Tag Archives: Vrat

श्रवणद्वादशी-व्रत की कथा



भविष्य पुराण में श्रवणद्वादशी के व्रत की सुंदर कथा आती है ।
भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को एक प्राचीन आख्यान सुनाते हुए
कहते हैं- “दशार्ण देश के पश्चिम भाग के मरुस्थल में अपने साथियों से
बिछुड़ा हुआ एक व्यापारी पहुँचा । वह भूख-प्यास से व्याकुल हो इधर-
उधर घूमने लगा । उसने एक प्रेत के कंधे पर बैठे प्रेत को देखा, जिसे
चारों ओर से अन्य प्रेत घेरे हुए थे । कंधे पर चढ़े प्रेत ने कहाः “तुम
इस निर्जल प्रदेश में कैसे आ गये ?”
व्यापारीः “मेरे साथी छूट गये हैं । मैं अपने किसी पूर्व कुकृत्य के
फल से यहाँ पहुँचा हूँ । मैं अपने जीने का कोई उपाय नहीं देख रहा हूँ
।”
“क्षणमात्र प्रतीक्षा करो, तुम्हें अभीष्ट लाभ होगा ।”
व्यापारी ने प्रतीक्षा की । प्रेत ने आकर दही भात व जल वैश्य को
दिय़ा । वैश्य खाकर तृप्त हुआ । प्रेत ने अन्य प्रेतों को भी भोजन
कराया और शेष भाग को स्वयं खाया ।
व्यापारी ने प्रेतराज से पूछाः “ऐसे दुर्गम स्थान में अन्न-जल की
प्राप्ति आपको कहाँ से होती है ? थोड़े से ही अन्न-जल से बहुत से लोग
कैसे तृप्त होते हैं ?”
“हे भद्रे ! मैंने पहले बहुत दुष्कृत्य किया था । दुष्ट बुद्धिवाला मैं
रमणीय शाकल नगर में रहता था । व्यापार में ही मैंने अपना अधिकांश
जीवन बिताया । प्रमादवश मैंने धन के लोभ से कभी भी भूखे को न
अन्न दिया और न प्यासे की प्यास बुझायी । एक बार एक ब्राह्मण मेरे
साथ भाद्रपद मास की श्रवण नक्षत्र से युक्त द्वादशी के योग में तोषा
नाम के तीर्थ में गये । वहाँ हम लोगों ने स्नान और नियमपूर्वक व्रत,

उपवास किया । कालांतर में मेरी मृत्यु हुई और नास्तिक होने से मुझे
प्रेत योनि प्राप्त हुई । इस घोर वन में जो हो रहा है वह तो आप देख
ही रहे हैं । ब्राह्मणों के धन का अपहरण करने वाले इन पापियों को भी
प्रेत योनि प्राप्त हुई है – इनमें कोई परस्त्रीगामी, कोई स्वामीद्रोही और
कोई मित्रद्रोही है । मेरे अन्न-पान से पालन-पोषण करने के नाते ये सभी
मेरे सेवक हुए हैं । हे महाभाग ! आप इन प्रेतों की मुक्ति के लिए गया
में जाकर इनके नाम, गोत्र उच्चारणपूर्वक श्राद्ध करें ।” इतना कहकर
वह प्रेतराज मुक्त हो के विमान में बैठ के स्वर्गलोक में चला गया ।
वैश्य ने गया तीर्थ में जाकर श्राद्ध किया । वह जिस-जिस प्रेत की
मुक्ति के निमित्त श्राद्ध करता, वह उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहता कि
“हे महाभाग ! भगवन्नाम-जप पूर्वक किये गये श्राद्ध व आपकी कृपा से
मैं प्रेतत्व से मुक्त हो गया हूँ और सद्गति हुई है ।” इस प्रकार वे सभी
प्रेत मुक्त हो गये । राजन् ! उस वैश्य ने घर में आकर भाद्रपद मास के
श्रवणद्वादशी के योग में संयम-नियमपूर्वक भगवान की पूजा की,
संकीर्तन, ध्यान, जप, सत्संग का श्रवण, चिंतन, मनन किया और
गोदान किया । प्रतिवर्ष यह करते हुए अंत में उसने मानवों के लिए
दुर्लभ ऐसी ऊँची गति प्राप्त की ।”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2022, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 356
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने व स्वभाव पर विजय पाने का अवसर – पूज्य बापू जी


एक होती है शारदीय नवरात्रि और दूसरी चैत्री नवरात्रि । एक नवरात्रि रावण के मरने के पहले शुरु होती है, दशहरे को रावण मरता है और नवरात्रि पूरी हो जाती है । दूसरी नवरात्रि चैत्र मास में राम के प्राकट्य के पहले, रामनवमी के पहले शुरु होती है और रामजी के प्राकट्य दिवस पर समाप्त होती है । राम का आनन्द पाना है और रावण की क्रूरता से बचना है तो आत्मराम का प्राकट्य़ करो । काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार तथा शरीर को ‘मैं’ संसार को ‘मेरा’ मानना – यह रावण का रास्ता है । आत्मा को ‘मैं’ सारे ब्रह्माँड को आत्मिक दृष्टि से ‘मेरा’ मानना यह राम जी का रास्ता है । उपवास की महत्ता क्यों है ? नवरात्रि में व्रत-उपवास, ध्यान-जप और संयम-ब्रह्मचर्य… पति-पत्नि एक दूसरे से अलग रहें – यह बड़ा स्वास्थ्य-लाभ, बुद्धि-लाभ, पुण्य-लाभ देता है । परंतु इन दिनों में जो सम्भोग करते हैं उनको उसका दुष्फल हाथों हाथ मिलता है । नवरात्रि संयम का संदेश देने वाली है । यह हमारे ऋषियों की दूरदर्शिता का सुंदर आयोजन है, जिससे हम दीर्घ जीवन जी सकते हैं और दीर्घ सूझबूझ के धनी होकर ऐसे पद पर पहुँच सकते हैं जहाँ इऩ्द्र का पद भी नन्हा लगे । नवरात्रि के उपवास स्वास्थ्य के लिए वरदान हैं । अन्न से शरीर में पृथ्वी तत्त्व होता है और शरीर कई अनपचे और अनावश्यक तत्त्वों को लेकर बोझा ढो रहा होता है । मौका मिलने पर, ऋतु-परिवर्तन पर वे चीजें उभरती हैं और आपको रोग पकड़ता है । अतः इन दिनों में जो उपवास नहीं रखता और खा-खा-खा… करता है वह थका-थका, बीमार-बीमार रहेगा, उसे बुखार-वुखार आदि बहुत होता है । इस ढंग से उपवास देगा पूरा लाभ शरीर में 6 महीने तक के जो विजातीय द्रव्य जमा हैं अथवा जो डबलरोटी, बिस्कुट या मावा आदि खाये और उऩके छोटे-छोटे कण आँतों में फँसे हैं, जिनके कारण कभी डकारें, कभी पेट में गड़बड़, कभी कमर में गड़बड़, कभी ट्यूमर बनने का मसाला तैयार होता है, वह सारा मसाला उपवास से चट हो जायेगा । तो नवरात्रियों में उपवास का फायदा उठायें । नवरात्रि के उपवास करें तो पहले अन्न छोड़ दें और 2 दिन तक सब्जियों पर रहें, जिससे जठर पृथ्वी तत्त्व संबंधी रोग स्वाहा कर ले । फिर 2 दिन फल पर रहें । सब्जियाँ जल तत्त्व प्रधान होती हैं और फल अग्नि तत्त्व प्रधान होता है । फिर फल पर भी थोड़ा कम रहकर वायु प अथवा जल पर रहें तो और अच्छा लेकिन यह मोटे लोगों के लिए है । पतले दुबले लोग किशमिश, द्राक्ष आदि थोड़ा खाया करें और इऩ दिनों में गुनगुना पानी हलका-फुलका (थोड़ी मात्रा में) पियें । ठंडा पानी पियेंगे तो जठराग्नि मंद हो जायेगी । अगर मधुमेह (डायबिटीज़), कमजोरी, बुढापा नहीं है, उपवास कर सकते हो तो कर लेना । 9 दिन के नवरात्रि के उपवास नहीं रख सकते तो कम से कम सप्तमी, अष्टमी, नवमी का उपवास तो रखना चाहिए । विजय का डंका बजाओ 5 ज्ञानेन्द्रियाँ (जीभ, आँख, कान, नासिका व त्वचा) और 4 अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) – ये तुम्हें उलझाते हैं । इन नवों को जीतकर तुम यदि नवरात्रि मना लेते हो तो नवरात्रि का विजयदशमी होता है… जैसे राम जी ने रावण को जीता, महिषासुर को माँ दुर्गा न जीता और विजय का डंका बजाया ऐसे ही तुम्हारे चित्त में छुपी हुई आसुरी सम्पदा को, धारणाओं को जीतकर जब तुम परमात्मा को पाओगे तो तुम्हारी भी विजय तुम्हारे सामने प्रकट हो जायेगी । स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 11, 17 अंक 345 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अद्भुत प्रभाव-सम्पन्न संतान की प्राप्ति कराने वाला व्रतः पयोव्रत


(पयोव्रतः 24 फरवरी से 6 मार्च 2020)

अद्भुत प्रभाव-सम्पन्न संतान की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले स्त्री-पुरुषों के लिए शास्त्रों में पयोव्रत करने का विधान है । यह भगवान को संतुष्ट करने वाला है इसलिए इसका नाम ‘सर्वयज्ञ’ और ‘सर्वव्रत’ भी है । यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में किया जाता है । इसमें केवल दूध पीकर रहना होता है ।

व्रतधारी व्रत के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करे, धरती पर दरी या कम्बल बिछाकर शयन करे अथवा गद्दा-तकिया हटा के सादे पलंग पर शयन करे और तीनों समय स्नान करे । झूठ न बोले एवं भोगों का त्याग कर दे । किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचाये । सत्संग-श्रवण, भजन-कीर्तन, स्तुति-पाठ तथा अधिक-से-अधिक गुरुमंत्र या भगवन्नाम का जप करे । भक्तिभाव से सद्गुरुदेव को सर्वव्यापक परमात्मस्वरूप जानकर उनकी पूजा करे और स्तुति करेः ‘प्रभो ! आप सर्वशक्तिमान हैं । समस्त प्राणी आपमें और आप समस्त प्राणियों में निवास करते हैं । आप अव्यक्त और परम सूक्ष्म हैं । आप सबके साक्षी हैं । आपको मेरा नमस्कार है ।’

व्रत के एक दिन पूर्व (23 फरवरी 2020) से समाप्ति (6 मार्च 2020) तक करने योग्यः

1. द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।) से भगवान या सद्गुरु का पूजन करें तथा इस मंत्र की एक माला जपें ।

2. यदि सामर्थ्य हो तो दूध में पकाये हुए तथा घी और गुड़ मिले चावल का नैवेद्य अर्पण करें और उसी का देशी गौ-गोबर के कंडे जलाकर द्वादशाक्षर मंत्र से हवन करें । (नैवेद्य हेतु दूध से साथ गुड़ का अल्प मात्रा में उपयोग करें ।)

3. सम्भव हो तो दो निर्व्यसनी, सात्त्विक ब्राह्मणों को खीर (ब्राह्मण भोजन के लिए बिना गुड़-मिश्रित खीर बनायें एवं एकादशी (6 मार्च) के दिन खीर चावल की न बनायें अपितु मोरधन, सिंघाड़े का आटा, राजगिरा आदि उपवास में खायी जाने वाली चीजें डालकर बनायें ।) का भोजन करायें ।

4. अमावस्या के दिन (23 फरवरी को) खीर का भोजन करें ।

5. 24 फरवरी को निम्नलिखित संकल्प करें तथा 6 मार्च तक केवल दूध पीकर रहें ।

संकल्पः मम सकलगुणगणवरिष्ठ-महत्त्वसम्पन्नायुष्मत्पुत्रप्राप्तिकामनया विष्णुप्रीतये पयोव्रतमहं करिष्ये ।

व्रत-समाप्ति के अगले दिन (7 मार्च 2020) को सात्त्विक ब्राह्मण को तथा अतिथियों को अपने सामर्थ्य अनुसार शुद्ध, सात्त्विक भोजन कराना चाहिए । दीन, अंधे और असमर्थ लोगों को भी अन्न आदि से संतुष्ट करना चाहिए । जब सब लोग खा चुके हो तब उन सबके सत्कार को भगवान की प्रसन्नता का साधन समझते हुए अपने भाई बंधुओं के साथ स्वयं भोजन करें ।

इस प्रकार विधिपूर्वक यह व्रत करने से भगवान प्रसन्न होकर व्रत करने वाले की अभिलाषा पूर्ण करते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2020, पृष्ठ संख्या 22,23 अंक 325

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ