Yearly Archives: 2010

वे वीडियो व आवाज को काट-छाँटकर प्रसारित करते हैं


परम पूज्य सदगुरुदेव संत श्री आसारामजी बापू के श्रीचरणों में सादर प्रणाम !

आज भारतीय मीडिया जिस दिशा में जा रहा है वह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। अपने ही संत-संस्कृति का मखौल उड़ाकर पूरे विश्व में भारत की छवि को बिगाड़ने का प्रयास कुछ चैनल कर रहे हैं। मैं तो खुद एक टी.वी. पत्रकार हूँ इसलिए बेहतर तरीके से जानता हूँ कि मीडिया में कुछ ऐसे तत्त्व घुस आये हैं, जिन्होंने भारतीय संत-समाज को बदनाम करने का ठेका दुराचारियों से ले लिया है।

पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का डंका बजाने वाले और अध्यात्म-ज्ञान, आत्मज्ञान का खजाना बाँटने वाले, स्वस्थ, सुखी, सम्मानित जीवनि की राह दिखाने वाले लोकलाडले संत श्री आसारामजी महाराज को सनसनी खबर बनाकर बदनाम करने का सोचा समझा षडयंत्र है। केवल बापू जी ही नहीं, श्री श्री रविशंकरजी महाराज, कांची कामकोटि पीठ के श्रद्धेय शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी, श्री सत्य साँई बाबा और योग गुरु स्वामी रामदेव को भी बदनाम करने का कुचक्र कुछ मीडिया संस्थानों ने किया है।

दिन रात दौड़ धूप कर समाज को जागृत करने में तत्पर बापू जी के लोक-कल्याणकारी कार्य दिखाने में इन चैनलों को शर्म आती है, परंतु अभिनेता अभिनेत्रियों के लज्जाहीन बाईट इंटरव्यू और फुटेज दिखाने में ये गर्व महसूस करते हैं। मैं जानता हूँ कि किस तरीके से बापू जी के सत्संग के वास्तविक वीडियो और आवाज को काट-छाँटकर प्रसारित किया जाता है। टी.आर.पी. (टेलिविज़न रेटिंग प्वाइंट) बढ़ाने के चक्कर में इन अधर्मियों को यह भी नहीं पता कि ऐसा करके वे भारत की अस्मिता पर प्रहार कर रहे हैं। अरे ये सहनशील हिन्दू संतों के पीछे क्यों पड़े हैं ? और… कट्टरपंथी धर्मों के आचार्यों के खिलाफ एक शब्द भी छापने व दिखाने की हिम्मत इनमें क्यों नहीं है ? क्योंकि उनके बारे में कुछ दिखाया तो वे आग लगा देंगे, काटकर रख देंगे, लेकिन ये हिन्दू संत अपमान सह लेते हैं और इन अधर्मियों का फिर भी बुरा न चाहकर लोककल्याम में लगे हैं।

मैं तो इन चैनलों के मालिकों के साथ ही भारत सरकार से अपील करता हूँ कि वह जाँच कराये कि कहीं भारतीय संस्कृति का उपहास उड़ाने वाले इन चैनलों में आतंकवादी व आई.एस.आई. एजेन्ट तो नहीं घुस गये हैं, जो मीडियारूपी मजबूत हथियार का इस्तेमाल कर भारत को नष्ट-भ्रष्ट करने पर उतारू हैं। इन चैनलों के बड़े पदों पर भी संदिग्ध लोगों का आधिपत्य बढ़ता जा रहा है।

मीडिया में कुछ अच्छे लोग भी हैं जो संस्कृति के रक्षण् में लगे हैं लेकिन कई बार जब रिपोर्टर खबर भेजता है तो वह या तो रोक ली जाती है या फिर ये विधर्मी चैनल उन खबरों को निगेटिव बनाकर प्रसारित करते हैं। पत्रकार न चाहकर भी कई बार अपने आलाओं के लिए नकारात्मक खबरें बनाने को बाध्य हो जाता है।

मैं मीडिया समुदाय से आग्रह करना चाहूँगा कि भारतीय संस्कृति का रक्षक बने, न कि भक्षक ! भारत के अध्यात्म-ज्ञान की आज भारत को ही नहीं पूरे विश्व को जरूरत है, इसलिए बापू जी जैसे महान संतों के वचनों को जन-जन तक पहुँचाकर अपना व विश्व का कल्याण करें।

पूज्य बापू जी के श्रीचरणों में पुनः नमन।

धर्मेन्द्र साहू

टी.वी. पत्रकार, संवाददाता,

सहारा समय न्यूज चैनल।

कबीरा निंदक न मिलो पापी मिलो हजार।

एक निंदक के माथे पर लाख पापिन को भार।।

संतों की निंदा करके समाज की श्रद्धा तोड़ने वाले लोग कबीर जी के इस वचन से सीख लेकर सँभल जायें तो कितना अच्छा है !

जो अपराध छुड़ायें, रोग मिटायें, राष्ट्रप्रेम में दृढ़ बनायें, सबमें समता-सदभाव बढ़ायें, ऐसे संत पर से श्रद्धा तोड़ना, इसे राष्ट्रद्रोह कहें कि विश्वमानव-द्रोह कहें ? धिक्कार है ऐसे द्वेषपूर्ण रवैयेवालों को !

आर.सी.मिश्र

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2010, पृष्ठ संख्या 7,8 अंक 214

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सिद्धान्त प्रेमी सरदार पटेल


(सरदार पटेल जयंतीः 31 अक्तूबर)

महान आत्माओं की महानता उनके जीवन-सिद्धान्तों में होती है। उन्हें अपने सिद्धान्त प्राणों से भी अधिक प्रिय होते है। सामान्य मानव जिनि परिस्थितियों में अपनी निष्ठा से डिग जाता है, महापुरुष ऐसे प्रसंगों में भी अडिग रहते हैं। सत्य ही उनका एकमात्र आश्रय होता है, वे फौलादी संकल्प के धनी होते हैं। उनका अपना पथ होता है, जिससे वे कभी विपथ नहीं होते।

सरदार वल्लभ भाई पटेल जिन्हें देश ‘लौह-पुरूष’ के नाम से भी जानता है, ऐसे ही एक सिद्धान्तनिष्ठ नेता थे। उनके जीवन का यह प्रसंग उनके इसी सदगुण की झाँकी कराता है।

वल्लभ भाई अपने पुत्र-पुत्री को शिक्षा हेतु यूरोप भेजना चाहते थे। इस हेतु रूपये भी कोष में जमा कर दिये गये थे लेकिन ज्यों ही असहयोग आंदोलन की घोषणा की गयी, त्यों ही उन्होंने पूर्वनिर्धारित योजना को ठप्प कर दिया। उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि ‘चाहे जो हो, मैं मन, वचन और कर्म से असहयोग के सिद्धान्तों पर दृढ़ रहूँगा। जिस देश के निवासी हमारी बोटी-बोटी के लिए लालायित हैं, जो हमारे रक्त तर्पण से अपनी प्यास बुझाते हैं, उनकी धरती पर अपनी संतान को ज्ञान प्राप्ति के लिए भेजना अपनी ही आत्मा को कलंकित करना है। भारत माता का आत्मा को दुखाना है।’

उन्होंने सिर्फ सोचा ही नहीं, अपने बच्चों को इंग्लैंड में पढ़ने से साफ मना कर दिया। ऐसी थी उनकी सिद्धान्त-प्रियता। तभी तो थे वे ‘लौह पुरुष’।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2010, पृष्ठ संख्या 25, अंक 214

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सर्वाधिक अमृतवर्षा की रात्रिः शरद पूर्णिमा


(शरद पूर्णिमाः 22 अक्तूबर 2010)

(पूज्य बापू जी के सत्संग-अमृत से)

कामदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि “हे वासुदेव ! मैं बड़े-बड़े ऋषियों, मुनियों तपस्वियों और ब्रह्मचारियों को हरा चुका हूँ। मैंने ब्रह्माजी को भी आकर्षित कर दिया। शिवजी की भी समाधि विक्षिप्त कर दी। भगवान नारायण ! अब आपकी बारी है। आपके साथ भी मुझे खिलवाड़ करना है तो हो जाय दो-दो हाथ ?”

भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः “अच्छा बेटे ! मुझ पर तू अपनी शक्ति का जोर देखना चाहता है ! मेरे साथ युद्ध करना चाहता है ! तो बता, मेरे साथ तू एकांत में आयेगा कि मैदान में आयेगा ?”

एकांत में काम की दाल नहीं गली तो भगवान ने कहाः “कोई बात नहीं। अब बता, तुझे किले में युद्ध करना है कि मैदान में ? अर्थात् मैं अपनी घर-गृहस्थी में रहूँ, तब तुझे युद्ध करना है कि जब मैं मैदान में होऊँ तब युद्ध करना है ?”

बोलेः महाराज ! जब युद्ध होता है तो मैदान में होता है। किले में क्या करना !

भगवान बोलेः “ठीक है, मैं तुझे मैदान दूँगा। जब चन्द्रमा पूर्ण कलाओं से विकसित हो, शरद पूनम की रात हो, तब तुझे मौका मिलेगा। मैं ललनाएँ बुला लूँगा।”

शरद पूनम की रात आयी और श्रीकृष्ण ने बजायी बंसी। बंसी में श्रीकृष्ण ने क्लीं बीजमंत्र फूँका। क्लीं बीजमंत्र फूँकने की कला तो भगवान श्रीकृष्ण ही जानते हैं। यह बीजमंत्र बड़ा प्रभावशाली होता है।

श्रीकृष्ण हैं तो सबके सार और अधिष्ठान लेकिन जब कुछ करना होता है न, तो राधा जी का सहारा ढूँढते हैं। राधा भगवान की आह्लादिनी शक्ति माया है।

भगवान बोलेः “राधे देवी ! तू आगे-आगे चल। कहीं तुझे ऐसा न लगे कि ये गोपिकाओं में उलझ गये, फँस गये। राधे ! तुम भी साथ में रहो। अब युद्ध करना है। काम बेटे को जरा अपनी विजय का अभिमान हो गया है। तो आज उसके साथ दो दो हाथ होने हैं। चल राधे तू भी।”

भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजायी, क्लीं बीजमंत्र फूँका। 32 राग, 64 रागिनियाँ… शरद पूनम की रात… मंद-मंद पवन बह रहा है। राधा रानी के साथ हजारों सुंदरियों के बीच भगवान बंसी बजा रहे हैं। कामदेव ने अपने सारे दाँव आजमा लिये। सब विफल हो गया।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः

“काम ! आखिर तो तू मेरा बेटा ही है !”

वही काम भगवान श्रीकृष्ण का बेटा प्रद्युम्न होकर आया।

कालों के काल, अधिष्ठानों के अधिष्ठान तथा काम-क्रोध, लोभ मोह सबको सत्ता-स्फूर्ति दने वाले और सबसे न्यारे रहने वाले भगवान श्रीकृष्ण को जो अपनी जितनी विशाल समझ और विशाल दृष्टि से देखता है, उतनी ही उसके जीवन में रस पैदा होता है।

मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन के विध्वंसकारी, विकारी हिस्से को शांति, सर्जन और सत्कर्म में बदल के, सत्यस्वरूप का ध्यान् और ज्ञान पाकर परम पद पाने के रास्ते सजग होकर लग जाये तो उसके जीवन में भी भगवान श्रीकृष्ण की नाईं रासलीला होने लगेगी। रासलीला किसको कहते हैं ? नर्तक तो एक हो और नाचने वाली अनेक हों, उसे रासलीला कहते हैं। नर्तक एक परमात्मा है और नाचने वाली वृत्तियाँ बहुत हैं। आपके जीवन में भी रासलीला आ जाय लेकिन श्रीकृष्ण की नाईं नर्तक अपने स्वरूप में, अपनी महिमा में रहे और नाचने वाली नाचते-नाचते नर्तक में खो जायें और नर्तक को खोजने लग जायें और नर्तक उन्हीं के बीच में, उन्हीं के वेश में छुप जाय-यह बड़ा आध्यात्मिक रहस्य है।

ऐसा नहीं है कि दो हाथ-पैरवाले किसी बालक का नाम कृष्ण है। यहाँ कृष्ण अर्थात् कर्षति आकर्षति इति कृष्णः। जो कर्षित कर दे, आकर्षित कर दे, आह्लादित कर दे, उस परमेश्वर ब्रह्म का नाम ‘कृष्ण’ है। ऐसा नहीं सोचना कि कोई दो हाथ-पैरवाला नंदबाबा का लाला आयेगा और बंसी बजायेगा तब हमारा कल्याण होगा, ऐसा नहीं है। उसकी तो नित्य बंसी बजती रहती है और नित्य गोपिकाएँ विचरण करती रहती हैं। वही कृष्ण आत्मा है, वृत्तियाँ गोपिकाएँ हैं। वही कृष्ण आत्मा है और जो सुरता है वह राधा है। ‘राधा’….. उलटा दो तो ‘धारा’। उसको संवित्, फुरना और चित्तकला भी बोलते हैं।

काम आता है तो आप काममय हो जाते हो, क्रोध आता है तो क्रोधमय हो जाते हो, चिंता आती है तो चिंतामय हो जाते हो, खिन्नता आती है तो खिन्नतामय हो जाते हो। नहीं,नहीं। आप चित्त को भगवदमय बनाने में कुशल हो जाइये। जब भी चिंता आये तुरंत भगवदमय। जब भी काम, क्रोध आये तुरंत भगवदमय। यही तो पुरुषार्थ है। पानी का रंग कैसा ? जैसा मिलाओ वैसा। चित्त जिसका चिंतन करता है, जैसा चिंतन करता है, चिदघन चैतन्य की वह लीला वैसा ही प्रतीत कराती है। दुश्मन की दुआ से डर लगता है और सज्जन की गालियाँ भी मीठी लगती हैं। चित्त का ही तो खेल है ! भगवदभाव से प्रतिकूलताएँ भी दुःख नहीं देतीं और विकारी दृष्टि से अनुकूलता भी तबाह कर देती है। विकारी दृष्टि विकार और विषाद में गिरा देती है।

शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है। इस रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत-तत्त्व बरसता है। चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषकशक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है।

आज की रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है और उसकी उज्जवल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं तो उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। उसका शरीर पुष्ट होता है। भगवान ने भी कहा हैः

पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।

‘रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।’

गीताः15.13

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो चन्द्र का मतलब है शीतलता। बाहर कितने भी परेशान करने वाले प्रसंग आयें लेकिन आपके दिल में कोई फरियाद न उठे। आप भीतर से ऐसे पुष्ट हों कि बाहर की छोटी मोटी मुसीबतें आपको परेशान न कर सकें।

शरद पूर्णिमा की शीतल रात्रि में (9 से 12 बजे के बीच) छत पर चन्द्रमा की किरणों में महीन कपड़े से ढँककर रखी हुई दूध-पोहे अथवा दूध-चावल की खीर अवश्य खानी चाहिए। देर रात होने के कारण कम खायें, भरपेट न खायें, सावधानी बरतें। रात को फ्रिज में रखें या ठंडे पानी में ढँक के रखें। सुबह गर्म करके उपयोग कर सकते हैं। ढाई तीन घंटे चन्द्रमा की किरणों से पुष्ट यह खीर पित्तशामक, शीतल, सात्त्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है। इससे चित्त को शांति मिलती है और साथ ही पित्तजनित समस्त रोगों का प्रकोप भी शांत होता है।

इस रात को हजार काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना। एक आध मिनट आँखें पटपटाना। कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा करो तो हरकत नहीं। इससे 32 प्रकार की पित्त संबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी। और फिर ऐसा आसन बिछाना जो विद्युत का कुचालक हो, चाहे छत पर चाहे मैदान में। चन्द्रमा की तरफ देखते-देखते अगर मौज पड़े तो आप लेट भी हो सकते हैं। श्वासोच्छवास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, निःसंकल्प नारायण में विश्रान्ति पायें। ऐसा करते-करते आप विश्रान्ति योग में चले जाना। विश्रांति योग… भगवदयोग…. अंतरंग जप करते हुए अपने चित्त को शांत, मधुमय, आनंदमय, सुखमय बनाते जाना। हृदय से जपना प्रीतिपूर्वक। आपको बहुत लाभ होगा। कितना लाभ होगा, यह माप सकें ऐसा कोई तराजू नहीं है। वह तराजू आज तक बनी नहीं। ब्रह्माजी भी बनायें तो वह तराजू टूट जायेगा।

जिनको नेत्रज्योति बढ़ानी हो वे शरद पूनम की रात को सुई में धागा पिरोने की कोशिश करें। जिनको दमे की बीमारी हो वे नजदीक के किसी आश्रम या समिति से सम्पर्क के साथ लेना। दमा मिटाने वाली बूटी निःशुल्क मिलती है, उसे खीर में डाल देना। जिसको दमा है वह बूटी वाली खीर खाये और घूमे, सोये नहीं, इससे दमे में आराम होता है। दूसरा भी दमा मिटाने का प्रयोग है। अंग्रजी दवाओं से दमा नहीं मिटता लेकिन त्रिफला रसायन 10-10 ग्राम सुबह शाम खाने से एक महीने में दमे का दम निकल जाता है।

इस रात्रि में ध्यान-भजन, सत्संग, कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2010, पृष्ठ संख्या 27,28,29 अंक 214

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ