(पूज्य बापू जी का पावन अमृतवाणी)
मनुष्य जब माँ के गर्भ में होता है तो प्रार्थना करता है कि ‘हे प्रभु ! तू मुझे इस दुःखद स्थिति से बाहर निकाल ले, मैं तेरा भजन करूँगा। वक्त व्यर्थ नहीं बिताऊँगा, तेरा भजन करके अपना जीवन सार्थक करूँगा।’ यह वादा करके गर्भ से बाहर आता है। बाहर आते ही अपना वादा भूल जाता है और भगवान का भजन न करके सांसारिक कार्यों में इतना तो उलझ जाता है कि जिस प्रभु ने सब दिया, उसके सुमिरन के लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता। इसी बात की याद दिलाते हुए संत कबीर जी ने कहा हैः
कबीर वा दिन याद कर, पग ऊपर तल सीस।
मृत मंडल में आयके, बिसरि गया जगदीस।।
क्या आपने कभी सोचा है कि हमने माँ के गर्भ से जन्म लिया, माँ दाल-रोटी खाती है सब्जी रोटी खाती है उसमें से हमारे लिए जिसने दूध बनाया, उसको हमने क्या दिया ? जिसने रहने को धरती दी और धरती से अन्न दे रहा है, उसका हमने बदला क्या चुकाया ? चौबीसों घण्टे जो हमारे प्राण चलाने के लिए वायु दे रहा है, उसके बदले में हमने क्या दिया ? जिस धरती पर हम रहते हैं, उसी पर गंदगी छोड़ते हैं, साफ पानी पीते हैं, गंदा करके निकालते रहते हैं, फिर भी जो शुद्ध पानी दिये जा रहा है उसको हमने बदले में क्या दिया ? जरा-सी लाइट जलाते हैं तो बिजली का बिल भरना पड़ता है, नहीं तो कनेक्शन कट जाता है। जिसके सूर्य की लाइट, चन्द्रमा की लाइट जन्म से लेकर अभी तको ले रहे हैं, उसे बदले में हमने क्या दिया ?
कुम्हार ईंट बनाता है लेकिन ईंट बनाने की सामग्री – मिट्टी, पानी, अग्नि कुम्हार ने नहीं बनायी। अग्नि, मिट्टी, पानी भी भगवान का, जिस धरती पर ईंट बनायी वह भी भगवान की और जिन हाथों से बनायी उनमें भी शक्ति भगवान की, फिर भी कुम्हार से ईंट लेते हो तो उसका पैसा देना पड़ता है। जरा सा दूध लेते हो तो पैसा देना पड़ता है। जिसकी घास है और गाय, भैंस आदि में जो दूध बनाता है, उस परमात्मा की करूणा, प्राणिमात्र के लिए सुहृदता कैसी सुखद है ! कैसा दयालु, कृपालु, हितैषी है वह !!
….तो जिसकी मिट्टी है, अग्नि है, पानी है, जो हमारे दिल की धड़कनें चला रहा है, आँखों को देखने की, कानों को सुनने की, मन को सोचने की, बुद्धि को निर्णय करने की शक्ति दे रहा है, निर्णय बदल जाते हैं फिर भी जो बदले हुए निर्णय को जानने का ज्ञान दे रहा है, वह परमात्मा हमारा है। मरने के बाद भी वह हमारे साथ रहता है, उसके लिए हमने क्या किया ? उसको हम कुछ नहीं दे सकते ? प्रीतिपूर्वक स्मरण करते करते प्रेममय नहीं हो सकते ? बेवफा, गुणचोर होने के बदले शुक्रगुजारी और स्नेहपूर्वक स्मरण क्या अधिक कल्याणकारी नहीं होगा ? हे बेवकूफ मानव ! हे गुणचोर मनवा !! सो क्यों बिसारा जिसने सब दिया ? जिसने गर्भ में रक्षा की, सब कुछ दिया, सब कुछ किया, भर जा धन्यवाद से, अहोभाव से उसके प्रीतिपूर्वक स्मरण में !
जिसका तू बंदा उसी का सँवारा।
दुनिया की लालच से साहिब बिसारा।।
न कीन्हीं इबादत न राखा ईमान।
न कीन्हीं बंदगी न लिया प्रभु का नाम।।
शर्मिंदा हो न कछु नेकी कमायी।
लानत का जामा पहना न जायी।।
करेगा जो गफलत तो खायेगा लात।
बेटी और बेटा रहेगा न साथ।।
दुनिया का दीवाना कहे मुल्क मेरा।
आयी मौत सिर पर न तेरा न मेरा।।
तो लग जाओ लाला ! लालियाँ !! भगवान के द्वार जब जाओगे तब पूछा जायेगा कि भजन करने का वादा करके गया था, क्या करके आया ? इतना-इतना जल, इतनी पृथ्वी, इतना माँ का दूध, इतनी वायु, इतना भोजन आदि सब कुछ मिला, बदले में तूने कितना भजन किया ? संतों का कितना संग किया, कितना सत्संग सुना ? संतों द्वारा बताये मार्ग पर कितना चला और दूसरों को चलने में कितनी मदद की ? भगवन्नाम का कितना जप-कीर्तन किया और दूसरे कितनों को इसकी महिमा बताकर जप-कीर्तन में लगाया ? गीता के ज्ञान से, संतों के अनुभव से सम्पन्न सत्साहित्य को कितनों तक पहुँचाया ? तो क्या जवाब दोगे ?
पैसा तो तुमने कमाया लेकिन भगवान भूख नहीं देते तो कैसे खाते ? भूख ईश्वर की चीज है। खाना तो तुमने खाया परंतु पचाने की शक्ति, भोजन में से खून बनाने की शक्ति ईश्वर की है। सोचो, बदले में तुमने ईश्वर को क्या दिया ?
कम-से-कम सुबह उठते समय, रात्रि को सोते समय प्रीतिपूर्वक भगवान से कह दोः ‘हे प्रभो ! आपको प्रणाम है। आप हमारे हैं। हे दाता ! कृपा करो, हमें अपनी प्रीति दो, भक्ति दो। हे प्रभो ! आपकी जय हो। हम आपके सूर्य का, हवा का, धरती का, जल का फायदा लेते हैं और धन्यवाद भी नहीं देते, फिर भी आप देते जाते हो। हे दाता ! यह आपकी दया है। प्रभु ! आपकी जय हो !’
प्रभु को बोलोः ‘प्रभु ! आप हमारे हो। हम चाहे आपको जाने चाहे न जानें, मानें चाहे नहीं माने फिर भी आप हमारी रक्षा करते हो। आप हमको सदबुद्धि देते हो। दुःख देकर संसार की आसक्ति मिटाते हो और सुख देकर संसार में सेवा का भाव सिखाते हो। अब तो हम आपकी भक्ति करेंगे।’
इस प्रकार भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते-करते भक्ति का रंग लग जायेगा। आपके दोनों हाथों में लड्डू हो जायेंगे, एक तो कृतघ्नता के दोष से बच जाओगे, दूसरा भगवान की भक्ति मिल जायेगी। भगवान की भक्ति मिली तो सब मिल गया।
अरे, व्यवहार में एक गिलास पानी देने वाले को भी धन्यवाद देते हैं तो जो सब कुछ दे रहा है, उसके प्रति यदि हम कृतज्ञ नहीं होंगे तो हम गुणचोर कहे जायेंगे। ‘रामायण’ में आता हैः
बड़ें भाग मानुष तनु पावा।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा।।
‘बड़े भाग्य से यह मनुष्य-शरीर मिला है। सब ग्रन्थों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है।’ (श्रीरामचरित. उ.कां. 42.4)
ऐसा अनुभव मानव-तन पाकर भगवान की भक्ति नहीं की तो क्या किया आपने ?
कथा-कीर्तन जा घर नहीं, संत नहीं मेहमान।
वा घर जमड़ा डेरा दीन्हा, सांझ पड़े समशान।।
जिस गाँव में पिछले पाँच-पचीस वर्षों से कथा कीर्तन, ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों का सत्संग नही हुआ हो, उनका साहित्य नहीं पहुँचा हो उस गाँव के लोग पिशाचों जैसे खड़े-खड़े खाते हैं, खड़े-खड़े पीते है, लड़ते-झगड़ते हैं, टोना-टोटका करते हैं, भूत-पिशाच को मानते हैं, सट्टा, जुआ, शराब-कबाब में तबाह होते हैं, भगवान को भूलकर, मानव जीवन के उद्देश्य को भूलकर परेशान होते रहते हैं। जिन गाँवों में सत्संग नहीं होता, उन गाँवों के लोगों को इतनी अक्ल भी नहीं रहती कि हम बेवफा हो रहे हैं।
इसलिए हर घर में प्रतिदिन सत्संग, जप, ध्यान, सत्शास्त्रों का पठन, कथा-कीर्तन होना ही चाहिए।
कथा-कीर्तन जा घर भयो, संत भये मेहमान।
वा घर प्रभु वासा कीन्हा, वो घर वैकुंठ समान।।
जो लोग भगवान के नाम की दीक्षा लेते हैं, भगवान के नाम का जप, और ध्यान करते हैं, वे तो देर सवेर भगवान के चिंतन से भगवान के धाम में, स्वर्ग में अथवा ब्रह्मलोक में जाते हैं और जो उनसे भी तीव्र हैं वे तो यहीं ईश्वर का साक्षात्कार कर लेते हैं। अतः आप आज से ही कोई-न-कोई पवित्र संकल्प कर लें कि ‘जिस प्रभु ने हमको सब कुछ दिया उसकी प्रीति के लिए, उसको पाने के लिए सत्संग अवश्य सुनूँगा और कम-से-कम इतनी माला तो अवश्य ही करूँगा, प्रभु के चिन्तन में इतनी देर मौन रहूँगा, इतनी देर सेवाकार्य करूँगा। प्रभु के हर विधान को मंगलमय समझकर हर व्यक्ति-वस्तु परिस्थिति में उनका दीदार करूँगा।’
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2010, पृष्ठ संख्या 2,3,7 अंक 209
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