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अरब जन्मों के बाद भी लगाना तो वहीं पड़ेगा – पूज्य बापू जी


धन की शुद्धि दान से, मन की शुद्धि मौन से, वाणी की शुद्धि भगवन्नाम-जप से होती है और वस्तुओं की, कई धातुओं की शुद्धि अग्नि से होती है लेकिन अपनी शुद्धि तो परमात्मप्रीति से होती है अतः परमात्मा को प्यार करते जायें । अपने आपको शुद्ध बनाते जायें ।

हम अपनी शुद्धि करें । कपड़ों की शुद्धि तो रोज हो जाती है, घर-मकान की शुद्धि भी दीवाली के दिनों में खूब हो जाती है लेकिन अपनी शुद्धि तो भैया ! पग-पग पर करनी आवश्यक है । अपने-आपको छोड़ नहीं सकते और घर-मकान और शरीर को ऊपर ले जा नहीं सकते । जिसको छोड़ नहीं सकते उसकी शुद्धि करवा लो न – स्वयं की शुद्धि ! परमात्मप्राप्ति अथवा परमात्मप्रीति का उद्देश्य बनाने से स्वयं की शुद्धि होने लगती है ।

स्वयं की शुद्धि करने के लिए फिर पिया ( परमात्मा ) को प्यार करो । प्रभु ! तेरी जय हो ! प्यारे ! तेरी जय हो ! मेरे दाता ! मेरे आत्मदेव ! मेरे इष्टदेव ! मेरे कन्हैया !…’ चाहे कृष्ण कहो, राम कहो, शिव कहो, अल्लाह कहो, गॉड कहो, विट्ठल कहो, गणपति कहो, अकाल पुरुष कहो… चाहे जो कहो दो उसको ।

मैं जानता हूँ किसको कह रहे हो और वह भी जानता है किसके लिए बोल रहे हो । किसके लिए मन में सोचते हो उसको पता है । बोलो चाहे न भी बोलो, उसके उद्देश्य से बैठे हो तो इतना भी बढ़िया है ।

मन के सदा लगने का स्थान तो वही है, बाकी अनेकों में लगेगा ही नहीं । किसी चीज, व्यक्ति, परिस्थिति में मन सदा लग ही नहीं सकता क्योंकि वे सदा हैं नहीं, सदा तो तुम्हारा आत्मदेव है – परमेश्वर है । झख मार के मन को देर-सवेर वहीं लगाना पड़ेगा । एक घंटे में, एक दिन में, एक साल में, एक जन्म में, एक सौ जन्म में, एक हजार जन्म में, एक लाख जन्म में, एक करोड़ जन्म में, एक अरब जन्मों के बाद भी मन को लगाना तो वहीं पड़ेगा ।

देखें बिनु रघुनाथ पद जिय के जरनि न जाइ ।। ( श्रीरामचरित. अयो. कां. 182 )

मन की तपन, मन की भागदौड़ भगवत्शांति के बिना, भगवत्सुख के बिना, भगवद्ज्ञान के बिना नहीं मिटेगी । दाता ! तेरी जय हो !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 2 अंक 351

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अपने साथ दुर्व्यवहार मत करो – पूज्य बापू जी


क्यों अपने दोषों को सम्भाले रखते हो, क्यों बड़बड़ को बढ़ाये रखते हो ? मौन का आश्रय लो । फरियाद न करो ।

चुगता है चकोर अंगार मगर, फरियाद किसी को सुनाता नहीं ।

अब सीख ले मौन का मंत्र नया, अब पिय का वियोग सुहाता नहीं ।

चकोर अपने पिया ( चन्द्रमा ) के प्रेम में अंगार ( अंगारों को चन्द्रकिरण समझकर ) चुग लेता है पर फरियाद नहीं करता । फरियाद न करो । फरियाद सुनाने से, सुनने दोनों की हानि होती है । फरियाद की जगह ऐसा चिंतन करोः ‘वाह-वाह ! वाह-वाह !! यह भी नहीं रहेगा, यह भी गुजर जायेगा, यह भी गुजर जायेगा… किंतु सत्यस्वरूप हरि ज्यों-का-त्यों है । प्रकृति में जो होगा गुजर जायेगा । परमात्मा मेरे आत्मा हैं, मेरे चैतन्यस्वरूप हैं ।

अपने साथ कभी दुर्व्यवहार मत करो । बोलेः ‘बाबा ! हम अपने साथ दुर्व्यवहार क्यों करेंगे ?’ अपने साथ अनजाने में दुर्व्यवहार हो जाता है । मोबाइल के द्वारा चलचित्र देखना यह दुर्व्यवहार है अपने साथ, फालतू बातें करना यह समय का दुर्व्यय है, इधर-उधर का व्यर्थ चिंतन करना अपने साथ दुर्व्यवहार है । वह आपको हानि करेगा । अगर प्रेम चाहते हो तो दूसरे के मन की प्रसन्नता कैसे बढ़े इसका ख्याल रखो । मान चाहते हो तो दूसरे के दुर्गुण मत देखो, दूसरे के गुण देखकर उन्हें ग्रहण करो और गुणनिधान भगवान में अपनत्व लगाओ । संयमी और सुखी होना चाहते हो तो सुख की इच्छा का त्याग करो, दुःखियों की सेवा में लग जाओ, संयम और सुख तुमको अपने-आप मिलेंगे । राग में फँसो मत, द्वेष से सटो मत, प्रभुप्रेम के नाते सभी से मिलो-जुलो लेकिन फिर अपने को असंग जानो । विषय-भोग चिंतन, दुश्चिंतन और व्यर्थ चिंतन – ये तुम्हारी शक्तियों को निगल न जायें इसकी सावधानी रखो, इसलिए बीच-बीच में ॐकार का दीर्घ गुंजन किया करो ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 20 अंक 351

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अंतर्यामी झूलेलाल तो सबके अंदर प्रकट हो सकते हैं – पूज्य बापू जी


चेटीचंड उत्सव मनाना मतलब अपनी कायरता को भगाना, अपनी खोट को दूर करने की कुंजी आजमाना, अपने में प्राणबल फूँकना, अपने शौक को दूर करना । चेटीचंड के दिन सब मतभेदों को भूलकर लोग मिल जाते हैं । सेठ भी नाचता है, नौकर भी नाचता है, मुनीम भी नाचता है तो नेता भी नाचता है, भाई भी नाचता है तो बच्चे भी नाचते हैं ।

जहाँ धर्म, प्रेम, स्नेह की बात होती है वहाँ से भेदभाव, बड़प्पन-छोटापन, अहं की सिकुड़न जले जाते हैं ।

मुझे वेद पुरान कुरान से क्या ?

मुझे प्रेम1 का पाठ पढ़ा दे कोई ।

1 निर्विकारी प्रेम

जीवन में प्रेम की कमी होती है तब संघर्ष होता है । प्रेम की जगह जब अहंकार लेता है, श्रद्धा व स्नेह की जगह जब अहंकार और वाहवाही लेते हैं तभी समाज में अव्यवस्था पैदा होती है । उस अव्यवस्था को दूर करने के लिए निर्गुण-निराकार परमात्मा की शक्ति सगुण-साकार रूप में आती है तब उसको ‘अवतार’ बोलते हैं । जैसे कंस के अहंकार को और चाहिए, और चाहिए… करते हुए शांति नहीं मिली, वह जुल्म बढ़ाता चला गया तो भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ । मिर्खशाह ( मिरखशाह ) का ‘मुझे और सत्ता चाहिए, और राज्य चाहिए…’ यह अहंकार पेट न भर सका, उसने जुल्म किये तो झूलेलाल जी अवतरण हुआ ।

जुल्म करना तो पाप है लेकिन जुल्म सहना दुगना पाप है । जुल्म का बदला जुल्म से नहीं पर जुल्म का बदला साधना से चुकाओ । कोई तुम्हारे सामने तलवार लेकर खड़ा हो जाय तो तुम भी अगर तलवार ले के खड़े हो गये तो दोनों एक जैसे हुए । वह बाहर की तलवार उठाता है तो तुम भीतर स्नेह की तलवार लो कि उसकी बाहर की तलवार गिर जाय ।

अगर आराम चाहे तू, दे आराम खलकत2 को ।

सताकर गैर लोगों को, मिलेगा कब अमन तुझको ।।

2 दुनिया के लोगों

मैं आपसे निवेदन करूँगा कि आप पड़ोस में, कुटुम्ब में, घर में ऐसा वातावरण पैदा करो कि बच्चों के अच्छे संस्कार पड़ें, पड़ोस की बेटियाँ, पड़ोस की बहनें एक-दूसरे से स्नेह से चलें ।

अपने घर, पड़ोस और जीवन की समस्या जितना हो सके स्नेह से सुलझायी जाय ।

अहंकारी तत्त्वों को भगवान सद्बुद्धि दें, झूलेलाल उनके अंदर अवतरित हों । बाहर के झूलेलाल तो रतनराय और देवकी के घर प्रकट हुए पर अंतर्यामी झूलेलाल आपके अंदर प्रकट हो सकते हैं ।

इस पर्व पर ज्योत जलायी जाती है । ज्योत जलाने का मतलब है आपके अंदर जो आत्मज्योत समायी हुई है वह ज्योत जगे तो आप सदा के लिए जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकते हो । ताहिरी ( मीठे चावल ) किसी के घर की, कुहर ( उबले हुए चने, चौली आदि ) किसी के घर के, सूखा प्रसाद किसी के घर का परंतु बाँटते हैं तो सबको देते हैं । धर्म हमको समानता, स्नेह, प्रेम सिखाता है, धर्म हमको बाँटकर खाना सिखाता है ।

दूसरे का बँगला देखकर हम अपनी झोंपड़ी नहीं गिरायें, दूसरों का लेना-देना और दूसरों का ठाठ-बाट देख के हम अपनी श्रद्धा और सात्त्विकता नहीं गँवायें । हमारा जीवन श्रद्धायुक्त हो । जैसे दरिया के तट पर वे सीधे-सादे सिंधी सज्जन श्रद्धा से जाकर बैठे, अंदर से शांत हुए तो वे तो तर गये पर साथ ही दूसरों को तारने का रास्ता भी बना के गये ।

कायरता छोड़कर उत्साही बनने का संदेश

कायरता जैसा दुनिया में कोई पाप नहीं । अहंकार, ईर्ष्या तो पाप है पर कायरता भी पाप है । जब-जब दुःख, मुसीबत, कायरता आये, मुश्किल मुँह दिखाये अथवा भय या चिंता आये तो घबराओ नहीं, आप घूँटभर पानी पियो, स्नान करो या हाथ-मुँह धोओ और थोड़ी देर परमात्मा का चिंतन करो, भगवन्नाम या ॐकार की ध्वनि करो, परमात्मा का नाम लो तो आपके अंदर उत्साह पैदा होगा, ज्योत जगेगी, आपको क्या व्यवहार करना है यह अंदर से प्रेरणा मिलेगी ।

स्नेह, श्रद्धा और भक्ति आपके जीवन को ऐसा मोड़ दें कि आपको बाहरी शराब न पीनी पड़े, बाहर से फैशन न करना पड़े । आश्रम में सदा यह कोशिश की गयी है कि लोग बाहर की प्यालियाँ छोड़कर अंदर की प्यालियाँ पियें । अगर परमात्मा की शरणागति नहीं लेते तो हजार-हजार की शरणागति लेनी पड़ती है । मिर्खशाह और डरे हुए लोगों ने नास्तिकता की शरणागति ली थी पर जो सीधे-सादे सिंधी थे वे दरवेश ( संत ) और भगवान के शरणागत थे । उन्होंने अपने कुल तो तारे, अपना जन्म तो सफल किया, साथ ही दूसरों के लिए भी जन्म सफल करने का द्वार खोल गये । हजार साल से ज्यादा समय हो चुका है पर उनकी कमाई हमसे बिसरती नहीं है । हर चेटीचंड पर हम लोग अपने जीवन में उत्साह, प्राणबल, श्रद्धा और स्नेह को बढ़ाने के लिए बहिराणा साहिब की शोभायात्रा निकालते हैं, प्रसाद बाँटते हैं और अपने जीवन को ताजा करते हैं । जीवन में चिंता आये तो आप चिंता को इतना मूल्य न दो, डर आये तो इतना न घबराओ, मिर्खशाह से बड़े मिर्खशाह आयें पर परमात्मा के आगे ये कुछ नहीं हैं, अपने आत्मा का घात न करना, परमात्मा में शांत होना ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 11, 12 अंक 351

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