बलसंवर्धक शीत ऋतु

बलसंवर्धक शीत ऋतु


(22 अक्तूबर 2012 से 17 फरवरी 2013 तक)

महर्षि कश्यप ने कहा हैः

न च आहारसमं किंचित् भैषज्यं उपलभ्यते।

देश, काल, प्रकृति, मात्रा व जठराग्नि के अनुसार लिये गये आहार के समान कोई औषधि नहीं है। केवल सम्यक् आहार विहार से व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घ आयु की प्राप्ति कर सकता है।

प्रदीप्त जठराग्नि के कारण शीत ऋतु पौष्टिक व बलवर्धक आहार सेवन के लिए अनुकूल होती है। इन दिनों में उपवास, अल्प व रूखा आहार सप्तधातु तथा बल का ह्रास करता है।

शीतकाल में सेवन योग्य पुष्टिदायी व्यंजन

गाजर का हलवाः गाजर में लौह तत्त्व व विटामिन ʹएʹ काफी मात्रा में पाये जाते हैं। यह वायुशामक, हृदय व मस्तिष्क की नस-नाड़ियों के लिए बलप्रद, रक्तवर्धक व नेत्रों के लिए लाभदायी है।

विधिः गाजर के भीतर का पीला भाग हटा के उसे कद्दूकस कर घी में सेंक लें। आधी मात्रा में मिश्री मिलाकर धीमी आँच पर पकायें। तैयार होने पर इलायची, मगजकरी के बीज व थोड़ी सी खसखस  डाल दें। (दूध का उपयोग न करें।)

कद्दू के बीज की बर्फीः काजु में जैसे मौलिक व पुष्टिदायी तत्त्व पाये जाते हैं, वैसे ही कद्दू के बीजों में भी होते हैं। बीज की गिरी को घी में सेंक के समभाग चीनी मिला के बर्फी या छोटे-छोटे लड्डू बना लें। एक दो लड्डू सुबह चबा-चबाकर खायें। विशेष रूप से बालकों के लिए यह स्वादिष्ट, बल व बुद्धिवर्धक खुराक है।

खजूर की पुष्टिदायी गोलियाँ- सिंघाड़े के आटे को घी में सेंक लें। आटे के समभाग खजूर को मिक्सी में पीसकर उसमें मिला लें। हलका सा सेंक कर बेर के आकार की गोलियाँ बना लें। 2-4 गोलियाँ सुबह चूसकर खायें, थोड़ी देर बाद दूध पियें। इससे अतिशीघ्रता से रक्त की वृद्धि होती है। उत्साह, प्रसन्नता व वर्ण में निखार आता है। गर्भिणी माताएँ छठे महीने से यह प्रयोग शुरु करें। इससे गर्भ का पोषण व प्रसव के बाद दूध में वृद्धि होगी। माताएँ बालकों को हानिकारक चॉकलेट्स की जगह ये पुष्टिदायी गोलियाँ  खिलायें।

वीर्यवर्धक प्रयोगः 4-5 खजूर रात को पानी में भिगो के रखें। सुबह 1 चम्मच मक्खन, 1 इलायची व थोड़ा सा जायफल पानी में घिसकर उसमें मिला के खाली पेट लें। यह वीर्यवर्धक प्रयोग है।

मेथी की सुखड़ीः मेथीदाना हड्डियों व जोड़ों को मजबूत बनाता है। मेथी का आटा, पुराना गुड़ व घी समान भाग लें। आटा घी में सेंक के पुराना गुड़ व थोड़ी सोंठ मिलाकर सुखड़ी (बर्फी) बना लें। यह उत्तम वायुशामक योग हाथ-पैर, कमर व जोड़ों के दर्द, सायटिका तथा दुग्धपान कराने वाली माताओं व प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए विशेष लाभदायी है।

चन्द्रशूर की खीरः चन्द्रशूर (हालों) में प्रचंड मात्रा में लौह, फॉस्फोरस व कैल्शियम पाया जाता है। 12 वर्ष से ऊपर के बालकों को इसकी खीर बनाकर सुबह खाली पेट 40 दिन तक खिलाने से कद बढ़ता है। माताओं को दूध बढ़ाने के लिए यह खीर खिलाने का परम्परागत रिवाज है। इससे कमर का दर्द, सायटिका व पुराने गठिया में भी फायदा होता है।

सूचनाः पौष्टिक पदार्थों का सेवन सुबह खाली पेट अपनी पाचनशक्ति के अनुसार करने से पोषक तत्त्वों का अवशोषण ठीक से होता है। उनका सम्यक पाचन होने पर ही भोजन करना चाहिए।

नारी कल्याण पाकः

यह पाक युवतियाँ, गर्भिणी, नवप्रसूता माताएँ तथा महिलाएँ-सभी के लिए लाभदायी है।

लाभः यह बल व रक्तवर्धक, प्रजनन अंगों को सशक्त बनाने वाला, गर्भपोषक, गर्भस्थापक (गर्भ को स्थिर पुष्ट करने वाला) श्रमहारक (श्रम से होने वाली थकावट को मिटाने वाला) व उत्तम पित्तशामक है। एक दो माह तक इसका सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया), अत्यधिक मासिक रक्तस्राव व उसके कारण होने वाले कमरदर्द, रक्त की कमी, कमजोरी, निस्तेजता आदि दूर होकर शक्ति व स्फूर्ति आती है। जिन माताओं को बार-बार गर्भपात होता हो उनके लिए यह विशेष हितकर है। सगर्भावस्था में छठे महीने से पाक का सेवन शुरु करने से बालक हृष्ट-पुषअट होता है, दूध भी खुलकर आता है।

धातु की दुर्बलता में पुरुष भी इसका उपयोग कर सकते हैं।

सामग्रीः सिंघाड़े का आटा, गेहूँ का आटा व देशी घी प्रत्येक 250 ग्राम, खजूर 100 ग्राम, बबूल का पिसा हुआ गोंद 100 ग्राम, पिसी मिश्री 500 ग्राम।

विधिः घी को गर्म कर गोंद को घी में भून लें। फिर उसमें सिंघाड़े व गेहूँ का आटा मिलाकर धीमी आँच पर सेंके। जब मंद सुगंध आने लगे तब पिसा हुआ खजूर व मिश्री मिला दें। पाक बनने पर थाली में फैलाकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर रखें।

सेवन विधिः 2 टुकड़े (लगभग 20 ग्राम) सुबह-शाम खायें। ऊपर से दूध पी सकते हैं।

सावधानीः खट्टे, मिर्च-मसालेदार व तले हुए तथा ब्रेड-बिस्कुट आदि बासी पदार्थ न खायें।

संधिशूलहर पाक

लाभः उत्तम वायुनाशक व हड्डियों को मजबूत करने वाली मेथी, दोषों का पाचन करने वाली सोंठ व जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाले द्रव्यों से बना यह पाक जोड़ों के दर्द, गृध्रसी (सायटिका), गठिया, गर्दन का दर्द (सर्वायकल स्पोंडिलोसिस), कमरदर्द तथा वायु के कारण होने वाली हाथ-पैरों की ऐंठन, सुन्नता, जकड़न आदि में अतीव गुणकारी है। सर्दियों में 40-60 दिन तक इसका सेवन कर सकते हैं। बल व पुष्टि के लिए निरोगी व्यक्ति भी इसका लाभ ले सकते हैं। प्रसूता माताओं के लिए भी यह खूब लाभदायी है। इससे गर्भाशय की शुद्धि व दूध में वृद्धि होती है।

सामग्रीः मेथी का आटा व सोंठ का चूर्ण प्रत्येक 80 ग्राम, देशी घी 150 ग्राम, मिश्री 650 ग्राम। प्रक्षेप द्रव्य- पीपर, सोंठ, पीपरामूल, चित्रक, जीरा, धनिया, अजवायन, कलौंजी, सौंफ, जायफल, दालचीनी, तेजपत्र एवं नागरमोथ प्रत्येक का चूर्ण 10-10 ग्राम व काली मिर्च का चूर्ण 15 ग्राम।

विधिः मिश्री की एक तार की चाशनी बना लें। सोंठ को घी में धीमी आँच पर सेंक लें। जब उसका रंग सुनहरा लाल हो जाय, तब मेथी का आटा व चाशनी मिलाकर अच्छे से हिलायें। नीचे उतारकर प्रक्षेप द्रव्य मिला दें।

सेवन विधिः 15-20 ग्राम पाक सुबह गुनगुने पानी के साथ लें।

सूचनाः जोड़ों के दर्द में दही, टमाटर आदि खट्टे पदार्थ, आलू, राजमाँ, उड़द, मटर व तले हुए, पचने में भारी पदार्थ न खायें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2012, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 239

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