संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से
हमारे स्वास्थ्य का आधार है – जीवनी शक्ति (वाईटल एनर्जी)। यदि हमारी जीवनी शक्ति ठीक है तो हम रोगमुक्त रह सकते हैं। अगर जीवनी शक्ति दुर्बल है तो रोगों का आक्रमण होता है और जीवनी शक्ति नष्ट होने से मृत्यु आ जाती है।
जीवनी शक्ति के तीन प्रमुख कार्य हैं-
शरीर का पोषण, निर्माण एवं विकास करना।
विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालना।
शरीर की मरम्मत करना।
शरीर में उत्पन्न होने वाले मल-मूत्र, पसीना, कफ आदि का पूर्ण विकास न होने पर, उन विजातीय पदार्थों के शरीर में ही जमा रहने पर रोग उत्पन्न होते हैं।
इन विजातीय पदार्थों के रक्त में मिलने से बुखार, हृदयरोग एवं चर्मरोग उत्पन्न होते हैं। आँतों में जमा होने पर कब्ज, गैस, दस्त-पेचिश, बवासीर, भगंदर, हर्निया एवं एपेण्डीसाईटीस को जन्म देते हैं। मस्तिष्क पर उनका प्रभाव पड़ने पर सिरदर्द, अनिद्रा, मिर्गी व पागलपन आदि उत्पन्न होते हैं। गुर्दों में प्रभाव पड़ने से पथरी आदि की सम्भावना बढ़ जाती है। फेफड़ों में उन विजातीय पदार्थों के जमा होने पर सर्दी, खाँसी, दमा, न्यूमोनिया, क्षय एवं कैंसर की सम्भावना रहती है।
मानसिक तनाव, चिंता, क्रोध, दुःख, आवेश, भावुकता तथा अधीरता आदि के कारण हृदय, मस्तिष्क एवं स्नायु के रोग होते हैं।
जीवनी शक्ति दुर्बल होने के पाँच मुख्य कारण हैं-
सामर्थ्य से अधिक शारीरिक तथा मानसिक कार्य करना एवं आवश्यक विश्राम न लेना।
भय, चिंता, क्रोध आदि के कारण शरीर व मन को तनाव में रखना।
पौष्टिक आहार का अभाव या आवश्यकता से अधिक खाना। नशीली वस्तुओं एवं गलत आहार का सेवन। रात्रि को देर से भोजन करना व दिन को भोजन करके सोना।
उपवास की महत्ता न समझने से भी जीवनी शक्ति का ह्रास होता है। भविष्य में कभी भी किसी प्रकार की पीड़ा का अनुभव करें तो उपवास करें अथवा रसाहार या फलाहार पर रह कर, जीवनी शक्ति को पाचन कार्य में कम व्यस्त रखकर शरीर की शुद्धि तथा मरम्मत के लिए अवसर देंगे तो तुरंत स्वास्थ्य लाभ होगा।
वीर्यरक्षा (ब्रह्मचर्य) की उपेक्षा करना।
विषैली औषधियों, इंजेक्शनों का प्रयोग तथा ऑपरेशन कराना एवं प्रकृति के स्वास्थ्यवर्धक तत्त्वों से अपने को दूर रखना।
उपरोक्त 5 कारणों को समझकर अपने जीवन में सुधार लाने से हम अपनी जीवनी शक्ति को प्रबल रखकर सदा स्वस्थ रह सकते हैं।
अगर जीवनी शक्ति मजबूत है तो रोग आयेंगे ही नहीं और अगर आयें भी तो टिकेंगे नहीं। जीवनी शक्ति प्राणायाम से बढ़ती है। सूर्य की किरणों में भी रोगप्रतिकारक शक्ति होती है।
सूर्य की किरणों में बैठकर 10 प्राणायाम करें और शवासन में लेट जायें। जहाँ रोग है वहाँ हाथ घुमाकर रोग को मिटाने का संकल्प करें। इससे बड़ा लाभ होता है।
प्राणायाम करने से मनोबल भी बढ़ता है और बुद्धिबल भी बढ़ता है। बहुत से ऐसे रोग होते हैं जिनमें कसरत करना संभव नहीं होता लेकिन प्राणायाम किये जा सकते हैं।
प्राणायाम करने से एक विशेष फायदा यह होता है कि हमारे रोमकूप खुलने लगते हैं। हमारे शरीर में कई हजार रोम छिद्र हैं। उनमें से किसी मनुष्य के 200, किसी के 300 तो किसी-किसी के 500 छिद्र काम करते हैं शेष सब छिद्र बंद पड़े रहते हैं। प्राणायाम से ये बंद छिद्र खुल जाते हैं।
जो लोग प्राणायाम नहीं करते उनके ये छिद्र बंद ही पड़े रहते हैं। इससे उनकी प्राणशक्ति कमजोर हो जाती है और उन बंद छिद्रों में जीवाणु उत्पन्न होते हैं। ज्यों ही रोगप्रतिकारक शक्ति कम होती है वे जीवाणु दमा, टी.बी. आदि बीमारियों का रूप ले लेते हैं। प्राणायाम के अभ्यास से ऐसे कई रोगों के जीवाणु बाहर चले जाते हैं।
प्राणायाम से रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है और इस शक्ति से भी कई जीवाणु मर जाते हैं। प्राणायाम करने से विजातीय द्रव्य नष्ट हो जाते हैं और सजातीय द्रव्य बढ़ते हैं। इससे भी कई रोगों से बचाव हो जाता है।
प्राणायाम से वात-पित्त-कफ के दोषों का शमन होता है। अगर प्राण ठीक से चलने लगेंगे तो वात-पित्त-कफ आदि त्रिदोषों में जो गड़बड़ है, वह गड़बड़ी ठीक होने लगेगी।
वात-पित्त-कफ का शमन करने के लिए तुलसी के पत्ते वरदान सिद्ध होते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आप 50 ग्राम तुलसी के पत्ते खा लो। ऐसा करने से गर्मी बढ़ जायेगी। तुलसी के 5-7 पत्ते खाने हितकारी हैं।
मंत्रजाप भी जीवनी शक्ति को बढ़ाता है।
इस प्रकार नियमित प्राणायाम, सुबह की हवा, सूर्य की किरणें एवं तुलसी के पत्तों का सेवन तथा मंत्रजाप – ये रोगप्रतिकारक शक्ति को बढ़ाते हैं, मन को प्रफुल्लित रखते हैं और बुद्धि को तेजस्वी बनाने में सहायक होते हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2002, पृष्ठ संख्या 29,30 अंक 110
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