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अद्भुत प्रभाव-सम्पन्न संतान की प्राप्ति कराने वाला व्रतः पयोव्रत


(पयोव्रतः 24 फरवरी से 6 मार्च 2020)

अद्भुत प्रभाव-सम्पन्न संतान की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले स्त्री-पुरुषों के लिए शास्त्रों में पयोव्रत करने का विधान है । यह भगवान को संतुष्ट करने वाला है इसलिए इसका नाम ‘सर्वयज्ञ’ और ‘सर्वव्रत’ भी है । यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में किया जाता है । इसमें केवल दूध पीकर रहना होता है ।

व्रतधारी व्रत के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करे, धरती पर दरी या कम्बल बिछाकर शयन करे अथवा गद्दा-तकिया हटा के सादे पलंग पर शयन करे और तीनों समय स्नान करे । झूठ न बोले एवं भोगों का त्याग कर दे । किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचाये । सत्संग-श्रवण, भजन-कीर्तन, स्तुति-पाठ तथा अधिक-से-अधिक गुरुमंत्र या भगवन्नाम का जप करे । भक्तिभाव से सद्गुरुदेव को सर्वव्यापक परमात्मस्वरूप जानकर उनकी पूजा करे और स्तुति करेः ‘प्रभो ! आप सर्वशक्तिमान हैं । समस्त प्राणी आपमें और आप समस्त प्राणियों में निवास करते हैं । आप अव्यक्त और परम सूक्ष्म हैं । आप सबके साक्षी हैं । आपको मेरा नमस्कार है ।’

व्रत के एक दिन पूर्व (23 फरवरी 2020) से समाप्ति (6 मार्च 2020) तक करने योग्यः

1. द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।) से भगवान या सद्गुरु का पूजन करें तथा इस मंत्र की एक माला जपें ।

2. यदि सामर्थ्य हो तो दूध में पकाये हुए तथा घी और गुड़ मिले चावल का नैवेद्य अर्पण करें और उसी का देशी गौ-गोबर के कंडे जलाकर द्वादशाक्षर मंत्र से हवन करें । (नैवेद्य हेतु दूध से साथ गुड़ का अल्प मात्रा में उपयोग करें ।)

3. सम्भव हो तो दो निर्व्यसनी, सात्त्विक ब्राह्मणों को खीर (ब्राह्मण भोजन के लिए बिना गुड़-मिश्रित खीर बनायें एवं एकादशी (6 मार्च) के दिन खीर चावल की न बनायें अपितु मोरधन, सिंघाड़े का आटा, राजगिरा आदि उपवास में खायी जाने वाली चीजें डालकर बनायें ।) का भोजन करायें ।

4. अमावस्या के दिन (23 फरवरी को) खीर का भोजन करें ।

5. 24 फरवरी को निम्नलिखित संकल्प करें तथा 6 मार्च तक केवल दूध पीकर रहें ।

संकल्पः मम सकलगुणगणवरिष्ठ-महत्त्वसम्पन्नायुष्मत्पुत्रप्राप्तिकामनया विष्णुप्रीतये पयोव्रतमहं करिष्ये ।

व्रत-समाप्ति के अगले दिन (7 मार्च 2020) को सात्त्विक ब्राह्मण को तथा अतिथियों को अपने सामर्थ्य अनुसार शुद्ध, सात्त्विक भोजन कराना चाहिए । दीन, अंधे और असमर्थ लोगों को भी अन्न आदि से संतुष्ट करना चाहिए । जब सब लोग खा चुके हो तब उन सबके सत्कार को भगवान की प्रसन्नता का साधन समझते हुए अपने भाई बंधुओं के साथ स्वयं भोजन करें ।

इस प्रकार विधिपूर्वक यह व्रत करने से भगवान प्रसन्न होकर व्रत करने वाले की अभिलाषा पूर्ण करते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2020, पृष्ठ संख्या 22,23 अंक 325

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दुर्गुणों को मिटाने में कैसे हों सफल ?


एक महिला का लड़का बड़ा चंचल था। वह कहना नहीं मानता था अतः महिला क्रोधी स्वभाव की हो गयी थी। क्रोध से शरीर में जलन होती थी और आगे चलकर चर्मरोग भी हो गया। व्रत के दिन आये तो घर और आस-पड़ोस के लोग कुछ-न-कुछ वस्तु का त्याग कर रहे थे। उस महिला ने सोचा कि ‘मुझे तो क्रोध ही परेशान करता है तो मैं क्यों न इसे त्याग दूँ !”

उसने भगवान से प्रार्थना कीः ‘प्रभु ! मैं क्रोध को छोड़ती हूँ, इस कार्य में आप मुझे सहायता दें।’ फिर घर के सभी लोगों को बतायाः “मैंने क्रोध छोड़ने का व्रत लिया है।” और बच्चों से कहाः “मैं तो इसमें सावधान रहूँगी पर मेरे बच्चो ! इसमें आप सब भी मेरी सहायता करना कि ऐसे अनुचित कार्यो से बचना हो मुझे क्रोध दिलाते हों। इससे तुम्हारा भी व्रत-पालन होगा, उन्नति होगी। मेरी इतनी सहायता करोगे ने मेरे लाल !”

बच्चों ने हामी भरी और माँ के शुभ संकल्प का समर्थन करना आरम्भ किया। वह कभी-कभी सुनती थी, बच्चे अपने कमरे में बात करते थे कि ‘आओ, और कुछ करने से पहले हम अपना बिस्तर ठीक कर लें, जिससे भगवान के सामने दिये हुए अपने वचन को माँ निभा सके।’

कभी क्रोध का प्रसंग आने पर महिला जिसके कारण क्रोध आया है उस बच्चे के पास बैठती और भगवान से अपने को तथा बच्चे को क्षमा करने के लिए प्रार्थना करती। फिर बच्चों को कहतीः “तुम लोग मुझे वैसे ही क्षमा करो जैसे कि मैंने तुम्हें किया।” फिर कहती कि “अपने परस्पर क्षमा-दान के कारण भगवान ने भी हमको क्षमा कर दिया है।”

इस प्रकार अभ्यास करते हुए भगवत्कृपा से, आत्मकृपा से वह क्रोध व चर्मरोग से मुक्त हो गयी।

अपनी कोई भी कमजोरी, दुर्गुण हो तो उसे हटाने का संकल्प करें, व्रत ले लें। स्वजनों की मदद और ईश्वर का, सदगुरु का आश्रय लें तो अवश्य सफलता मिलेगी परंतु अपने दुर्गुणों को पहचानकर उन्हें दूर करने की सच्ची लगन भी होनी चाहिए। अभी चतुर्मास (19 नवम्बर 2018) तक चालू है। स्कंद पुराण (ब्राह्म खंड) में ब्रह्मा जी देवर्षि नारद जी से कहते हैं- “चतुर्मास व्रत का अनुष्ठान सभी वर्ण के लोगों के लिए महान फलदायक है। व्रत के सेवन में लगे हुए मनुष्यों द्वारा सर्वत्र भगवान का दर्शन होता है। चतुर्मास आने पर व्रत का यत्नपूर्वक पालन करे।”

अतः इस सुअवसर में स्वयं कुछ-न-कुछ व्रत लेकर तथा दूसरों को व्रत-पालन में सहायता करते हुए सभी को अपना जीवन उन्नत करना चाहिए।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 29 अंक 309

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सर्वरोगहारी निम्ब (नीम) सप्तमी


निम्ब सप्तमीः 2 मई 2017

‘भविष्य पुराण’ ब्राह्म पर्व में मुनि सुमंतु जी राजा शतानीक को निम्ब सप्तमी (वैशाख शुक्ल सप्तमी) की महिमा बताते हुए कहते हैं- “इस दिन निम्ब पत्र का सेवन किया जाता है। यह सप्तमी सभी तरह से व्याधियों को हरने वाली है। इस दिन भगवान सूर्य का ध्यान कर उनकी पूजा करनी चाहिए। सूर्यदेव की प्रसन्नता के लिए नैवेद्य के रूप में गुड़ोदक (गुड़ मिश्रित जल) समर्पित करे व भगवान सूर्य को निवेदित करके 10-15 कोमल पत्ते प्राशन (ग्रहण) करेः

त्वं निम्ब कटुकात्मासि आदित्यनिलयस्तथा।

सर्वरोगहरः शान्तो भव मे प्राशनं सदा।।

‘हे निम्ब ! तुम भगवान सूर्य के आश्रय स्थान हो। तुम कटु स्वभाव वाले हो। तुम्हारे भक्षण करने से मेरे सभी रोग सदा के लिए नष्ट हो जायें और तुम मेरे लिए शांतस्वरूप हो जाओ।’

इस मंत्र से निम्ब का प्राशन करके भगवान सूर्य के समक्ष पृथ्वी पर आसन बिछाकर बैठ के सूर्यमंत्र का जप करे। भगवान सूर्य का मूल मंत्र है ‘ॐ खखोल्काय नमः।’ सूर्य का गायत्री मंत्र है- ‘ॐ आदित्याय विद्महे विश्वभागाय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।’

इसके बाद मौन रहकर बिना नमक का मधुर भोजन करे।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2017, पृष्ठ संख्या 26, अंक 292

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