत्व की ओर आ जाओ तो तुम्हारे बाप क्या बिगड़ेगा ? तुम्हारे तो २१ कुल तर जायेंगे |

उत्तरायण पर्व की महत्ता :

उत्तरायण माने सूर्य का रथ उत्तर की तरफ चले | उत्तरायण के दिन किया हुआ सत्कर्म अनंत गुना हो जाता है | इस दिन भगवान शिवजी ने भी दान किया था | जिनके पास जो हो उसका इस दिन अगर सदुपयोग करें तो वे बहुत – बहुत अधिक लाभ पाते हैं | शिवजी के पास क्या है ? शिवजी के पास है धारणा, ध्यान, समाधि, आत्मज्ञान, आत्मध्यान | तो शिवजी ने इसी दिन प्रकट होकर दक्षिण भारत के ऋषियों पर आत्मोपदेश का अनुग्रह किया था |

सामाजिक महत्त्व :

इस पर्व को सामाजिक ढंग से देखें तो बड़े काम का पर्व है | किसान के घर नया गुड़, नये तिल आते हैं | उत्तरायण सर्दियों के दिनों में आता है तो शरीर को पौष्टिकता चाहिए | तिल के लड्डू खाने से मधुरता और स्निग्धता प्राप्त होती है तथा शरीर पुष्ट होता है | इसलिए इस दिन तिल – गुड़ के लड्डू (चीनी के बदले गुड़ गुणकारी है ) खाये – खिलाये, बाँटे जाते हैं | जिसके पास क्षमता नहीं है वह भी खा सके पर्व के निमित्त इसलिए बाँटने का रिवाज है | और बाँटने से परस्पर सामाजिक सौहार्द बढ़ता है |

तिळ गुळ घ्या गोड गोड बोला |

अर्थात ‘तिल – गुड़ लो और मीठा – मीठा बोलो |’ सिन्धी जगत में इस दिन मूली और गेहूँ की रोटी का चूरमा व तिल खाया – खिलाया जाता है अर्थात जीवन में कही शुष्कता आयी हो तो स्निग्धता आये, जीवन में कहीं कटुता आ गयी हो तो उसको दूर करने के लिए मिठास आये इसलिए उत्तरायण को स्नेह – सौहार्द वर्धक पर्व के रूप में भी देखा जाय तो उचित है |

आरोग्यता की दृष्टि से भी देखा जाय तो जिस – जिस ऋतू में जो – जो रोग आने की सम्भावना होती है, प्रकृति ने उस – उस ऋतू में उन रोगों के प्रतिकारक फल, अन्न, तिलहन आदि पैदा किये हैं | सर्दियाँ आती हैं तो शरीर में जो शुष्कता अथवा थोडा ठिठुरापन है या कमजोरी है तो उसे दूर करने हेतु तिल का पाक, मूँगफली, तिल आदि स्निग्ध पदार्थ इसी ऋतू में खाने का विधान है |

तिल के लड्डू देने- लेने, खाने से अपने को तो ठीक रहता है लेकिन एक देह के प्रति वृत्ति न जम जाय इसलिए कहीं दया करके अपना चित्त द्रवित करो तो कहीं से दया, आध्यात्मिक दया और आध्यात्मिक ओज पाने के लिए भी इन नश्वर वस्तुओं का आदान – प्रदान करके शाश्वत के द्वार तक पहुँचो ऐसी महापुरुषों की सुंदर व्यवस्था है |

सर्दी में सूर्य का ताप मधुर लगता है | शरीर को विटामिन ‘डी’ की भी जरूरत होती है, रोगप्रतिकारक शक्ति भी बढ़नी चाहिए | इन सबकी पूर्ति सूर्य से हो जाती है | अत: सूर्यनारायण की कोमल किरणों का फायदा उठायें |

  स्त्रोत – ऋषिप्रसाद , दिसम्बर २०१६ से