ʹयह प्रसादी तेरे चरणों में मेवाड़ का राज्य रख देगीʹ

ʹयह प्रसादी तेरे चरणों में मेवाड़ का राज्य रख देगीʹ


(श्री गोरखनाथ जयंतीः 5 फरवरी)

(पूज्य बापू जी की ज्ञानमयी अमृतवाणी)

एक बार गोरखनाथ जी नागदा (राजस्थान में उदयपुर से 27 कि.मी. दूर स्थित एक स्थान) के पास पहाड़ियों में एकांतवास कर रहे थे। वहाँ गोरखनाथ जी ने एक शिवलिंग स्थापित कर रखा था। एक लड़का था, जिसके माँ-बाप चल बसे थे। इस कारण वह एक ब्राह्मण परिवार की गाये चराता था। उसका लालन-पालन वह ब्राह्मण परिवार ही करता था। समझो ब्राह्मण-ब्राह्मणी ही उसके पालक माता-पिता थे। संग के प्रभाव से लड़के में संध्या-वंदन आदि के कुछ अच्छे संस्कार पड़ते गये। लड़का भी चित्त से थोड़ा शांत होने लगा।

एक दिन वह गायें चरा के लौटा तो ब्राह्मण ने उसको डाँटकर पूछाः “पिछले कुछ दिनों से एक गाय दूध क्यों नहीं देती ? तू पी जाता है क्या ?”

लड़के ने कहाः “नहीं, मैं तो नहीं पीता हूँ लेकिन दूध नहीं देती तो अब मैं ध्यान रखूँगा।”

दूसरे दिन वह गायों को जंगल में ले गया तो एक गाय चुपके से आगे निकल गयी। उसने उसका पीछा किया तो देखा कि वह गाय एक शिवलिंग के पास जाकर खड़ी हुई और अपने-आप दूध की धार शिवलिंग पर बरसने लगी। वह दूध की धार आगे रखे एक कमंडल में गिरने लगी और वह भर गया। लड़के को कौतुहल हुआ और श्रद्धा ने दृढ़ता ली। आगे देखा तो एक जोगी बैठे हैं। वे जोगी गोरखनाथ जी थे।

जोगी की आँखें खुलीं। देखा कि एक लड़का खड़ा है। लड़के को प्यार से बुलाकर पूछाः “तुम गायें चराते हो ? मुझे दूध की आवश्यकता है इसलिए प्रकृति गाय को प्रेरित करके यहाँ दूध की धार करवा देती है। कल मैं जा रहा हूँ। मुझे तुम्हारी गाय का दूध मिला है इसलिए मैं तुम्हें कुछ प्रसाद दूँगा, कल आना।” लड़का श्रद्धा-भक्ति से सम्पन्न होकर चला गया।

गाय ने तो आज भी दूध नहीं दिया लेकिन उस लड़के ने ब्राह्मण ने कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन सवेरे वह गायों को चराने के निमित्त गया और जल्दी-जल्दी वहाँ पहुँच गया जहाँ गोरखनाथ जी रहते थे।

गोरखनाथ जी ने उसे बुलाकर कहाः “आ जाओ, अपने हाथों में यह विभूति ले लो।”

विभूति उठाकर दी लेकिन बालक की असावधानी से वह हाथों से गिरकर पैरों पर पड़ी।

गोरखनाथ जी ने कहाः “देख, हाथों में रहती तो कुछ और होता। अब यह असावधानी से गिर गयी है, फिर भी यह प्रसादी तेरे चरणों में मेवाड़ का राज्य रख देगी।”

लड़के का नाम बाप्पा कालभोज था, जो आगे चलकर मेवाड़ राज्य का संस्थापक बाप्पा रावल बना। उनके वंशज उसी शिवलिंग को (जो ʹएकलिंग शिवʹ के नाम से प्रसिद्ध हुआ) राज्य का इष्टदेव, स्वामी मानते हैं।

तुम्हारे मन में अथाह सामर्थ्य, अथाह शक्ति है। गोरखनाथजी ने संकल्प कर दिया तो वह गाय चराने वाला लड़का मेवाड़ राज्य का संस्थापक हो गया। यह बाहर का राज्य तो आता है और जाता है। इससे भी ऊँचा राज्य है आत्मराज्य। संत तो वह भी दे सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2012, पृष्ठ संख्या 10, अंक 229

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