आलू

आलू


आलू एक प्रचलित खाद्य पदार्थ है। सब्जी बनाने में विशेष रूप से इसका उपयोग किया जाता है। आयुर्वैदिक मतानुसार आलू शीतल, मधुर रूक्ष, पचने में भारी, मल को बाँधने वाला, शरीर को भारी करने वाला, रक्तपित्तनाशक, मल-मूत्र निस्सारक, बलकारक, पोषक एवं दुग्धवर्धक है।

इसे बिना छिलके के अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट में अफारा होता है। गरम मसाला एवं अदरक इसको दोषों को नष्ट करता है। स्वच्छ पानी में इसको अच्छी तरह धोकर छिलके सहित पकाकर खाया जाय तो मोटापा नहीं बढ़ता, अपितु शरीर की आवश्यकतानुसार सम्पूर्ण आहार व पोषण मिलता है। शरीर में रक्त वृद्धि होती है। शरीर सुडौल एवं बलशाली बनता है।

इसको तलकर खाने से मोटापा बढ़ता है।

जिस पानी में आलू को उबाला गया हो उस पानी को फेंके नहीं अपितु उसमें पोषक तत्त्व होने के कारण उसी पानी में सब्जी आदि बनाना चाहिए।

इसके उबले पानी में इसके छिलकों को पीसकर चेहरे पर लगाने से त्वचा के रंग में निखार आता है। दुबला-पतला व्यक्ति भी यदि प्रतिदिन छिलके सहित आलू का सेवन करता है तो वह भी हृष्ट-पुष्ट हो जाता है।

कच्चे आलू को पीसकर जले हुए स्थान पर लगाने से राहत महसूस होती है। आलू एक संतुलित खाद्य पदार्थ है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट के साथ ही विटामिन ʹएʹ तथा ʹसीʹ भी पाया जाता है जो कि आँख एवं त्वचा के लिए लाभप्रद है। इसके अलावा इसमें और भी महत्त्वपूर्ण खनिज पाये जाते हैं। वैज्ञानिकों के मतानुसार मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी को इसका सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके सेवन से ब्लड में ग्लुकोज़ की मात्रा बहुत बढ़ जाती है।

यह कफ बढ़ाने वाला, वायुवृद्धि करने वाला, बलप्रद, वीर्यवर्धक और अल्पमात्रा में अग्निवर्धक है।

रक्तपित्त से पीड़ित बने, निर्बल, परिश्रमी व तेज जठराग्निवालों के लिए आलू अत्यंत पोषक है।

मंदाग्नि, गैस व मधुमेह से ग्रस्त व रोगी व्यक्ति के लिए आलू का सेवन हितावह नहीं है।

अग्निमांद्य, अफारा, वातप्रकोप, ज्वर मलावरोध, त्वचारोग, रक्तिविकार, अपच व उदरकृमि से पीड़ित व्यक्ति आलू का सेवन कम करे।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 1996, पृष्ठ संख्या 19, अंक 48

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