गुजरात सी.आई.डी. के डिटेक्टिव पुलिस इन्सपेक्टर पी.एम.परमार ने 6 अप्रैल 2010 को एक विस्तृत रिपोर्ट गुजरात उच्च न्यायालय में पेश की, जिसमें उन्होंने आश्रम को तंत्रविद्या व काला जादू के आरोप में क्लीन चिट दी है।
सी.आई.डी. के शपथपत्र में स्पष्ट लिखा गया है कि ‘सी.आई.डी. के उच्च अधिकारियों के एक बड़े दल के द्वारा आश्रम के साधकों तथा गुरुकुल में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों से पूछताछ की गयी तथा उनके बयान लिये गये। आश्रम-परिसर के प्रत्येक स्थल तथा कमरों का सघन निरीक्षण कर विडियोग्राफी तथा फोटोग्राफी की गयी परंतु तांत्रिक विद्या से संबंधित कोई भी सामग्री नहीं मिली। साथ ही तांत्रिक विधि का कोई भी प्रमाण नहीं मिला।
जाँच अधिकारी द्वारा धारा 160 के अंतर्गत विभिन्न अखबारों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों को उनके पास उपलब्ध जानकारी इकट्ठी करने के लिए सम्मन्स दिये गये थे, परंतु किसी ने भी उसका अनुसरण नहीं किया। ‘सूचना एवं प्रसारण विभाग, गांधीनगर’ द्वारा अखबार में प्रेसनोट भी दिया गया था कि किसी को भी आश्रम की किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधोयों या घटना के बारे में पता हो तो वह आकर जाँच अधिकारी को बताये। यह भी स्पष्ट किया गया था कि जानकारी देने वाले उस व्यक्ति को पुरस्कृत किया जायेगा एवं उसका नाम गुप्त रखा जायेगा। तब भी कोई भी व्यक्ति सामने नहीं आया।”
उच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री बी.एम. गुप्ता ने कहाः “अभी तक जितने भी गवाहों ने न्यायाधीश डी.के.त्रिवेदी जाँच आयोग में बयान दिये, उन सभी ने बयान में कहा कि उन्होंने कभी भी आश्रम में तंत्रविद्या होते हुए नहीं देखा है।”
कई वर्षों तक जो आश्रम में रहे और अपनी मलिन मुराद पूरी न होते देखकर आश्रम से भाग गये या जो निकाल दिये गये, उन लोगों ने कुप्रचारस्वालों के हथकंडे बनकर झूठे आरोप लगाये। उन्हें भी आखिर स्वीकार करना पड़ा कि उन्होंने कभी आश्रम में तंत्रविद्या होते हुए नहीं देखा। सत्यमेव जयते।
हिन्दू धर्म का सुंदर प्रचार करने वाली संस्था को निशाना बनाये हुए लोगों ने करोड़ों रूपये लगाये हैं और लगायेंगे। झूठे आरोप और कहानियाँ बनाने वाले अखबार, बिकाऊ चैनल व ऐसे भगोड़े लोग चुप नहीं बैठेंगे हमें पता है। हम तो चाहते हैं वे सुधर जायें, भगवान उनको सदबुद्धि दें, नहीं तो प्रकृति का कोप साधकों पर अत्याचार कर रहे षड्यन्त्रकारियों पर जरूर बरसेगा। कइयों पर तो प्रकृति का प्रकोप बरस ही रहा है, बाकी लोग सुधर जायें, सँभल जायें तो अच्छा है।
डा. प्रेम जी मकवाणा (एम.बी.बी.एस.)
(आश्रम में 29 साल से समर्पित साधक)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2010, पृष्ठ संख्या 5, अंक 209
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