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झूठे आरोपों से सावधान – पूज्य बापू जी


इस संसार में सज्जनों, सत्पुरुषों और संतों को जितना सहन करना पड़ा है उतना दुष्टों को नहीं। ऐसा मालूम होता है कि इस संसार ने सत्य और सत्त्व को संघर्ष में लाने का मानो ठेका ले रखा है। यदि ऐसा न होता तो गाँधी जी को गोलियाँ नहीं खानी पड़तीं, दयानंदजी को जहर न दिया जाता और लिंकन व केनेडी की हत्या न होती। निंदा करने वाला व्यक्ति किसी दूसरे का बुरा करने के  प्रयत्न के साथ विकृत मजा लेने का प्रयत्न करता है। इस क्रिया में बोलने वाले के साथ सुनने वाले का भी सत्यानाश होता है।

निंदा एक प्रकार का तेजाब है। वह देने वाले की तरह लेने वाले को भी जलाता है। लेने वाले की भी शांति, सूझबूझ और पुण्य नष्ट कर देता है। यह दुनिया का दस्तूर ही है कि जब जब भी संसार में व्याप्त अंधकार को  मिटाने के लिए जो दीपक अपने आपको जलाकर प्रकाश देता है, दुनिया की सारी आँधियों, सारे तूफान उस प्रकाश को बुझाने के लिए दौड़ पड़ते हैं निंदा, अफवाह और अनगर्ल कुप्रचार की हवा को साथ लेकर।

समाज जब किसी ज्ञानी संतपुरुष की शरण, सहारा लेने लगता है तब राष्ट्र, धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के कुत्सित कार्यों में संलग्न असामाजिक तत्त्वों को अपने षडयंत्रों का भंडाफोड़ हो जाने एवं अपना अस्तित्त्व खतरे में पड़ने का भय होने लगता है। परिणामस्वरूप अपने कर्मों पर पर्दा डालने के लिए वे उस दीये को ही बुझाने के लिए नफरत, निंदा, कुप्रचार, असत्य, अमर्यादित व अनर्गल आक्षेपों व टीका-टिप्पणियों की औषधियों को अपने दिलो-दिमाग में लेकर लग जाते हैं, जो समाज में व्याप्त अज्ञानांधकार को नष्ट करने के लिए महापुरुषों द्वारा प्रज्वलित हुआ था।

ये असमाजिक तत्त्व अपने विभिन्न षड्यंत्रों द्वारा संतों व महापुरुषों के भक्तों व सेवकों को भी गुमराह करने कुचेष्टा करते हैं। समझदार साधक या भक्त तो उनके षड्यन्त्रजाल में नहीं फँसते, महापुरुषों के दिव्य जीवन के प्रतिफल से परिलक्षित उनके सच्चे अनुयायी कभी भटकते नहीं, पथ से विचलित होते नहीं अपितु और अधिक श्रद्धायुक्त हो उनके दैवी कार्यों में अत्यधिक सक्रिय व गतिशील होकर सदभागी हो जाते हैं लेकिन जिन्होंने साधना के पथ पर अभी अभी कदम रखे हैं ऐसे कुछ नवपथिक गुमराह हो जाते हैं और इसके साथ ही आरम्भ हो जाता है नैतिक पतन का दौर, जो संतविरोधियों की शांति और पुण्यों  समूल नष्ट कर देता है।

इन्सान भी बड़ा ही अजीब किस्म का व्यापारी है। जब चीज हाथ से निकल जाती है तब वह उसकी कीमत पहचानता है। जब महापुरुष शरीर छोड़कर चले जाते हैं, तब उनकी महानता का पता लगने पर वह पछताते हुए रोते रह जाता है और उनके चित्रों का आदर करने लगता है। लेकिन उनके जीवित सान्निध्य में उनका सत्संग-ज्ञान पचाया होता तो बात ही कुछ और होती। कई अन्य महापुरुषों और शिरडीवाले साँई बाबा के साथ भी यही हुआ। अब पछयाते होत क्या…..

(ऋषि प्रसाद, जनवरी 1995 से)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 5, अंक 250

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दुनिया की बेईमानी व दुष्कृत्यों के सबसे बड़े शत्रु बापू जी हैं


श्री सुरेश चव्हाणके, चेयरमैन, ‘सुदर्शन चैनल’

पूज्य बापू जी के श्रीचरणों में सादर प्रणाम ! आज इस दुनिया की बेईमानी का, दुष्कृत्यों का सबसे बड़ा शत्रु अगर कोई है तो बापू जी हैं। इसलिए उनके ऊपर सबसे ज्यादा हमले (षडयन्त्र) हो रहे हैं। जो किसी को नुक्सान नहीं पहुँचा सकता है उस पर कोई क्यों हमला करेगा ? बापू जी में हौसला है, हिम्मत है। पूज्य बापू जी ने धर्माँतरण रोकने का बहुत बड़ा काम किया है।

आध्यात्मिक कार्य में बापू जी के 50 साल तो कम-से-कम हो ही गये हैं। इतने सालों में 6 करोड़ भक्त हैं। मैं इस आँकड़े को कम करके कहता हूँ क्योंकि कोई यह न कहे कि यह बढ़ावा है। माना 2 करोड़ भक्त 50 सालों तक अगर शराब नहीं पीते हैं तो 18 लाख 82 हजार करोड़ रूपये बचते हैं। अगर सिगरेट का आँकड़ा निकालें तो 11 लाख करोड़ 36 हजार रूपये होता है। ऐसे ही गुटके का आँकड़ा है। बापू जी के सुसंस्कारों से जिनके कदम डांस बार जाने से रूके उनके आँकड़े भी ऐसे ही होंगे। ब्रह्मचर्य का जो संदेश बापू जी ने दिया है, उससे अश्वलील सामग्री बनाने वाली कम्पनियों का लाखों करोड़ों रूपये का नुक्सान होता है। इन सारे आँकड़ों को मैं अभी जोड़ ही रहा था तो ये आँकड़े कई लाख खरब में जा रहे हैं। इतने खरब रुपये का बापू जी ने जिन कम्पनियों का नुकसान किया है, उनके लिए कुछ हजार करोड़ रूपये बापू जी के खिलाफ लगाना कौन सी बड़ी बात है ! इसके पीछे का असली अर्थशास्त्र यह है।

जो पिछले 1200 साल में सम्भव नहीं हुआ वह आने वाले 10 सालों में दिख रहा है। इन 10 सालों में इस देश को गुलाम बनाने से रोकने में सबसे जो बड़ी शक्ति है तो वह आशारामजी बापू हैं। इसी कारण ये सबसे ज्यादा निशाने पर हैं। ऐसे में हम लोगों को इनका साथ देना जरूरी है क्योंकि बापू जी की प्रवृत्ति तो माफ करने की है और  हमारी प्रवृत्ति होनी चाहिए सजा देने की। व्यक्ति अगर संस्कारित नहीं होगा तो अपराध बढ़ेगा और अपराध केवल व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक अपराध बढ़ेगा। हमारी बहनें और माताएँ, बेटियाँ सुरक्षित नहीं रहेंगी, यह भी एक बड़ा परिणाम है।

ये सारे चैनल दो कारणों से दुष्प्रचार करते हैं। एक तो बड़ा कारण है स्पोंसरशिप, दूसरा कारण है टी आर पी। एक आसान काम है, जब भी ऐसी न्यूज शुरु हो तो देश के करोड़ों भक्त उन चैनलों को बन्द कर दें। अगर 6 करोड़ साधक ऐसे चैनल बंद कर दें तो ये सारे अनाप-शनाप बोलने वाले बंद हो जायेंगे। सबसे पहले अगर कुछ करना है तो यह करना है। उसके बाद बाकी चीजें करनी हैं। दूसरा, सोशल मीडिया में ऐसे चैनलों के जो पेज हैं उनको डिस्लाईक करें, उन पर अपनी बातों को रखें। तीसरा, जिन टी.वी. चैनलों पर हमारे बापू जी, हमारे धर्म की बदनामी की जा रही है उन पर जो विज्ञापन चल रहे हैं उन कम्पनियों की वेबसाईट से उनके नम्बर और ईमेल आई डी निकालिये और उनको बोलिये की ‘तुम जिस चैनल को विज्ञापन देते हो वह चैनल मेरे बापू जी का दुष्प्रचार करता है, इस पर विज्ञापन दोगे तो तुम्हारा प्रोडक्ट नहीं लेंगे।’ यह उपाय अपनाइये। चौथा, संत-सम्मेलन तहसील, जिला, राज्य स्तरर पर, विभिन्न जगहों पर किये जायें और वहाँ विभिन्न लोगों को बुलाकर उनके सामने ये आँकड़े रखें। आखिर आज भी टीवी से कई गुना ज्यादा प्रत्यक्ष सत्संग का परिणाम होता है। सत्य और मजबूत होगा। इस लड़ाई के लिए मीडिया में और अच्छे लोगों की जरूरत है, ‘सुदर्शन’ जैसे कई चैनलों की आवश्यकता है। हमको भी कई पत्रकारों की जरूरत है। अच्छे लोग पत्रकारिता में आयें क्योंकि गंदगी को साफ करने का एक तरीका है कि उस पर ज्यादा अच्छा पानी डालो तो गंदगी दूर हो जायेगी।

पिछले 8 वर्षों से ‘वेलेंटाइन डे’ को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ के रूप में मनाने से तमाम महँगे-महँगे गिफ्टस, ग्रीटिंग कार्डस बेचने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के व्यापार पर इसका असर हुआ है। और यहाँ बात केवल बापू जी की नहीं है, तमाम साधु-संतों की है। मैं दावा कर सकता हूँ कि अगर यह लड़ाई आपने नहीं जीती तो साधु-संतों के बाद ऐसा सामाजिक कार्यकर्ता जो स्वदेश और देश-धर्म की बात करता है उसका नम्बर लगना तय है। आज बापू जी हैं, कल आप और हम हैं।

इस धरने से अथवा बापू जी के बाहर आने के बाद यह लड़ाई खत्म हुई, ऐसा नहीं है। अब यह लड़ाई शुरु हो चुकी है और यह लड़ाई तब तक जारी रहनी चाहिए, जब तक इस देश के खिलाफ षडयन्त्र खत्म नहीं होता। इस देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि किन्हीं संत पर कार्यवाही हुई और उनके लाखों भक्त सड़कों पर आये हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 13,14 अंक 250

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चालबाज महेन्द्र चावला और उसके आरोपों की हकीकत


झूठे मनगढ़ंत आरोप लगाने वाले महेन्द्र चावला की पोल उसके भाइयों ने ही खोल दी। उसके सगे भाइयों – श्री तिलक चावला, श्री देवेन्द्र चावला व श्री जितेन्द्र चावला से प्राप्त जानकारियाँ हैरान करने वाली हैं। उनका कहना था।

“महेन्द्र को 8वीं पास होने के बाद कुछ आदतें गलत हो गयी थीं। वह 9वीं व 10 वीं में फेल हो गया था। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद हमने उसकी पढ़ाई के लिए पानीपत में अलग कमरे की व्यवस्था की। महेन्द्र चोरियाँ करता था। एक बार घर से 7 हजार रूपये लेकर भाग गया था। एक हफ्ते बाद वापस आने पर बोला कि ‘मेरा अपहरण हो गया था।’ बाद में उसने स्वीकार कर लिया था कि उसने झूठ बोल दिया था।

कुछ स्वार्थी असामाजिक तत्त्वों के बहकावे में आकर महेन्द्र कुछ-का-कुछ बकने लगा। इसे जरूर 10-15 लाख मिलें होंगे।

उसने यह भी बताया कि नारायण साँईं के बारे में उसने जो अनर्गल बातें बोली हैं, वे बिल्कुल झूठी व मनगढ़ंत हैं। हम साल में 2-3 बार अहमदाबाद आश्रम जाते हैं और लगातार महीनेभर भी वहाँ रह चुके हैं लेकिन कभी ऐसा कुछ नहीं देखा-सुना। अभी जो लड़की उसके साथ है (अविन वर्मा) वह पहले क्यों नहीं बोली ? उसी समय निकलकर बोलती कि हमारे साथ ऐसा-ऐसा हुआ है।

महेन्द्र इससे पहले कभी हमें कुछ क्यों नहीं बोला ? अभी एकदम क्यों ऐसा बोलना शुरु कर दिया ? वह सरासर झूठ बोल रहा है।”

श्री तिलक चावला ने यह भी बताया कि “महेन्द्र के खिलाफ एफ आई आर भी दर्ज हुई थी क्योंकि यह किसी से सामान लेकर आया था, उसके पैसे नहीं दिये थे, बड़ी मुश्किल से हम लोगों ने समझौता करवाया। एक बार तो महेन्द्र ने एक व्यक्ति की पीठ में स्टेपलर मार दिया, उसको पटक कर मारा, जिस कारण उसे टाँके भी लगे। लेकिन उन लोगों ने हमारी वजह से इसको छोड़ दिया।

आश्रमवाले क्यों किसी को मारने की धमकी देंगे ? महेन्द्र के साथ चार-पाँच लोगों की गैंग है। दूसरों की आवाज  निकाल के ‘मैं नारायण साँईं बोल रहा हूँ, मैं फलाना बोल रहा हूँ…. मैं यह कर दूँगा, मैं वह कर दूँगा।’ ये सब लोग मिलकर पता नहीं क्या-क्या साजिश कर रहे हैं ! हमें तो यह डर है कि यह जिन लोगों के साथ मिला हुआ है वे इसे मरवा ही न दें ?”

चालबाज महेन्द्र चावला ने स्वयं  लगाये हुए झूठे आरोपों की पोल खोलते हुए  न्यायाधीश श्री डी. के. त्रिवेदी जाँच आयोग के समक्ष कहा था कि ‘मैंने अहमदाबाद आश्रम में कोई तंत्रविद्या होते हुए देखा नहीं।” उसने यह भी स्वीकारा कि “यह बात सत्य है कि कम्पयूटर द्वारा किसी भी नाम का, किसी भी प्रकार का, किसी भी संस्था का तथा किसी भी साइज का लेटर हेड तैयार हो सकता है। बनावटी हस्ताक्षर किये गये हों, ऐसा मैं जानता हूँ।”

अब ये महेन्द्र चावला और अमृत वैद्य मीडिया में आकर चरित्रहनन आदि के मनगढ़ंत आरोप लगा रहे हैं। इनकी वास्तविकता जानने के बाद अब पाठक स्वयं ही निर्णय करें ऐसे लोगों से किसी प्रकार के सच की उम्मीद क्या की जा सकती है  ?

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 9, अंक 250

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