लाल जी महाराज के गुरुजी कहते थे कि ‘यह जगत जो दिखता है वह सच्चा नहीं है। सच्चा हो तो सबको एक जैसा दिखे। यह मायामात्र है।’ जिसकी जिस वक्त जैसी मान्यता होती है, जितनी मान्यता होती है, उसे उस समय वैसा और उतना जगत दिखता है। गाय, भैंस आदि पशु, पक्षी, वृक्ष सबको अपने ढंग का जगत दिखता है।
एक बिल्ली सोयी हुई थी और कुत्ता भौंका। बिल्ली की नींद टूटी और उन दोनों में विवाद हुआ। बात कल्पी हुई है समझाने के लिए।
बिल्ली ने कहाः “कम्बख्त कहीं के ! मेरा शिकार खो दिया।”
कुत्ता बोलाः “बहन ! तू तो सोयी हुई थी।”
“अरे ! चूहों की बरसात हो रही थी और मैं मजे से बिना मेहनत के माल एकत्र कर रही थी।”
“चूहों की बरसात ! चूहों की कभी बरसात हो सकती है ?”
“हाँ, बरसात हो रही थी चूहों की।”
बिल्ली अगर सपना देखेगी तो चूहों की बरसात होती हुई देखेगी और कुत्ता अगर सपना देखेगा तो हड्डियों की बरसात देखेगा। सेठ अगर सपना देखेगा तो श्रोताओं को देखेगा और नेता अगर सपना देखेगा तो चुनाव में किस दाव-पेंच से अपनी बाजी जीत लेंगे, ऐसा ही देखेगा।
तुम्हारे जाग्रत मन में जो संस्कार होते हैं वे ही सपने में उभर आते हैं। जाग्रत में भाषा है और सपने में दृश्य। जैसे जाग्रत सपने के समय नहीं, ऐसे सपना जाग्रत के समय नहीं और गहरी नींद के समय दोनों नहीं तथा समाधि में तीनों नहीं। कौन सा सच्चा मानोगे ? यह जगत सच्चा दिखेगा तो भगवान श्रीकृष्ण साथ में है फिर भी उद्धव को परेशानी रहेगी।
श्रीकृष्ण जैसे वक्ता और उद्धव जैसे श्रोता, फिर भी श्रीकृष्ण उद्धव को एकांत की जरूरत बता रहे हैं, डाँटकर कह रहे हैं कि “ये सब नश्वर है, मिट्टी के खिलौने हैं। ये मिट्टी के दीये जरा-सा मौत का झटका आते ही सब पराया हो जायेगा। सब प्रपंच छोड़ और एकांत में जा।”
स्वामी रामतीर्थ ने कहा हैः अगर इस दुनिया को तुम अच्छा करना चाहते हो तो सच्चे ज्ञान का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। अगर केवल दृश्यमान जगत को सच्चा मानकर सुधारने का प्रयास करोगे तो तुम्हारा सुधरना ही मुश्किल हो जायेगा। जो सत्य है उसमें तुम स्थित हो जाओ फिर तुम्हारी स्वाभाविक हिलचाल सुधार का कार्य किये जायेगी।
केवल पार्टीबाजी करने से, हा हा-हू हू… करने से, कायदे बनाने या निर्णय लिखने से जगत नहीं सुधरता, बल्कि जगत को जगदीश्वर का रस मिलने लग जाय तो जगत में सुधार हो सकता है। जगदीश्वर के रस में अड़चन क्या है ? यह जगत अगर सच्चा दिखेगा तो हजार जन्मों में भी अंदर का रस नहीं आयेगा। तो तुम एक बार जगदीश्वर का रस ले लो फिर तुम्हारी स्वाभाविक हिलचाल जगदीश्वर का रस बाँटने वाली होगी।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2010, पृष्ठ संख्या 16,17 अंक 207
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