Monthly Archives: October 2013

बापू जी बेदाग हैं, पाक हैं।


महामंडलेश्वर सूर्यानंद सरस्वतीजी, महामंत्री, अखिल भारतीय संत समिति, हरियाणा

परम आदरणीय, श्रद्धेय, वेदांतनिष्ठ पूज्य बापू जी महाराज समत्व भाव से उस परम पिता परमात्मा का संदेश, उस प्रेम का संदेश भारत के कोने-कोने में जाकर जनता-जनार्दन को देते हैं। ऐसे बापू जी के ऊपर किसी भी प्रकार का आरोप यह संत-समाज कहता है बेबुनियाद है। जितने भी तथाकथित तथ्य हम सुन रहे हैं, देख रहे हैं, मीडिया में जो बातें उछाली जा रही हैं, उनमें से एक भी सत्य नजर नहीं आती है। संत-समाज आज पूरे विश्व को यह बताना चाहता है।

साधु-संतों का अपमान, नहीं सहेगा हिन्दुस्तान।

यह एक बापू जी का अपमान नहीं, पूरे संत-समाज का अपमान है। जो समझ रहे हैं कि ‘यह हमारा कर्तव्य नहीं, हमें इसमें शामिल नहींह होना चाहिए’ तो अगर इसी प्रकार सब कुछ होता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि एक-एक करके ये आरोप लगभग सबके ऊपर हो जायेंगे। अतः इसको हमें दूर हटाना है, इसका सामना करना है।

महापुरुषों ने कहा हैः

वो पथ क्या पथिक कुशलता ही क्या,

जिसके मार्ग में बिखरे शूल न हों।

नाविक की धैर्य-परीक्षा ही क्या,

जब धारा ही प्रतिकूल न हो।।

एकता में बहुत शक्ति है, संगठन में बहुत शक्ति है। सभी संन्यासी, दसनामी, नाथ सम्प्रदाय, उदासीन सम्प्रदाय किसी भी सम्प्रदाय के महापुरुष हों, बापू जी को अपना मानते हैं। अब सब संत एकजुट होकर ललकारेंगे और उसके बाद किसी प्रकार का दुष्प्रचार नहीं होने दिया जायेगा।

बापू जी बेदाग हैं, पाक हैं। इस सत्य की रक्षा के लिए जन-जन को आगे आना पड़ेगा। अनुकूल स्थिति में बापू जी के प्रवचन कोई भी सुन सकता है, आनंद से झूम सकता है पर ऐसी स्थिति में भी जो साथ दे वही सच्चा संस्कृतप्रेमी है। विपदा में साथ छोड़ देना गद्दारों का काम है।

संत समिति का हर संत एवं साधु-समाज बापू जी के साथ है और साथ रहेगा।

डॉ. सुमन (भूतपूर्व पादरी रॉबर्ट सॉलोमन, इंडोनेशिया)

धर्मांतरण करने वाले लोग हमारे पूजनीय बापू जी के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। आज समय की माँग है ऊँच-नीच भेदभाव को समाप्त करके समर्थ हिन्दू समाज का निर्माण !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 14, अंक 250

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आपने हमारे आशारामजी बापू को दोषी कैसे कहा ?


महामंडलेश्वर आचार्य श्री सुनील शास्त्री जी महाराज

हमारे हृदय में विराजमान नारायणस्वरूप आशाराम बापू जी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन ! मैं आज संत के रूप में नहीं लेकिन भारत माता का एक पुत्र और एक नागरिक होने के नाते पूर्णतः बिके हुए कुछ लोगों से सवाल करना चाहूँगा कि जब संविधान हमें कहता है कि जब तक दोष साबित न हो जाये तब तक उसे दोषी न माना जायेगा तो आपने हमारे आशारामजी बापू को दोषी कैसे कहा ? यह भारत के संविधान की अवमानना है। 6 करोड़ अनुयायियों के दिलों में तलवार घोंपना – क्या यह भारत के संविधान की हत्या नहीं है ? इन हत्यारों की माता भई इनको पैदा करके अपनी कोख पर शर्माती होगी कि मैंने कैसे पुत्र को जन्म दिया !

और दूसरी बात, दिल्ली में एफ आई आर हुई और आयी जोधपुर में। लेकिन जोधपुर पुलिस के बहुत बड़े अधिकारी, जिन्होंने संविधान की शपथ ली है, उन्होंने प्रेसवार्ता में कहा कि “लड़की की एफ आई आर एवं उसकी मेडिकल जाँच रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं होती है। इसलिए बापू को बलात्कार की धारा से मुक्त किया जाता है।” लेकिन 6 घंटे के अंदर वह संविधान की कसम खाने वाला अधिकारी पलटता क्यों है ?

जगदगुरु जयेन्द्र सरस्वती पर भी आपने आरोप लगाया, सर्वोच्च न्यायालय में वे निर्दोष साबित हुए। क्यों नहीं मीडिया ने दिखाया ? आज तक आपने माफी क्यों नहीं माँगी ? और हमारे संत समाज का बहुत बड़ा संघ है। ये ‘शांति-शांति-शांति….’ कहते हैं इसलिए इनको इतना ‘शांत’ मत समझो, ‘क्रान्ति…. क्रान्ति….!’ मैंने 2008 में भी कहा था कि बापू निष्कलंक हैं, निर्दोष हैं, बापू जी भारत माता के सच्चे सपूत और संत समाज के शिरोमणि हैं।

ये ‘रेप केस, रेप केस….’ सुनते-सुनते मेरा कान पीड़ित हो गया है। मैं पूछना चाहता हूँ कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25,26 ‘धर्म स्वतन्त्रता का अधिकार’ के अंतर्गत कि आज कुछ नेता लोग अनर्गल बात कर रहे हैं लेकिन उनी पार्टी के कितने लोगों पर पहले मुकद्दमे चल रहे हैं, उनको वे  क्यों नहीं फाँसी पर चढ़ा रहे हैं ! उस व्यक्ति को पहले फाँसी पर क्यों नहीं चढ़ा रहे हो जो संविधान  की कसम खा कर उसकी अवमानना कर रहा है ? लेकिन हमको बेचारा मत समझो। औरर ‘बलात्कार-बलात्कार…’ जैसे दोषारोपण मीडिया बापू जी पर किसलिए करती है ? हमें एक बहुत बड़े चैनल के अध्यक्ष ने कहा कि यह सब टीआरपी का खेल है। इनके पेट की नाभि क्या है ? टीआरपी। और देश के कुछ बिके हुए गद्दार करोड़ों रूपये देकर मीडिया को खरीदते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 15, अंक  250

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अमृत बरसाती शरद पूर्णिमा


(शरद पूर्णिमाः 18 अक्तूबर 2013)

शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसाता है। ये किरणें स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायी हैं। इस रात्रि में शरीर पर हल्के-फुल्के परिधान पहनकर चन्द्रमा की चाँदनी में टहलने, घास के मैदान पर लेटने तथा नौका-विहार करने से त्वचा के रोमकूपों में चन्द्र किरणें समा जाती हैं और बंद रोम-छिद्र प्राकृतिक ढंग से खुलते हैं। शरीर के कई रोग तो इन चन्द्र किरणों के प्रभाव से ही धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं।

इन चन्द्र किरणों से त्वचा का रंग साफ होता है, नेत्रज्योति बढ़ती है एवं चेहरे पर गुलाभी आभा उभरने लगती है। यदि देर तक पैरों को चन्द्र किरणों का स्नान कराया जाय तो ठंड के दिनों में तलुए, एड़ियाँ, होंठ फटने से बचे रहते हैं।

चन्द्रमा की किरणें मस्तिष्क के लिए अति लाभकारी हैं मस्तिष्क की बंद तहें खुलती हैं, जिससे स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। साथ ही सिर के बाल असमय सफेद नहीं होते हैं।

शरद पूर्णिमा की चाँदनी के स्वास्थ्य प्रयोग

शरद पूर्णिमा की शीतल रात्रि को (9 से 12 बजे के बीच) चन्द्रमा की किरणों में महीन कपड़े ढँककर रखी हुई दूध-चावल की खीर वर्षभर आयु, आरोग्य, पुष्टि व प्रसन्नतादायक होती है, अतः इसका अवश्य सेवन करना चाहिए। देर रात होने के कारण कम खायें, भरपेट न खायें, सावधानी बरतें।

दो पके सेवफल के टुकड़े करके शरद पूर्णिमा को रातभर चाँदनी में रखने से उनमें चन्द्र किरणें और ओज के कण समा जाते हैं। सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों में स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक लाभकारी परिवर्तन होते हैं।

इस दिन रात को चाँदनी में सेवफल 2-3 घंटे रख के फिर उसे चबा-चबाकर खाने से मसूड़ों से खून निकलने का रोग (स्कर्वी) नहीं होता तथा कब्ज से भी छुटकारा मिलता है।

250 ग्राम दूध में 1-2 बादाम व 2-3 छुहारों के टुकड़े करके उबालें। फिर इस दूध को पतले सूती कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में 2-3 घंटे तक रख दें। यह दूध औषधिय गुणों से पुष्ट हो जायेगा। सुबह इस दूध को पी लें।

सोंठ, काली मिर्च और लौंग डालकर उबाला हुआ दूध चाँदनी रात में 2-3 घंटे रखकर पीने से बार-बार जुकाम नहीं होता, सिरदर्द में लाभ होता है।

इस रात्रि में 3-4 घंटे तक बदन पर चन्द्रमा की किरणों को अच्छी तरह पड़ने दें।  इससे त्वचा मुलायम, कोमल व कंचन सी दमकने लगेगी।

तुलसी के 10-12 पत्ते एक कटोरी पानी में भिगोकर चाँदनी रात में 2-3 घंटे के लिए रख दें। फिर इन पत्तों को चबा-चबाकर खा लें व थोड़ा पानी पियें। बचे हुए पानी को चबाकर खा लें व थोड़ा पानी पियें। बचे हुए पानी को छानकर एक-एक बूँद आँखों में डालें, नाभि में मलें तथा पैरों के तलुओं पर भी मलें। आँखों से धुँधला दिखना, बार-बार पानी आना आदि में इससे लाभ होता है। तुलसी के पानी की बूँदें चन्द्रकिरणों के संग मिलकर प्राकृतिक अमृत बन जाती हैं। (दूध व तुलसी के सेवन में दो-ढाई घंटे का अंतर रखें।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013,  पृष्ठ संख्या 32, अंक 250

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